: उत्तराखंड में भिक्षा-वृत्ति प्रतिबंध, यूपी में कब होगा : क्या वाराणसी, क्या आगरा और क्या लखनऊ। हर चौराहे भिखारियों के रहमोकरम पर : अकेले लखनऊ के पॉलिटेक्निक चौराहे के आसपास मंडराते रहते हैं करीब एक हजार भिखारी : जहां भी दिखते हैं विदेशी सैलानी, टूट पड़ता है भिखारियों का रेला :
मेरी बिटिया संवाददाता और प्रतिभा सिंह
लखनऊ और वाराणसी : लखनऊ के पॉलिटेक्निक चौराहे पर और उसके आसपास करीब एक हजार से ज्यादा भिखारी मंडराया करते हैं। उनमें पुरूष तो कहीं दिखता ही नहीं है। सब की सब महिलाएं। विभिन्न उम्र की। हर एक की गोद में एक दुधमुंहा बच्चा और आसपास खड़े दो-तीन नन्हें-मुन्ने से बच्चे। बेहद प्रोफेशनल अंदाज में भीख मांगते हैं। सब के सब एक ही बात कहते हैं, हाथों को मुंह की ओर ले करते हुए इशारे में, कि:- भूख लगी है।
महिलाएं अपने पेट के साथ ही साथ अपने दुधमुंहे बच्चे की ओर इशारा करते हुए उसे भूखा बताते हुए पैसा मांगते हैं। हालत इतनी दयनीय प्रदर्शित की जाती है कि अगर उन्हें रूपया नहीं दिया गया तो वे मर ही जाएंगे। एक से पैसा मिलते ही यह लोग दूसरे शिकार की ओर लपक पड़ती हैं। एक स्थानीय दूकानदार का कहना है कि यह सब के सब बांग्लादेशी हैं, और इनमें से प्रत्येक की आमदनी पांच से सात हजार रूपया महीना तक है।
वाराणसी में सामाजिक दायित्वों में जुटी सामाजिक कार्यकर्ता प्रतिभा सिंह ने अभी हाल ही अपने फेसबुक वाल पर दर्ज किया है कि:- पिछले कुछ सालों से मैं यही तो कह रही हूँ कि बनारस से बाल भिक्षावृत्ति का पूरी तरह खात्मा हो जाना चाहिए। कुछ महीनों पहले उत्तराखंड से एक अच्छी खबर आयी। खबर यह है कि पूरे प्रदेश (उत्तराखंड) में भिक्षावृत्ति को अपराध घोषित करते हुए भिक्षावृत्ति निषेध कानून कड़ाई से लागू कर दिया गया है।
मतलब यह कि अब पूरे प्रदेश में जहां भी भिखारी दिखेंगे, पुलिस का डंडा चमक पड़ेगा। कानूनी कार्रवाई तो खैर अलग होगी ही।
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लेकिन अब सवाल यह है कि आखिर उत्तराखंड जैसे प्रदेश इस गम्भीर समस्या का समाधान खोज सकते हैं, तो उत्तर प्रदेश में इस बारे में गम्भीर चर्चा की जरूरत क्यों नहीं महसूस की जाती है। हकीकत यह है कि यूपी में भी भिक्षावृत्ति के विरुद्ध ऐसे कड़े कदम उठाना अपरिहार्य हो गया है। प्रदेश में भिक्षुओं की लगातार बढ़ती संख्या और उनके द्वारा किए जा रहे अपराधों का ग्राफ जिस तरह बढ़ रहा है वो गंभीर चिंता का विषय है। सरकार और प्रशासन को इस बारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है।
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वाराणसी प्रशासन को तो भिक्षावृत्ति के मसले पर सख्त होना ही पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनारस की छवि को खराब होने से बचाने के लिए भिक्षावृत्ति निषेध कानून का कड़ाई से पालन न हुआ तो विदेशों में बनारस की छवि को गंभीर नुकसान होगा।