एक बच्‍ची को नोंच डाला दरिंदों ने, जौनपुर खामोश है

सैड सांग

शीराज-ए-हिन्‍द नहीं, बेशर्म-ए-हिन्‍द हो चुका जौनपुर
प्रशासन-पुलिस खामोश, अखबार चुप और जनता गूंगी-बहरी
प्रमुख गृह सचिव का आदेश कहां है कि बच्चियों की गुमशुदगी फौरन दर्ज हो

कुमार सौवीर
जौनपुरः
यह बात थोड़ी तल्‍ख और मिर्ची भरी है, लेकिन मुझे यकीन है कि आप उसे दिल पर रख कर सोचेंगे अौर कुछ करेंगे जरूर।
नहीं, नहीं। इसमें आपको कुछ खास नहीं करना है। सिर्फ सोचना शुरू कीजिए। सोचिये कि अगर आपके घर या मोहल्‍ले में आपकी किसी बेटीनुमा बच्‍ची को कुछ गुण्‍डे दबोच लें, दुष्‍कर्म कर कर उसे अस्‍पताल के बाहर फेंक दें, लेकिन आप अपने घर-दुआर में बैठ कर टीवी के सामने चाय-पकौड़ी का मजा ले रहे हों।
अब इस हालत को क्‍या कहा जाए, आप ही बता दीजिए? दिल्‍ली में एक बच्‍ची के साथ सामूहिक बलात्‍कार हुआ तो पूरी राजधानी दहल गयी। हर गली-कूचे में हंगामा खड़ा हो गया, लेकिन पिछले छह दिन से 17 साल की एक बच्‍ची जौनपुर के जिला अस्‍पताल में लावारिस पड़ी है, लेकिन पूरा जौनपुर इस काण्‍ड पर अपने दिल-दिमाग के सारे दरवाजे-खिड़की बंद किये बैठा है। पारसनाथ यादव, ललई यादव और जगदीश सोनकर जैसे स्‍वनामधन्‍य मंत्रियों की धमक और नौ विधायकों की धमाचौकड़ी अस्‍पताल से अपनी नजर छिपाये रखे है। प्रशासन और पुलिस को अपनी पोल छिपानी थी, इसलिए इस काण्‍ड की एफआईआर तक दर्ज नहीं की गयी। मीडिया को अफसरों की चरण-चम्‍पी कर अपना धंधा चलाना था इसलिए उन्‍होंने अपने जन-दायित्‍वों को लात मार कर इस घटना पर लीपापोती कर डाली। अखबारों ने उस लड़की को पक्की पगलिया करार दे दिया जबकि चैनलों ने उसे सिरे से ही गोल कर गायब कर दिया। और चूुंकि सब खामोश थे, इसलिए जौनपुर के नागरिक भी अपने-अपने धंधे में मस्‍त हो गये। कौन करता बवाल?
यह हादसा है 17 फरवरी का। भण्‍डारी रेल स्‍टेशन और जिला अस्‍पताल के बीच सड़क के किनारे देर रात यह किशोरी बेहोश हालत में पायी गयी। स्‍थानीय लोगों ने पुलिस और जिला अस्‍पताल को खबर दी। पुलिस वाले तो बिलकुल नहीं आये, लेकिन जिला अस्‍पताल के कई कर्मचारी दौड़ कर आये और स्‍ट्रेचर पर उसे लाद कर उसे अस्‍पताल ले गये। मौके पर पहुंचे अस्‍पताल के चीफ फार्मासिस्ट कौशल त्रिपाठी बताते हैं कि नर्स वगैरह ने उसे चेक करके बताया था कि वह बहुत नीम बेहोशी में थी अौर उसके गुप्‍तांग में गहरी चोटें थीं। अस्‍ताल मेंं उसे देखने वाले लोग बताते हैं कि यह बच्‍ची सम्‍भवतः छत्तीसगढ़-बिलासपुर के मजदूर परिवार की है। लेकिन हैरत की बात है कि इस हादसे की खबर होने के बावजूद पुलिस ने आज तक अस्‍पताल तक जाना गवारा नहीं समझा। जब प्रशासन और पुलिस ने मामला दबा दिया तो पत्रकारों ने भी उससे अपना पल्‍लू झाड़ लिया। कई पत्रकारों से मैंने जब उस बच्‍ची की तबियत के बारे में पूछताछ की तो उन्‍होंने बताया कि:- “अरे वो ? वो तो पगलिया है।”
इस शर्मनाक हादसे पर मेरे पास कुछ सहज सवाल हैं जिसका जवाब न पुलिस दे रही है, न प्रशासन, न पत्रकार और न ही नेता-मंत्री-विधायक। पहला सवाल यह कि उसके गुप्‍तांग में गम्‍भीर चोट आयीं, तो यह कैसे घाव हैं? सवाल तो दर्जनों हैं। पिछले छह दिन से जिला अस्‍पताल में उस बच्‍ची का किस बीमारी का इलाज चल रहा है? यह बच्‍ची कहां की है? कैसे वह जौनपुर पहुंंची? जौनपुर में वह कब से रह रही थी? कैसे वह रात को सड़क के किनारे हालत में बेहोश हुई? पुलिस ने एफआईआर दर्ज क्‍यों नहीं की? नौ विधायकों में से किसी ने इस बच्‍ची की हालत पूछने-देखने के लिए अस्‍पताल तक जाने की जहमत क्‍यों नही उठायी? प्रशासन का कोई प्रतिनिधि अब तक वहां क्‍यों नहीं पहुंचा? और पत्रकारों का काम इन सवालों को खोजने का था तो उन्‍होंने उस दिशा में क्‍या-क्‍या किया? अगले दिन जब उसकी बेशोशी टूटी तो उसने अपना नाम तो बताया लेकिन वह अपना घर-पता नहीं बता सकी।
हैरत की बात है कि इनमें से किसी भी सवाल का जवाब किसी भी जिम्‍मेदार अधिकारी, नेता या पत्रकार के पास नहीं है।
तुम पर लानत है जौनपुर, अब से तुम शीराज-ए-हिन्‍द नहीं, बेशर्म-ए-हिन्‍द कहलाओगे।

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