तबाही रोकने के लिए तेजाब पर ही रोक लगानी होगी

सैड सांग

पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी  पर भी फेंका जा चुका है तेजाब

कल्पेश याग्निक

जब पूर्व प्रधानमंत्री एचडी दैवेगौड़ा की पत्नी चेन्नम्मा पर तेजाब फेंका गया तो सारा राष्ट्र भौंचक रह गया था। बारह वर्ष हुए उस वारदात को। उनकी पुत्रवधू भी इस हमले का शिकार हुई थी। मामला पारिवारिक कलह का था। हमलावर उनका भतीजा लोकेश था। किंतु तब सबसे बड़ा प्रश्न यही उठा था कि भारी सुरक्षा होने के बावजूद पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार के साथ ऐसा कैसे हो सकता है? पूजा कर हरदनहल्ली के शिव मंदिर से बाहर निकली थीं चेन्नम्मा। लोकेश के हाथ में एक बाल्टी थी। ऊपर पूजा के फूल सजे थे। नीचे तेजाब भरा था। वही फेंका। पुलिस को कोई शक न हो सका। कोई हथियार इतना सस्ता, इतनी आसानी से मिलने वाला और इतनी सरलता से हमले में काम आने वाला हो ही नहीं सकता जितना कि तेजाब। और कोई दूसरा हथियार जिस्म और इंसानियत की ऐसी तबाही नहीं ला सकता, जितना कि तेजाब। क्योंकि, इसे कोई सुरक्षाकर्मी, स्कैनर, मैटल डिटेक्टर पकड़ ही नहीं सकता। सीसीटीवी भी नहीं।

तेजाब से मौत नहीं होती। तेजाब हर पल मारता है। अब जबकि मंगलवार, 9 जुलाई को यह मामला सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा; निर्णायक घड़ी आ गई है। सुप्रीम कोर्ट उन सभी युवतियों को सबसे बड़ा हौसला दे सकता है जो तेजाब के हमले का शिकार हो, कड़ा संघर्ष कर रही हैं। तेजाब की खुली बिक्री पर यदि कोई कठोर फैसला दिया जाता है तो यह भारतीय समाज का चेहरा और भी सभ्य और उजला बनाने में मददगार होगा।

हाइड्रोक्लोरिक हो या सल्फ्यूरिक और नाइट्रिक एसिड – इनकी काउंटर पर बिक्री 15 से 25 रुपए लीटर कीमत में हो रही है। सफाई के लिए। लैब के लिए। इन कामों के लिए भी तेज़ाब की कोई जरूरत नहीं है। झुलसाता ही है। रोक लगनी ही चाहिए।

सरकारों ने इस घिनौने कृत्य को एक अलग अपराध मानने में ही कोई 33 साल लगा दिए। प्रीति राठी के तेजाब मामले ने सारे घाव फिर हरे कर दिए हैं। मुंबई में रेलवे स्टेशन पर उस पर तेजाब फेंका गया। कोई नौ सीसीटीवी कैमरे लगे थे। हथियार तो है नहीं, जो कैमरे पकड़ सकते।

तेजाब फेंकने वाले किस कदर हैवान होते हैं, इसका सबसे हैरान कर देने वाला वाकया ईरान का अमीना केस है। इलेक्ट्रॉनिक्स की ग्रेजुएट अमीना बहरामी ऑफिस से लौट रही थी कि माजिद मोवाहदी नामक युवक ने उस पर तेजाब फेंका। माजिद उसके पीछे पड़ा था। जबकि अमीना उसे साफ इनकार कर चुकी थी। चेहरा, गला झुलस गया। आंखें जलकर खाक हो गई। बर्बाद अमीना ने लंबी लड़ाई लड़ी। ईरान में ‘आंख के बदले आंख’ का कानून है। उसने वही इंसाफ मांगा। अदालत ने आखिर मान लिया। लेकिन जब माजिद की आंखों में तेजाब की पांच बूंदें डालकर डॉक्टर उसे अंधा बनाने जा ही रहे थे, ऐन मौके पर अमीना ने उसे माफ कर दिया। दुनिया के मानवाधिकार संगठनों की अपील पर। लेकिन सब सकते में आ गए, जब माजिद ने ‘माफी’ को कानूनी ढाल बनाकर उसके इलाज का खर्च उठाने से बाद में साफ इनकार कर दिया। दिमाग, दिल और नीयत सबकुछ भ्रष्ट कर देता है तेजाब।

फैशन मैनेजमेंट की पोस्ट ग्रेजुएट प्रज्ञा सिंह ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि उनकी शादी को सिर्फ 12 दिन हुए थे। पीछे पड़े जिस युवक को इनकार किया था, उसने प्रज्ञा पर तेजाब डाल दिया। 2 साल में 9 प्लास्टिक सर्जरी। अब दूसरी ऐसी युवतियों को ‘स्टॉप एसिड अटैक्स’ संगठन के माध्यम से मदद कर रही हैं। काश, कोई सुप्रीम कोर्ट में उनकी लिखी पंक्तियां पढ़ ले :  खुद को आइने में सिर्फ सपनों में निहारती हूं। अपने पुराने चेहरे को। अब तो मैं सामान्य दिखने के लिए संघर्ष करती हूं। भौहें गायब। हेयरलाइन खत्म। ऐसी कैसे दिख सकती हूं मैं?

(वरिष्ठ विचारक, मीमांसक और सतर्क पत्रकार के तौर पर स्थापित कल्पेश याज्ञनिक दैनिक भास्कर के अधिशासी सम्पादक हैं। यह आलेख उनके कॉलम के तहत प्रकाशित हो चुका है।)

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