: लखनऊ में ही 10 साल के बच्चे के साथ अप्राकृतिक का मामला : आशियाना सामूहिक रेप-कांड में दुराचारी को बचाने वकीलों की टोली दौड़ी : बड़े-बड़े नामचीन वकीलों ने की थी गौरव शुक्ला के पक्ष में मुकदमा में लड़ाई : 13 साल की गरीब नौकरानी को अपहृत कर सामूहिक दुराचार किया था गौरव समेत आधा दर्जन रेपिस्टों ने :
कुमार सौवीर
लखनऊ : आप वकीलों के चरित्र पर सवाल उठाते हैं ? तो जनाब, आपको पता नहीं है कि इसी लखनऊ में ऐसे-ऐसे वकीलों ने अपनी काबिलियत और ईमानदारी से वकालत का परचम फहराया था। ऐसे लोगों के जीवन का मकसद पीडि़त वादकारियों तक न्याय पहुंचाना ही रहा था। उनके लिए प्रोफेशन का मतलब प्रोफेशनल एथिक्स को कड़ाई से लागू कराना होता रहा है। इसके लिए उन्होंने जीवन में हर पल-छिन बाकायदा युद्ध किया है। इतना ही नहीं, अकेले लखनऊ में ही ऐसे-ऐसे वकील हैं जिन्होंने पैसे को लात मार दिया और साफ कह दिया कि तुम्हारा केस चूंकि अपराध से सना हुआ है, इसलिए मैं तुम्हारा यह मुकदमा नहीं लडूंगा।
महामना मदनमोहन मालवीय जी तो इतने महान वकील साबित हुए कि उन्होंने निर्दोष लोगों का मुकदमा खुद ही लड़ना शुरू कर दिया। वह भी बिना किसी फीस या खर्चा के। सारा का सारा वे खुद अपनी जेब से खर्च करते थे। आपको बता दें कि चौरी-चौरा काण्डा में अंग्रेजी हुकूमत ने 170 लोगों को फांसी दे दी थी, लेकिन महामना मदनमोहन मालवीय जी ने फांसी की सजा पाये इन लोगों का मुकदमा खुद लड़ने का फैसला किया और नतीजा यह हुआ कि उनकी जोरदार दलीलों से उनमें से 151 लोगों को अंग्रेज सरकार ने छोड़ दिया।
खैर, यह तो हुआ बीता हुआ वक्त और इतिहास। लेकिन अर्वाचीन इतिहास में भी ऐसे वकीलों की संख्या कम नहीं है जिनमें इंसान, वकील और उसके एथिक्स की धड़कनें धक-धक चलती ही रहती हैं। ऐसे ही एक वकील के पास एक केस आया था। हुआ यह कि एक 8 साल के बच्चे के साथ एक युवक ने अप्राकृतिक कृत्यु कर डाला था। अस्पताल पहुंचाये गये बच्चे की हालत गम्भीर थी। दुराचारी को जेल में पहुंच गया था। लेकिन उसके घरवाले चाहते थे कि उस दुराचारी को जमानत मिल जाए और उसका मुकदमा लड़ा दिया जाए। तो उक्त वकील साहब के चैम्बर में यह केस आया। वकील साहब ने पूरी बात समझी। इसके बाद उन्होंने साफ कह दिया कि वे यह मुकदमा नहीं लड़ेंगे। चूंकि यह वकील साहब खासी ख्यातिनाम थे, इसलिए केस लेकर आये लोगों के होश फाख्ता हो गये। उन्होंने वकील साहब से मुकदमा लड़ने पर जोर देना शुरू कर दिया, तो वकील साहब ने उन्हें साफ-साफ कह दिया कि चूंकि मैं तार्किक और आत्मिक तौर पर समझ चुका हूं कि उक्त युवक ही पूरी तरह अपराधी है, ऐसे में उस युवक की पैरवी कैसे कर सकता हूं। मेरी नैतिकता ही मेरे लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, और ऐसी हालत में मैं किस मुंह से उस युवक के पक्ष में अदालत में तर्क गढ़ पाऊंगा। खैर, अब वह वकील साहब अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज बन चुके हैं और फिलहाल लखनऊ खण्डपीठ में तैनात है।
आपको बता दें कि आशियाना में 13 साल की एक बच्ची घरों में पोछा-झाड़ू लगाकर अपने परिवार का पालन-पोषण करती थी। एक शाम गौरव शुक्ला समेत करीब आधा दर्जन गुण्डों ने उसका अपहरण किया, उसके साथ सामूहिक दुराचार किया और इस दौरान उसके शरीर को लाइटर से दाग-दाग कर प्रताडि़त भी किया। पकड़े जाने पर गौरव शुक्ला को बचाने की आपराधिक कोशिशें की गयीं। उसे नाबालिग बच्चा साबित किया गया। इसके विरोध में लखनऊ की कई बड़ी हैसियतें और सामाजिक संगठन आये, उन्होंने उस बच्ची के पक्ष में आंदोलन छेड़ा। अंतत: सात साल बाद हाईकोर्ट ने गौरव शुक्ला को नाबालिग होने के मामले के दोबारा जांच के आदेश दिये। इसके बाद भी वकीलों ने तर्क-दर-तर्क दिये। इसके बावजूद दो साल, यानी कुल नौ बरस के बाद ही यह तय हो पाया कि गौरव शुक्ला उस दुराचार काण्ड के वक्त पूरी तरह बालिग था। न कि मासूम या दूध-पीता बच्चा, जैसा कि गौरव शुक्ला के वकीलों ने अदालत में साबित करने की कोशिश की थी।
इस मामले में गौरव शुक्ला के पक्ष में मृदुल शुक्ला और गोपालनारायण मिश्र जैसे बड़े वकीलों ने अदालती लड़ाई लड़ी थी, जबकि उस मासूम बच्ची के साथ खड़े रहे जलज कुमार गुप्ता, एक अनाम सा वकील। यह मुकदमा जलज गुप्ता ने जीत लिया।