: एक आदर्श पुलिसवाला, जो अब शायद साकार ने हो पाये : घोर जातीयता का आरोप तो खूब लगे, लेकिन श्रीराम अरूण ने अपने सरकारी दायित्वों में कोई पक्षपात नहीं किया : पुलिसिंग के दायित्वों पर लाजवाब समझदारी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आज के दौर का कोई पुलिसवाला होता, तो उस विशाल भवन को हड़प चुका होता। लेकिन श्रीराम अरुण ने अपने विभाग के प्रति वफादारी दिखाई और उस मकान को पुलिस विभाग के हवाले कर दिया जहां आज एसटीएफ का क्षेत्रीय कार्यालय उसी मकान में संचालित हो रहा है। और पुलिस विभाग के लिए आज सबसे दर्दनाक शोक है कि यूपी में पोलिसिंग का एक महारथी श्रीराम अरूण आज देह-त्याग कर ब्रह्मण्ड-व्यापी हो गया। आज भैंसाकुण्ड में उनकी पार्थिव देह को अग्नि को समर्पित कर दिया गया।
यह करीब 30 साल पहले की बात है। लखनऊ के महानगर स्थित करीब 60 बरस पुरानी आधुनिक-शैली वाली शहरी बसावट में एक बड़ी पॉश कालोनी है विज्ञानपुरी। पुलिस के विज्ञान शोध लैब और वायरलेस विभाग के मुख्यालय से सटी है यह कालोनी। खासतौर पर पुलिसवालों के रहने वालों के लिए बनाया गयी थी यह कालोनी। सहकारी आवास समिति के तहत बने इस आवासीय कॉलोनी में डीएसपी से लेकर पुलिस के आला अफसरों तक के मकान बनाये गये थे। आम तौर पर इस कॉलोनी के सभी मकान करीब 4500 स्क्वायर फीट क्षेत्र में बनाये गये हैं।
इसी कालोनी के एक मकान के मालिक ने बड़े अरमान से यह मकान बनवाया था। यह अफसर डिप्टी एसपी सिख था, और मूलत: पंजाब का रहने वाला था। बड़े खाते-पीते परिवार से था। लेकिन इस मकान में अकेला ही रहता था। उसकी पत्नी से उसकी पुरानी खटपट थी और इसीलिए वह उस अफसर से अलग रह कर अपने परिवारवालों के साथ पंजाब चली गयी थी।
सूत्र बताते हैं कि हालांकि इस सेवानिवृत्त पुलिस डिप्टी एसपी के जिस्मानी रिश्ते कई महिलाओं से भी थे। लेकिन उसको लेकर कोई भी विवाद कालोनी में नहीं था। लेकिन अचानक ही उस सरदार पुलिसवाले का संबंध कॉलोनी के कोने पर कपड़े प्रेस का ठेला लगाने वाले की पत्नी से हो गया
। इस पर हंगामा खड़ा हो गया। इस नए रिश्ते पर मोहल्ले में तो बवाल हो ही गया, लेकिन उसके पंजाब स्थित परिवार-जनों का निर्णायक आक्रोश फूट पड़ा। परिवारवालों ने तो इस घटना के बाद से ही इस परिवार से रिश्ता ही हमेशा-हमेशा के लिए तोड़ लिया। जबकि आस-पड़ोस के लोगों ने रिटायर्ड डिप्टी एसपी से बातचीत करना और उसके घर आना जाना ही बंद कर दिया।
अचानक इसी बीच इस अफसर की मृत्यु हो गई। लाश कई दिनों तक मकान में सड़ती रही। मोहल्ले में इस लाश के बारे में पुलिस को पता चला, तब तक लाश कई दिनों तक सड़ती ही रही। पुलिस ने खबर मिलते ही लाश का अंतिम संस्कार कराया। इसी बीच इस मकान में कुछ बाहरी लोगों की आवाजाही और चोरी-लूट की खबरों पर चर्चा शुरू हुई तो पड़ोस में ही रहने वाले एक बड़े आईपीएस अफसर ने तत्काल हस्तक्षेप किया। इस अफसर का नाम था श्रीराम अरूण। इस अवसर के निर्देश पर स्थानीय पुलिस ने जब मकान की छानबीन शुरू की तो पाया गया कि उस सिख अफसर के घर का काफी सामान चोरी हो चुका है। नतीजा यह कि पुलिस ने सभी कमरों को सील कर दिया।
इसी बीच एक व्यक्ति ने इस मकान पर दावा किया और कहा कि इस मकान को वह अफसर उसे व्यक्ति को वसीयत में दे चुका है। लेकिन पड़ोस में रहने वाले एक बड़े अफसर के हस्तक्षेप के चलते स्थानीय पुलिस ने उस सिख अफसर के पंजाब स्थित घरवालों से संपर्क साधा। यूपी पुलिस इस मामले की छानबीन करने पंजाब गई तो मृत अफसर के परिजनों और खासतौर से उसके इकलौते बेटे ने साफ कर दिया कि वह अपने पिता की हरकतों से क्षुब्ध था और इसलिए उनकी किसी कमाई का एक भी दमड़ी भी नहीं छूना चाहता। उस बेटे ने बिल्कुल साफ कर दिया कि उस मकान को लेकर उसकी कोई भी दिलचस्पी नहीं है। इतना ही नहीं, उसने यहां तक कह दिया कि जिस भी व्यक्ति को यह मकान मिल जाए तो मिल जाए। उसे उस पर कोई एतराज नहीं।
यह खबर पर इसी मोहल्ले में रहने वाले, और इसी मामले में भी रुचि ले रहे उसी आईपीएस अफसर के कान खड़े कर दिये। उसने स्थानीय पुलिस से कह कर इस पूरे मामले की गहरी छानबीन शुरू की तो पता चला कि वह व्यक्ति ही संदिग्ध है और उसके द्वारा तैयार किए गए कागजात संशय से भरपूर हैं। ऐसी हालत में इस मकान को लेकर पुलिस ने जिला प्रशासन से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। क्षेत्रीय अपर नगर मजिस्ट्रेट तब हुआ करते थे जैदी साहब, जिन्हें पूरा लखनऊ चाचा जैदी के नाम से पहचानता और सम्मान देता था। श्रीराम अरूण की पहल पर जैदी साहब ने इस मामले की छानबीन की और यह मामला अदालत से फैसला होने तक सह मकान पुलिस की सुपुर्दगी में दे दिया गया। आपको बता दें कि यह वही मकान है जहां आज एसटीएफ के लखनऊ के क्षेत्रीय एसएसपी का कार्यालय मौजूद है।
श्रीराम अरुण बाद में दो बार उत्तर प्रदेश के डीजीपी बनाए गए। अपनी पूरी नौकरी में आम आदमी और पुलिस के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा और समर्पण के लिए जितना सम्मान श्रीराम अरुण के खाते में पहुंच चुका है, उसका पासंग भर भी बाद के किसी भी अफसर को नहीं मिला। श्रीराम अरूण के व्यवहार, उनकी ईमानदारी और उनकी कार्यकुशलता के साथ ही उनकी पुलिसिंग के दायित्वों को लेकर कभी भी कोई सवाल नहीं उठा।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दोलत्ती संवाददाता को बताया कि एक महान पुलिसकर्मी थे श्रीराम अरुण। पुलिसिंग संवेदना और कुछ कर गुजरने का जो हौसला और माद्दा श्रीराम अरुण में थी, वह बेमिसाल है। हालांकि श्रीराम अरुण पर जातिवादी होने को लेकर भी चर्चाएं खूब हुईं। एक पुलिस अधिकारी का कहना था कि पुलिस में प्रभावी पुलिसिंग का काम श्रीराम अरुण ने बखूबी किया, लेकिन उन्होंने जातीयता का भी अंकुरण खूब किया। लेकिन एक अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि श्रीराम अरुण जाति तौर पर तो काफी कुख्यात थे जरूर। लेकिन उनकी जातीयता का कोई भी प्रभाव उन्होंने अपनी पुलिसिंग पर नहीं पड़ने दिया। यानी पुलिस अफसर और एक व्यक्ति के तौर पर श्रीराम अरूण ने अपनी एक अलग-अलग पहचान बनाए रखी थी, जो सामान्य तौर पर मुमकिन नहीं हो पाता है।