नाबालिग उम्र-सीमा में बदलाव गैरजरूरी: केंद्र सरकार

सैड सांग

 

दिल्ली गैंग-रेप जैसी इक्का-दुक्का वारदातें सामान्य नहीं

नई दिल्ली : गंभीर अपराधों में शामिल किशोरों को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का लाभ न देने और किशोर अपराधियों की उम्र सीमा 18 से घटाकर 16 करने के बारे में केंद्र सरकार ने अपना विरोध जताया है। सरकार की ओर से सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि दिल्ली गैंगरेप जैसी एक-दो दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के आधार पर कानून में संशोधन कर किशोर अपराधी की उम्र सीमा घटाना ठीक नहीं होगा।

एडिशनल सॉलिसिटर जनरल सिद्धार्थ लूथरा ने गंभीर अपराधों में संलिप्त किशोरों का ट्रायल सामान्य अपराधियों के साथ चलाए जाने और किशोर अपराधी की उम्रसीमा 18 से घटाकर 16 करने की मांग वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए यह दलील दी। दिल्ली गैंगरेप में नाबालिग आरोपी द्वारा सबसे ज्यादा क्रूरता करने की खबरें आने के बाद सुप्रीम कोर्ट में आठ याचिकाएं दाखिल हुई। इनमें जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के विभिन्न प्रावधानों को निरस्त करने की मांग की गई है। याचिकाओं में कहा गया है कि हत्या और दुष्कर्म जैसे गंभीर अपराधों में शामिल किशोरों का ट्रायल जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में न होकर सामान्य अपराधियों के साथ सामान्य अदालतों में किया जाए। मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सोमवार को इन याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।

सिद्धार्थ लूथरा ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता कानून में संशोधन का आधार और कारण नहीं दे पाए हैं। एक-दो दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं होने पर कानून में संशोधन कर किशोर अपराधी के लिए तय उम्र सीमा घटाना ठीक नहीं है। उन्होंने अपराधों का आंकड़ा पेश करते हुए कहा कि किशोरों के अपराध में शामिल होने की घटनाओं में मामूली बढ़ोतरी हुई है। लूथरा ने यह भी कहा कि 1989 के अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण घोषणापत्र को भारत ने दिसंबर, 1992 में स्वीकार किया और उसी के आधार पर जुवेनाइल जस्टिस एक्ट बनाया गया। उन्होंने इस घोषणापत्र और कानून की विभिन्न धाराओं का हवाला देते हुए कहा कि इन्हें बच्चों के संरक्षण और देखभाल के उद्देश्य से बनाया गया है। घोषणापत्र और कानून दोनों में ही नाबालिग उम्र सीमा 18 वर्ष है। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने गंभीर अपराधों में शामिल किशोरों को जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का लाभ न देने की दलीलें दीं। उनका कहना था कि अगर किशोर अपराधी गंभीर अपराध में शामिल है और वह उस अपराध की प्रकृति व गंभीरता समझने लायक है तो उसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का लाभ नहीं मिलना चाहिए। कुछ लोगों ने जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में अधिकतम तीन वर्ष तक ही सजा दिए जाने के प्रावधान का भी विरोध किया। यह न्यायाधीश पर छोड़ा जाए कि वह अपराध की प्रकृति के हिसाब से सजा तय करे।

 

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