: पैगम्बर के वक्त खूब होता था नाच-गाना, आपने उस पर रोक क्यों लगायी : तुर्रा यह कि आप हमसे ही पूछते हैं कि कहीं हम आतंकवाद फैलाते हैं : जवाब दीजिए कि काफिर के नाम पर आप दीगर जति वालों पर क्यों कहर बरपाते हैं :
ताबिश सिद्दीकी
लखनऊ : यहूदी मरेगा आप खुश.. शिया मरा आप खुश.. काफ़िर मरा आप खुश.. आप किसी के जीने में भी खुश होते हैं सिवाए मरने के?” यह सवाल है ताबिश सिद्दीकी का। अपने एक ताजा लेख में ताबिश ने कई ऐसे सवालों का जवाब मांगने की जहमत फरमाने की गुजारिश मुसलमानों से की है, जो अब तक सिर्फ धर्म के नाम पर घुप्प अंधेरों में घुप्प दबोचे हुए थे। आइये, पढि़ये कि ताबिश ने किस-किस सवालों पर इस्लाम के हाफिजों-मौलवियों से जवाब मांगा है। लेकिन इसका मकसद यह नहीं कि यह जहालत और बदमगजी सिर्फ इस्लाम के फालोवर्स में है। ऐसी नस्ले हिन्दुओं में भी खूब मौजूद हैं।
कल हाफ़िज़ जी मुझ से कहने लगे कि “देखिये.. ताबिश भाई.. इसका मतलब ये निकला कि बहुसंख्यक चाहते हैं कि आतंक का राज हो.. परिणामो से तो यही लगता है”
मैंने कहा “आप पहले ये बताईये कि आप या आपके नदवा (इस्लामिक संस्था) ने आतंकवाद (आतंक के राज) के खात्मे के लिए क्या किया है अब तक.. किस तरह का विरोध किया?”
कहने लगे “क्या बात करते हैं.. आप उर्दू अखबार नहीं पढ़ते.. वहां कितनी मज़म्मत कि थी आलिमों ने”
मैंने कहा “ये गोली आप किस को दे रहे हैं? यहाँ मैं हूँ और आप हैं और कोई दुसरे मज़हब का नहीं है.. ये चार आलिम आपके अखबार में लिख देंगे तो काम बन जाएगा? जो इतनी बड़ी वैश्विक समस्या है उस के लिए अखबार में आर्टिकल लिखने से काम बन जाएगा? वो आतंकवादी आपके अखबार पढ़ते हैं? जब मुहम्मद साहब का कार्टून बनाया गया आप लाखों की तादाद में सड़कों पर उतरे.. तोड़ फोड़ की.. पाकिस्तान और बाग्लादेश में आगज़नी हुई.. ऐसी मज़म्मत हुई कि देश कांप गया.. और अंत में आप ही के लोगों ने जा कर उन कार्टून बनाने वालों को मार डाला.. ये बताईये आप ये सब आतंकवाद के लिए न कर सके कभी? आपने कितने आतंकवादी मारे अभी तक? जैसे कार्टूनिस्ट को ढूंढ के मारा गया वैसे आतंकी भी तो ढूंढ सकते थे एक दो.. एक दो को ही टपका देते कभी.. कब कितने लाख कि संख्या में आप पहुंचे जंतर मंतर पर?”
कहने लगे “ये तो सारा सर आप हम पर इलज़ाम रख रहे हैं.. कहीं हम आतंकवाद फैलाते हैं?”
मैंने कहा “हाफ़िज़ जी.. अब दुनिया को उल्लू नहीं बना सकते हैं आप.. बरसों से धमाके हो रहे थे भारत में.. आज यहाँ ब्लास्ट.. कल वहां ब्लास्ट.. ये क्यूँ हो रहे थे? क्या मानसिकता थी इन ब्लास्ट के पीछे? कौन मुसलमानों के पीछे पड़ा था यहाँ? क्यूँ ये लोग बम फोड़ कर मासूमों को मार रहे थे? आप लोग कब निकले इनके खिलाफ? सारा भारत देखता रहा.. और एक वक़्त तक तो लोगों ने समझ लिया था कि ये शायद उनकी नियति है.. मगर अब वो ये समझ रहे हैं कि जब आतंकवादियों के ही धर्म के लोगों ने अपने आतंकियों को डराया धमकाया नहीं तो अब जब हमारे कट्टर लोगों के डराने धमकाने से बात बन रही है तो फिर सही है.. ऐसे ही लोगों को लाया जाय अब आगे.. पूरे विश्व ने इंतज़ार किया मॉडरेट मुसलमानों का मगर मुसलमान दिन रात सिर्फ इस्लाम ही बचाता रहा और दलील देता रहा.. इंसानियत कभी न बचाई.. और अब विश्व एकजुट है”
हाफ़िज़ जी कहने लगे “मगर ताबिश भाई.. इस्लाम तो सिखाता नहीं है नफरत.. फिर ये आतंकवादी तो नफरत करते हैं सबसे.. ये इस्लाम के मानने वाले तो हो नहीं सकते.. दुनिया इन्हें मुसलमान कहती है और हमे गाली देती है इनके बहाने”
मैंने कहा “आपने कभी अपनी हदीसों को पढ़ा है हाफ़िज़ जी? अब आप दुनिया को और उल्लू नहीं बना सकते हैं.. क्यूंकि सारा इस्लामिक साहित्य इन्टरनेट पर उपलब्ध है.. क्या क्या झुठ्लायेंगे अब? आप हदीसें बचायेंगे कि इंसानियत ये अब आपके ऊपर निर्भर है?”
हाफ़िज़ जी समझ गए कि मैं क्या कह रहा हूँ.. इसलिए चुपचाप सुनने लगे
मैंने कहा “आप नफरत सिखाते हैं.. इस्लाम ने मूर्ति पूजा से मना किया आप मूर्तिपूजकों से नफरत करने लगे.. काफ़िर शब्द को आप गाली जैसा इस्तेमाल करते हैं.. कुरान ने शराब पीने से मना किया आप शराबी से नफरत करने लगे.. सुवर खाने से मना किया आप सुवर खाने वालों से नफरत करने लगे.. कुरान चीख चीख कर कह रहा है कि यहूदी, इसाई आपके ही समकक्ष हैं क्यूंकि उनके पास भी अल्लाह कि किताब है.. मगर आपका दावा ये कि उन्होंने किताब बदल दी और इस बिना पर आप उनसे नफरत करते हैं.. शियों ने क्या बिगाड़ा है आपका? शिया कुरान मानते हैं और पैगम्बर को मानते हैं और आप कि जिद ये है कि खलीफाओं को मानो और हमारी आतंकी हदीसों को मानो.. और वो ये नहीं मानेंगे तो आप उनके मरने पर खुश होंगे.. यहूदी मरेगा आप खुश.. शिया मरा आप खुश.. काफ़िर मरा आप खुश.. आप किसी के जीने में भी खुश होते हैं सिवाए मरने के?”
हाफ़िज़ जी चुप थे.. पहले तो उनकी आखों में खून उतर आया था गुस्से से मगर फिर मेरी बात को ध्यान से सुनने लगे
मैंने कहा “आपने संगीत हराम कर दिया.. ये हराम वो हराम.. जीना हराम कर दिया.. औरतें गाती थीं नाचती थी पैगम्बर के समय.. युद्ध में नाचती थीं.. जीत का जश्न मनाती थीं.. काबा के भीतर 683 तक जीसस और मरियम कि पेंटिंग बनी थी.. जिसे पैगम्बर ने न मिटाने को कहा था.. यानि कि पैगम्बर के दुनिया से जाने के 51 साल तक वो पेंटिंग काबा में मौजूद थी.. मगर बाद के खलीफाओं ने सब मिटा दिया और पेंटिंग हराम कर दी.. सोचिये अगर आपके मदरसे ये बताने लगें बच्चों को कि काबा में रसूल ने जीसस और मेरी कि पेटिंग बनी रहनी दी थी. तो एक झटके में मूर्ति पूजकों के प्रति नफरत ख़तम हो जायेगी.. तेरह साल (13) तक यहूदियों के जेरुसलम की तरफ मुह कर के मुसलमान नमाज़ पढ़ते रहे.. उसके बाद किबला (जिधर मुह करके नमाज़ पढ़ा जाता है) को बदला पैगम्बर ने और मक्का में काबा कि तरफ मुह करके नमाज़ पढ़ी जाने लगी.. 624 में ये बदला उन्होंने और फिर 630 तक मुसलमान उसी काबे कि तरफ मुह करके नमाज़ पढ़ते रहे जिसमे 365 मूर्तियाँ थीं.. 630 में वहां से मूर्तियाँ हटाई गयीं.. मूर्तियों से इतनी नफरत होती तो 6 साल तक पैगम्बर और उनके साथी 365 मूर्तियों वाले काबे के आगे झुकते रहते?
अगर आपके मदरसे ये बताने लगें बच्चों को कि पैगम्बर की “उम्माह” का मतलब यहूदी, इसाई और मुसलमान तीनो थे तो एक झटके में सदियों से चली आ रही यहूदियों और इसाईयों के प्रति नफरत ख़त्म हो जायेगी.. अगर आपके मदरसे ये बताने लगें कि पैगम्बर का पूरा खानदान मूर्तिपूजक था और पैगम्बर भी उसी परंपरा को मानने वाले थे.. और उनके दादा, चाचा ने आखिरी समय तक इस्लाम नहीं माना और जाने कितने लोगों ने नहीं माना और पैगम्बर ने उन्हें कभी दुत्कारा नहीं.. तो एक झटके में मूर्तिपूजकों के प्रति सारी नफरत ख़त्म हो जायेगी.. मगर आप ये पढ़ाएंगे बच्चों को? आप वही हदीसें बताएँगे जिसमे ये कहा जाएगा कि अली ने उन चार लोगों को जिंदा जला दिया जिन्होंने इस्लाम छोड़ दिया था.. आप ये बताएँगे कि कैसे पैगम्बर स्वयं बनू खुरैज़ा के यहूदियों के गले काटे थे और जब थक गए काट काट के तो अली ने काटे.. ये सब आप बताते हैं.. और आप कहते हैं कि आप नफरत नहीं सिखाते हैं?”
मैंने कहा “अभी वक़्त है.. मुसलमान आपकी बात सुनते हैं.. हमारी नहीं सुनते.. आप लोगों ने कौम को ऐसा पागल बना दिया है कि अगर मैं उन्हें कुछ समझाता हूँ तो मुझ से पूछेंगे कि “ताबिश भाई आप ने आज नमाज़ पढ़ी”.. अगर मैं कहूँगा नहीं तो वो कहेंगे कि “जाईये.. आप की बात का क्या भरोसा.. आप नमाज़ पढ़ते नहीं और इस्लाम हमको सिखा रहे हैं”.. ऐसी घुट्टी पिला रखी है आपने अपने लोगों को.. इन्हें दाढ़ी टोपी वाला नेता चाहिए.. इन्हें हर बात में अल्लाह और रसूल और कुरान बोलने वाला नेता चाहिए.. इन्हें डॉक्टर वो पसंद आता है जो पांच टाइम नमाज़ पढ़े.. इन्हें साइंटिस्ट वो चाहिए जो इस्लाम माने.. इसलिए ये हमारी नहीं आप मदरसे वालों कि जिम्मदारी है अब.. आप इन भेड़ों को अब ढंग से हकियें.. इन्हें इंसान बनाईये.. इस्लाम बहुत सीख चुके हैं ये अब इन्हें इंसानियत का पाठ सिखाईये.. और आप नहीं सिखायेंगे तो हर मुल्क और हर मज़हब आज नहीं तो कल आपके मदरसों पर ताले जड़ देगा.. और ये होना है सौ प्रतिशत होना है”
हाफ़िज़ जी ने कहा अब इजाज़त दीजिये.. और कहने लगे “ताबिश भाई.. मैं स्वीकार करता हूँ कि ग़लती हम में है.. और बहुत बड़ी ग़लती है”
(सच्ची घटना कल शाम के वार्तालाप पर आधारित)