मुख्यसचिव तक ने दायर किया गलत हलफनामा, हाईकोर्ट खफा

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: आईएएस अफसर इसके बावजूद चिल्लल-पों करते हैं कि उन्हें बाबू जैसी गाली दे डाली : अब तो हद हो गयी, ऐसे में कैसे लागू हो सकेगा प्रशासन का असली का मतलब : हाईकोर्ट में भी झूठा बयान दे दिया कि गलती हाईकोर्ट की ओर से है : लो देख लो, बड़े बाबुओं की करतूतें- चौदह :

कुमार सौवीर

लखनऊ : झूठा हलफनामा दायर करना यूपी की नौकरशाही के लिए किसी ताजा-तरीन शौक या भड़काऊ फैशन जैसा होता जा रहा है। चाहे किसी जांच आयोग में अपना पक्ष रखने के नाम पर झूठा बोलने की बात हो रही हो, या फिर सीधे हाईकोर्ट में गलत शपथपत्र दाखिल किया जा रहा हो। नौकरशाही के बड़े कारिंदे इस नये-नवेले खेल में लगातार अपनी महारत हासिल करते जा रहे हैं।

अभी कुछ ज्यादा दिन नहीं हो पाये हैं कि पूर्व गृह प्रमुख सचिव आरएम श्रीवास्तव ने सहारनपुर दंगे में तब के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुभाष दुबे को झूठे आधार पर बुरी तरह इतना फंसा दिया कि उस अधिकारी को निलम्बित ही नहीं, बल्कि उस दंगे की जांच में दोषी ठहरा दिया। और अब यह ताजा मामला है हाईकोर्ट का। अब इसे क्या दुर्भाग्य् और विडम्बना नहीं कहा जाएगा कि यूपी की नौकरशाही के सर्वोच्च पद पर बैठे एक अधिकारी ने हाईकोर्ट में एक मामले में एक गलत हलफनामा दायर कर दिया है। गनीमत तो यह रही कि उस शपथपत्र में सरकार की ओर से दायर जवाब को हाईकोर्ट ने फौरन पकड़ लिया।

जी हां, यह प्रकरण है पिछले शुक्रवार का इलाहाबाद हाईकोर्ट का। मामला था उप्र सचिवालय में एलआर यानी प्रमुख सचिव न्याय की नियुक्ति का। यूपी सचिवालय में यह पद पिछले चार महीनों से खाली है। इस पर जवाब सवाल उठा तो हाईकोर्ट ने सरकार को नोटिस देते हुए अपना जवाब के तौर पर हलफनामा दायर करने को कहा। शुक्रवार यानी 26 अप्रैल-16 को जब इस मामले की सुनवाई शुरू हुई तो अदालत में मुख्य सचिव आलोक रंजन भी मौजूद थे। वजह यह कि यह मामला सीधे-सीधे नौकरशाही के कार्य-व्यवसाय से जुड़ा था जिसके मुखिया हैं मुख्य सचिव आलोक रंजन।

मुख्‍य सचिव की ओर से शपथपत्र को पूर्व महाधिवक्ता एससी गुप्ता ने खुलेआम कोर्ट में सुनाया। उन्होंने सुनाया कि सरकार ने हाईकोर्ट से कहा था कि वे तीन अधिकारियों का पैनल सरकार के पास  भेजें, लेकिन सरकार ने हाईकोर्ट को इसका जवाब ही नहीं दिया। बस इसी बात पर हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप कर दिया। जजों की इस पीठ ने कहा कि यह शपथपत्र गलत है, क्याकि सरकार के उपरोक्त पत्र के बाद हाईकोर्ट ने रंगनाथ पाण्डेय के नाम की संस्तुति देते हुए बाकायदा एक पत्र सरकार को भेज दिया था।

बहरहाल, अब पता चला है कि इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट अगले हफ्ते करेगी।

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