आलसी लेकिन गजब सक्रिय पत्रकार, नहीं रहा

दोलत्ती

: शशि भूषण के असमायिक निधन से पत्रकार जगत में शोक की लहर : क्षण भर में हल्के संकेत से ही मार्मिक कहानी गढ लेने में महिर थे शशि भूषण :
रमेश चंद्र राय
बनारस : शशि भूषण जी के निधन की खबर पर मुझे जल्दी विश्वास नहीं हुआ क्योंकि अभी हाल ही में बात हुई थी और वह वैसे ही मस्ती भरी बात करते रहे। मैं जब दैनिक जागरण बरेली में नौकरी करने गया तो उन्हीं के कमरे में रुका था। बाद में बगल वाला कमरा किराए पर लेकर रहने लगा। हम दोनों एक साथ ही खाने पीने के साथ ऑफिस भी जाते थे। कहानियां लिखने की आदत उसे बचपन से थी। किसी भी दृश्य को देखकर वह कहानी लिख सकते थे। मैं कई बार अपने जीवन के अनुभव को उनसे साझा किया तो उसने उसी पर कहानी लिख दी और वह कथादेश में छप गई। इस पर मैं नाराज भी हुआ लेकिन उसकी कहानी लिखने की प्रतिभा का कायल हो गया। एक बार हम लोग एक फ्लैट लिए और एक खाना बनाने वाली रख लिए। सारा सामान मैं लाता था लेकिन एक दिन हल्दी नहीं थी उसने बिना हल्दी की दाल बनवा दिया। दूसरे दिन गैस खत्म हो गया तो उसे भगा दिया। उससे पूछा तो बताया गैस नही थी इसलिए खाना नहीं बना। इसके बाद मैंने उसे कई लच्छेदार गलियों से नवाजा और वह चुपचाप सुनता रहा। दरअसल वह बहुत ही आलसी था। लेकिन हम लोगों में खूब जमती थी। हम लोग रोज एक घण्टे नारी शक्ति पर बात करते थे। वह प्रगतिशील विचार के थे इसलिए नारी स्वतन्त्रता के पक्षधर थे।
बाद में वह अमर उजाला चले गए लेकिन हम लोग साथ ही रहते थे लेकिन जब वह नोयडा चले गए तब साथ छूट गया लेकिन बातचीत होती रहती थी।

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