अपराध और पुलिस-आतंक से ऊसर होता यूपी, निवेश भूल जाइये

बिटिया खबर
: राजभवन के सामने लूट-कत्‍ल, और निवेश के सुनहले सपने : जब जेल में मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या हो सकती है, तो कानून-व्‍यवस्‍था कहां बची : रंगदारी का धंधा चौकस, जौनपुर में डॉक्‍टर से दो करोड़ की रंगदारी, प्रतापगढ़ में पचीस लाख न मिलने पर दो सगे भाइयों को भून डाला :

कुमार सौवीर
लखनऊ : आप चाहे किसी भी उद्योगपति को देख लीजिए। हर उद्योगपति की सफलता में उसकी अचूक योजना, रणनीति, दूरदृष्टि और सफलता के प्रति उसकी अगाथ आस्‍था। इसीलिये जब उद्योगपतियों का कोई समूह जब किसी जगह एकसाथ पहुंचते हैं, तो उसकी केवल दो ही वजह होती है।
पहली तो यह कि उन्‍हें उस क्षेत्र में अपने निवेश के लिए सुविधाजनक और सुरक्षित माहौल मिल जाने का पुख्‍ता व गारंटी का वायदा चाहिए होता है। इसमें सुविधा भले ही कुछ कम हो, लेकिन सुरक्षा सर्वोच्‍च होती है। लेकिन इन शर्तों को इसलिए भी अक्‍सर उद्योगपति छोड़ देता है जब सरकार के राजनीतिक दबावों के चलते उन्‍हें एकसाथ जुटने पर बाध्‍य किया जाता है। कोई भी उद्योगपति चूंकि सरकार की मंशा को एकदम नहीं ठुकरा सकता, इसलिए दिखावा के लिए ही सही, लेकिन वे एकसाथ किसी समारोह की शक्‍ल में जुट ही जाते हैं। दरअसल, वे सरकार की ख्‍वाहिशों पर नकारात्‍मक प्रभाव नहीं डालना चाहते, जिससे सरकार नाखुश हो सके। ऐसी हालत में वे उद्योगपति लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, बड़ी घोषणाएं करते हैं। बाद में भले ही उनकी सारी घोषणाएं बाद में कूड़ेदान में फेंकनी ही पड़ें।
लेकिन लखनऊ में उद्योगपतियों का लखनऊ में दूसरी बार एकजुट होना सरकारी का असर और दबाव दिखायी दे रहा है। क्‍योंकि सरकार ने उद्योगपतियों के सामने अब तक ऐसा एक भी कोई प्रमाण नहीं दिखाया है, जिससे उद्योगपतियों को यूपी में सुरक्षा का माहौल दिख सके।
कल ही प्रधानमंत्री को बुला कर लखनऊ में मुख्‍यमंत्री योगी ने बड़ी-बड़ी योजनाओं का पिटारा पढ़वाया था। अरबों रूपयों के निवेश वाले दावों को गाया-बजाया गया था। लेकिन इसके अभी पूरे 24 घंटे भी नहीं पूरे हो पाये थे, कि दुर्दांत अपराधियों ने यूपी सरकार की नाक को अपनी तेज चाकू से तराश दिया। बीती शाम को राजभवन के सामने बखौफ अपराधियों ने एक व्‍यवसायी को गोली मार कर उसकी हत्‍या कर दी, जबकि दूसरे को बुरी तरह घायल कर दिया। उधर सुल्‍तानपुर में ठीक उसी वक्‍त एक बड़े रेस्‍टोरेंट में घुस कर बेधड़क अपराधियों ने काउंटर पर बैठे होटल मालिक की दिन दहाड़े गोली मार कर हत्‍या कर दी।

यूपी को सुरक्षा, भरोसा, और निश्चिंत समाज की जरूरत है। इसके बिना ओद्योगिक विकास मुमकिन नहीं

जोगी जी सुरक्षा का माहौल बनाओ। निवेश अपने आप आएगा 

मुन्‍ना बजरंगी की हत्‍या को आप भले ही गैंगवार का परिणाम मान लें। लेकिन उस हादसे ने कम से कम इतना तो साबित कर ही दिया कि यूपी की सरकार अपराधियों से कोसों पीछे है। इसका बड़ा सुबूत तो यही है कि यहां के मनबढ़ अपराधी बागपत जैसी जेल में बंद मुन्‍ना बजरंगी जैसे दुर्दांत अपराधी को मौत के घाट उतार सकते हैं। बागपत जेल का हादसा जेल में बैठ कर महीनों की प्‍लानिंग करके ही अंजाम तक पहुंचाया गया था, जिसमें पुलिस, एसटीएफ, जेल और प्रशासन के दीगर लोग भी संलिप्‍त होने की बात की जा रही है। मुख्‍तार अंसारी और उनकी पत्‍नी को जेल से लखनऊ पहुंचाने की कोशिशें भी एक षडयंत्र ही था, जिसमें इस बाहुबली ने खुद की चाय में जहर दिये जाने का हल्‍ला मचाया गया था। हालांकि बाद में यह जांच में गलत पाया गया, लेकिन यूपी सरकार उस पर दोषी जेलर, प्रशासन या डॉक्‍टरों पर कोई भी कार्रवाई नहीं कर पायी।
जौनपुर में एक नामचीन डॉक्‍टर रजनीश श्रीवास्‍तव की पत्‍नी और बेटी को अपहृत कर उनके साथ रेप की धमकी देकर दो करोड़ की उगाही का मामला अभी शांत हुआ भी नहीं था कि उसके अगले ही हफ्ते प्रतापगढ़ के कोहंडौर के दो सगे भाई व्‍यवसाइयों से अपराधियों ने पचीस लाख रूपयों की मांग की, लेकिन भुगतान न मिलने पर उन दोनों की दिनदहाड़े गोली मार कर हत्‍या कर दी। पूर्वांचल में उगाही एक बड़ा धंधा पनपता जा रहा है, लेकिन न पुलिस को चिंता है, और न ही सरकार को पता है।
अभी कुछ दिन पहले ही जिस तरह अपराधियों ने शार्पशूटरों के सहारे इलाहाबाद के एक जुझारू वकील को गोलियों से भून दिया था, वह साबित करता है कि कानून-व्‍यवस्‍था का खूंटा सम्‍भाल पाना अब संन्‍यासियों के वश में नहीं रही है।
सतयुग में भी समाज-कल्‍याण के लिए जब यज्ञ हुआ करते थे, उस समय भी राक्षसी प्रवृत्ति वाले लोग ऐसे यज्ञों का सर्वनाश करने के लिए हर जुगत भिड़ाया करते थे। नतीजा यह हुआ कि ऋषि वसिष्‍ठ ने राजा दशरथ के यहां गुहार लगायी, और फिर राम-लक्ष्‍मण को साथ लेकर राक्षसों का नाश किया। इसी तरह सतयुग की स्‍थापना हुई।
आज भी राक्षसों का आतंक चरम पर पहुंचता जा रहा है। वसिष्‍ठ जैसे संत-सन्‍यासी असहाय हैं। जनता त्राहि-त्राहि कर रही है। अब राजाओं का दायित्‍व है कि वे इस हालत पर सटीक और प्रभावी हस्‍तक्षेप दर्ज करें, वरना जनता जब फैसला करती है तो वह भयावह होता है। मगर लगता है कि हमारे नेताओं में इतिहास बोध पर अहंकार और दर्प का धूल कुछ ज्‍यादा ही बढ़ कर स्‍मृति-दोष को प्रभावित करने लगा है। ऐसे में यूपी में भारी औद्योगिक निवेश के दावे जल्‍दी ही खोखले होने लगें, तो कोई ताज्‍जुब की बात नहीं होगी।

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