मुख्‍यमंत्री और पत्रकारों की व्‍यथा एक जैसी: केवल और केवल मकान पर खतरा

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: अखिलेश यादव ने पत्रकारों की पूंछ दबायी और फिर पुचकार कर छोड़ दिया : पूर्व मुख्‍यमंत्रियों को आजीवन आलीशान राजमहल मुहैया कराने का नियम खारिज करने वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया तो मुख्‍यमंत्री के हाथों से तोते उड़ गये : अब पत्रकारों को भी डराने-धमकाने की ट्रिक आजमायी है अखिलेश सरकार ने : 30 अगस्‍त-16 को राज्‍य सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करेगी :

कुमार सौवीर

लखनऊ : प्रदेश के छह पूर्व मुख्‍यमंत्रियों के पैरों तले जमीन क्‍या खिसकी, अखिलेश-सरकार की भी रूह कांप उठी। समझ में नहीं आया कि इन छह-छह विशालकाय सफेद हाथियों को अगर सरकारी बंगले खाली कराके उन्‍हें सड़क पर फेंकने की नौबत आ गयी तो सरकार क्‍या करेगी। इस समस्‍या से निपटने के लिए एक नायाब तरीका खोजा, कि इस मामले पर हंगामा खड़ा किया जाए। अखबारों और न्‍यूज चैनलों में अपने प्रचार के लिए रोजाना बेहिसाब खर्च कर रही अखिलेश-सरकार ने इस मामले में सीधे-सीधे पत्रकारों को सबसे पहले भिड़ा कर उन्‍हें सड़क पर खड़ा करने की नौबत ला खड़ा कर दिया।

अपना सरकारी मकानों का अलाटमेंट करने वाले राज्‍य सम्‍पत्ति विभाग ने सैकड़ों पत्रकारों को मिले सरकारी मकानों का अलाटमेंट निरस्‍त कर दिया है। अब क्‍या, अब यह पत्रकार अपने आशियाने को बचाने के लिए अखिलेश-सरकार के चरणों के नीचे लम्‍ब-लेट हो चुके हैं। हर ओर अखिलेश यादव की जयजयकार हो रही है। ऐलान किया जा रहा है कि चाहे कुछ भी हो जाए, प्रदेश का अगला मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव ही होंगे। मकसद सिर्फ यह कि कैसे भी हो, सरकार से मिले आशियाने को बचा लिया जाए। और इसका इकलौता निदान है सिर्फ और सिर्फ मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव।

आज अखिलेश यादव ने अपने सरकारी आवास के बगल में बने जनता-दर्शन पाण्‍डाल में पत्रकारों को बुलाया था। बुलाने का मकसद जाहिर किया गया था कि पत्रकारों के बीच मुख्‍यमंत्री शिष्‍टाचार मुलाकात करेंगे। यह पहली बार हुआ है ऐसा कोई आयोजन। हमेशा कुछ सूंघने-सांघने को छटपटाते कुछ पत्रकारों को तब ही महक मिल गयी थी जब सूचना विभाग से मिले इस न्‍यौता-एसएमएस में यह लिखा गया था कि इस शिष्‍टाचार-भेंट में कैमरा और मोबाइल नहीं लाया जा सकता है।

यह पहली बार ऐसे निर्देश पत्रकारों को दिये गये थे। यानी, इस शिष्‍टाचार भेंट के दौरान कुछ न कुछ ऐसा कुछ होना ही था जरूर, जिसमें होने वाली बातचीत का सुराग किसी को भी न मिल सके। यह हैरतनाक आशंका थी। और यही हुआ भी। साफ पता चल गया कि यह भेंट पत्रकारों को पटाने की एक कवायद के तौर पर ही है।

शुरूआत में ही अखिलेश यादव ने बता कि, हम और आप एक ही समस्‍या से जकड़े जा चुके हैं। और वह है सरकारी मकान, जिस पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय के एक आदेश में सब की गर्दन पर गंडासा तान रखा है। जाहिर है कि मुख्‍यमंत्री ने इस  दौरान भूमिका केवल इसी तरह बनायी जिससे पत्रकार भयभीत हो जाएं। और उसके बाद जब उन्‍हें यकीन हो गया कि सारे पत्रकार अब उनके अर्दब पर आ चुके हैं, उन्‍होंने राहत देते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार इस मामले के रास्‍ता खोजने में जुटी है और कोई न कोई रास्‍ता खोजा ही जाएगा।

आपको बता दें कि मुलायम सिंह यादव, राजनाथ सिंह, नारायण दत्‍त तिवारी, मायावती, रामनरेश यादव और कल्‍याण सिंह को सरकार ने आजीवन राजमहल नुमा बंगले आबंटित कर रखे हैं। इनकी देखभाल व सुरक्षा, मेंटीनेंस वगैरह पर यूपी सरकार बेहिसाब रकम खर्च करती है। इनमें से मुलायम सिंह यादव, मायावती और कल्‍याण सिंह ने मुख्‍यमंत्री पद से हटने के पहले ही सरकारी खर्च पर अरबों रूपयों से मनचाहा निर्माण कर रखा है।

उधर उपरोक्‍त आदेश का सहारा लेकर अखिलेश सरकार ने अचानक ही करीब पौने छह सौ पत्रकारों और अन्‍य एनजीओकर्मियों को आबंटित भवनों को निरस्‍त कर दिया। अंदाज ठीक वही कि पहले तुम चिल्‍ल-पों कर लो। फिर जब तुम साष्‍टांग हो जाओगे, तो वह मकान तुम्‍हें दोबारा सौंप देंगे। चुनाव सिर पर है, और इसका अहसान तुम इन चुनावों में सरकार की पिपहरी बजाने के तौर पर चुकाओगे।

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