पुरूष करे तो वाह-वाह, स्‍त्री देह प्रदर्शन करे तो आसमान फट जाए

बिटिया खबर

: पुरूष की देह-यष्टि पर स्‍त्री समर्पित, जबकि स्‍त्री के प्रयासों पर खिल्‍ली उड़ाता है पुरूष : संवेदनशील विशेषज्ञ  बता रहे हैं स्‍त्री-पुरूष मानसिक हालत पुरूष के विद्रूप दर्प का असली धागा : हर हाल में औरत को दबोचने-कुचलने पर आमादा रहता है पुरूष :

कुमार सौवीर

लखनऊ : हर प्राणी ने अपने मजबूत करने के लिए अपने देह-बल का सर्वाधिक इस्‍तेमाल किया है। इंसान ने भी, और इंसानों में से पुरूष ने भी अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अपने शरीर का इस्‍तेमाल किया है। अब चूंकि पुरूष ने इसके लिए अपने बाहुबल को साधन बनाया है, इसलिए वह लगातार खुद के डीएनए को अधिकाधिक बलशाली बनाता रहा है। लेकिन पुरूष के मुकाबले स्‍त्री में यह गुण नहीं विकसित हो पाये। और चूंकि पुरूष की शरीर-ताकत से स्‍त्री कमतर थी, लेकिन इसके बावजूद उसने स्‍त्री ने उसे पुरूष  की इस ताकत पर ईर्ष्‍या का विषय नहीं बनाया। बल्कि उसने मर्द की ताकत के सामने आत्‍मसमर्पण कर दिया और उसकी ताकत को अपना ऐश्‍वर्य बनाने में जुटी रही। इतना ही नहीं, उसने पुरूष की ताकत को अपना श्रंगार भी बना लिया। खुद को पुरूष में सम्मिलित हो गयी, एकाकार हो गयी।

यूपी में एक वरिष्‍ठ प्रशासनिक अधिकारी हैं श्री — — । कल एक प्रशासनिक सेशन में श्री — —  से भेंट हो गयी। बस यूं ही बातों ही बातों में चर्चा छिड़ी स्‍त्री में अंग-प्रदर्शन की हालत पर। बल्कि स्‍पष्‍ट अंग-प्रदर्शन की भी नहीं, असल चर्चा तो यह हुई ब्‍लाउज और कमर को उधड़ते कपड़ों यानी डीप-कट कपड़ों पर, जो इस समय ज्‍यादा बदन-उघाड़ूने में आमादा हैं। कई लोगों की टिप्‍पणी थी कि आजकल की औरतों के ऐसे कपड़े निहायत भद्दे और अश्‍लील होते जा रहा है। निरन्‍तर।

श्री —- ने इस पर एक नया दर्शन पेश किया। उनका कहना है कि नृ-वंश के समय से ही पुरूष की ताकत के सामने विनयावत होती रही है औरत। साफ-साफ दिखता है अपनी ताकत से पुरूष ने स्‍त्री को भी जीतने की सफल कोशिश की। लेकिन स्‍त्री तो बिना किसी प्रतिरोध के ही पुरूष के सामने आत्‍मसमर्पण कर गयी। बा-खुशी, और बिना किसी विरोध के। पुरूष की ताकत है उसकी बाहों की क्षमता।

इस आत्‍मसमर्पण की प्रक्रिया में स्‍त्री ने अपना सम्‍मान पुरूष के चरणों में अर्पित कर दिया। उसका अंतस, उसका शरीर, उसकी सोच, उसका मन, उसका हावभाव, उसके वस्‍त्र, उसके आभूषण, उसकी मुस्‍कुराहट, उसका सम्‍मान, उसका अपनापन भी पुरूष के चरणों में आहुति की तरह अर्पित हो गया। नतीजा यह हुआ कि पुरूष लगातार बलशाली होता रहा, जबकि औरत लगातार कमजोर होती गयी। वह जनाना होती गयी, और पुरूष अपने पौरूष के अहंकार में फूलता ही रहा। वह लगातार मर्दाना होता गया, जबकि स्‍त्री पुरूष की जर-खरीद बांदी-लौंडी से भी बदतर होती गयी। पुरूष तो स्‍त्री को लगातार दबाता रहा, और औरत खुद को लगातार सिकोड़ती ही रही। कभी दहलीज तक, तो कभी घर की कोठरियों तक, कभी अपने कपड़ों तक, तो कभी अपने भीतर तक। किसी बिल में छिपते किसी चूहे की तरह। उसने कभी भी अपने इस हालत पर विरोध नहीं किया, बल्कि पुरूष की इस बुनी हुई साजिशों को लगातार अंगीकार ही करती रही।

इतना ही नहीं, चूंकि स्‍त्री के पास पुरूष को आकर्षित करने के लिए कोई बाहु-बल जैसा कोई तत्‍व तो था नहीं, इसलिए मर्द को जीतने के लिए उसने अपने हाव-भाव और शरीर-भंगिमा के प्रदर्शन की कोशिश की। खुद को दासी बनाने की ख्‍वाहिश तक की सीमा तक पुरूष को जीतने की कोशिश में उसने अपनी ताकत का प्रदर्शन में अपने शरीर-अंग को हौले से खोलने की कोशिश किया।

लेकिन हाय पुरूष। पुरूष को यह भी सहन नहीं हुआ। अब वह लांछन लगाने पर आमादा है। कोई हल्‍का सा अंग-प्रदर्शन दिख जाए, तो पुरूष-समुदाय स्‍त्री-समुदाय को बाकायदा नंगा ही कर डालने पर आमादा होता है।

यानी पुरूष अगर अपने बाहुबल का इस्‍तेमाल करे तो वाह-वाह, और अगर यही काम स्‍त्री करे तो शेम-शेम।

भाई यह बात गले से नीचे नहीं उतर रही है। इतने विशाल त्‍याग की गगनचुम्‍बी इमारत का इतना अपमान अब सहन नहीं हो पा रहा है।

(यह फोटोज मेरी बेटी-बहन आशु चौधरी अर्शी ने खास तौर पर मेरेे इस और ऐसे लेखों के लिए बहुत मेहनत से मेरे लिए खोजे हैं। मैं अर्शी का आभारी हूं।

अर्शी, आय लव यू मेरी जान)

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