मामला डील का: पेशकार की कुर्सी दलाल को थमा देते हैं आला अफसर

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: नियम-कायदों की धज्जियां उड़ती हैं जौनपुर में, प्रशासन अलमस्‍त : अराजक प्रशासन: वो हाकिम हैं, जो चाहें कर सकते हैं : मंत्री ललई यादव के खासमखास हैं एडीएम साहब, जमे हैं कुर्सी पर :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक बड़े अफसर हैं। ओहदा है एडीएम का। यानी डीएम के बाद के पायदान का। उनका काम है कानून-व्‍यवस्‍था को लागू करना और गड़बडि़यों को दूर करना। लेकिन यह साहब अब खुद ही कानून-व्‍यवस्‍था की धज्जियां उड़ा रहे हैं। प्रशासन तो उनकी मर्जी से चलता है, नियम-कायदे से नहीं। आजकल यह साहब जिसे भी चाहते हैं, पेशकार की कुर्सी पर अपने चहेता पर बिठा देते हैं, जिसका सरकार से कोई लेना-देना तक नहीं होता। जाहिर है कि यह उनकी निजी व्‍यवस्‍था है, जिसका आधार है भारी-भरकम डील का निबटान।

जी हां, यह मामला है जौनपुर का, जहां के एडीएम हैं उमाकान्‍त त्रिपाठी। नायब तहसीलदार से होते हुए अब वे अपने इस आखिरी मुकाम तक यहां तक आये हैं। बड़े अफसरों से खासम-खास वाले रिश्‍ते बनाने-जमाने में महारत है उमाकान्‍त त्रिपाठी की। इसीलिए उनके क्रिया-कलाप भी उनके अधिकारी खुशी-खुशी सहन करते रहते हैं। चूंकि पूरा का पूरा प्रशासन-तंत्र ही ऐसे अफसरों के शिकंजे में है, तो वकीलों की जुबान भी बन्‍द रह जाती है। जाहिर है कि कौन अपनी जान के लिए बवाल ले।

उमाकान्‍त की खास आदत है कि वे नियम-कानून को अपनी जेब में रखते हैं। इतना ही नहीं, वे अपनी इस दबंगई का ऐलान भी खुलेआम करने से गुरेज नहीं करते। जो कुछ भी करना चाहते हैं, वे खुला-फर्रूखाबाद की तरह ताल ठोंक कर करते हैं। यहां तक भी कि वे जब चाहते हैं कि किसी भी सरकारी कर्मचारी की कुर्सी किसी गैर-सरकारी शख्‍स को भी सौंप देते हैं। बिना यह सोचे-समझे कि उनकी इस कोशिश से मुकदमों की फाइलों में हेरफेर भी गुंजाइश ज्‍यादा होती है। लेकिन एडीएम साहब को इससे कोई दिक्‍कत नहीं। सरकारी कर्मचारी उनकी इस आदत से परेशान हैं, लेकिन चूंकि उमाकान्‍त त्रिपाठी के हाथ डीएम और मंत्री तक है, इसलिए कचेहरी के कर्मचारी अपनी जुबान बंद रखे रखने में मजबूर होते हैं।

लेकिन एक कर्मचारी ने हमसे सम्‍पर्क किया। उसने बताया कि उमाकान्‍त त्रिपाठी की क्‍या कार-गुजारियां हैं और उसका अंजाम क्‍या हो सकता है। इस कर्मचारी ने बताया कि यह एडीएम साहब जब भी चाहते हैं, अपनी खुली कोर्ट में जिस भी चाहते हैं, पेशकार की कुर्सी पर बिठा लेते हैं। यह देखने की भी जरूरत नहीं समझते कि इसका अंजाम क्‍या हो सकता है। सरकारी फाइलों का इंतजाम कोई गैरसरकारी शख्‍स देख तक नहीं सकता, लेकिन उमाकांत त्रिपाठी किसी भी ऐरे-गैरे, नत्‍थू-खैरे के हाथों में सरकारी फाइलें थमा देते हैं। इस  कर्मचारी का आरोप था कि जिस दिन किसी कोई बड़ी डील होनी वाली थी, यह अस्‍थाई व्‍यवस्‍था कर देते हैं एडीएम उमाकान्‍त त्रिपाठी।

हमने इस कर्मचारी से पूछा कि उसके इस आरोप का आधार क्‍या है, तो उसने असहाय होकर बताया कि ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है। ऐसे में हमने उस पेशकार से कहा कि किसी भी दिन उमाकान्‍त की अदालत का वीडियो बना कर दीजिए, जिसमें कोई गैर-सरकारी शख्‍स उनके सामने उनकी बगल में बैठ कर पेशकार की कुर्सी पर बैठा हो और सारी कार्यवाही का संचालन कर रहा हो। इस पर उस कर्मचारी ने एक दिन अपर जिलाधिकारी उमाकान्‍त त्रिपाठी की अदालत का वीडियो बना कर मुझे भेज दिया।

आप भी देखिये न, इस वीडियो को। इसमें एक आनन्‍द राज उपाध्‍याय नामक एक शख्‍स  पेशकार की कुर्सी पर बैठ कर एडीएम उमाकान्‍त त्रिपाठी के बगल में बैठ कर सरकारी अदालती कार्यवाही का संचालन कर रहा है। फाइलें लेना, देना और उसे रखने की सारी कार्यवाही कर रहा है। लेकिन हैरत की बात  है कि आनन्‍द राज उपाध्‍याय सरकार का मुलाजिम नहीं है। वह तो मास्‍टर-प्‍लान के आफिस का दलाल है, जो नक्‍शा पास कराने का धंधा करता है। जबकि पेशकार का नाम है शिवकुमार दुबे। हालांकि इस वीडियो के बाद दुबे का तबादला पीलीभीत हो गया था।

यह रहा वह वीडियो, जिसमें इस दलाल दुबे को पेशकार की कुर्सी पर अपने सामने ही बैठ कर उमाकान्‍त त्रिपाठी सरकारी कामधाम निपटा रहे हैं और वह तथाकथित पेशकार दुबे सरकारी फाइलों पर कार्यवाही कर रहा है।

इस वीडियो को देखने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- जय हो जुल्‍फी प्रशासन

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