कहानियां उड़ान-छल्‍लों की: डिरेबर की बीवी को मिला एक अरब रूपयों का कमीशन

मेरा कोना

: ऐसा मंत्र पढूंगा कि तेरा चेहरा बिलकुल चिरागे-सिंघल हो जाएगा। न धोने लायक, न पोंछने लायक : बीवी को उसी बिल्‍डर की बीवी को मिला एक अरब रूपयों का कमीशन भुगतान : सिंघल पेंटर आजकल दिल्‍ली में डिरेबर में हवा भर रहा, पाइप है बाप का, पार्टनर है सुपाल और एयर-पम्‍प है अमर-गाथा का : कहानियां उड़ान-छल्‍लों की, जिसने सपा में छेद कर दिया -दो :

कुमार सौवीर

लखनऊ : जिन बाबू ने दिया लाल नम्‍बरी नोट, उनकी नियत में भरा है अमरसिंघवाई खोट, खायेगा गल्‍ली-गल्‍ली चोट, जब भी लेगा चुम्‍मा की ओट। ऐसे अर्द्ध-पुरूष को, नम: गायत्री को, नपुंसक को, ओल-झाल को, प्‍यारे-प्‍यारे सुपाल को मैं, दिल से, दिमाग से, कपाल से, सुक्रिया, अदा, करती हूं।

ढम्‍म ढम्‍म ढम्‍म किड़ किड़ किड़  ढम्‍म—- नटी के शुक्राने की बांग पर नगाड़े की जोरदार चोट पड़ती है। इसके साथ ही नौटंकी इष्‍टाट।

नटी : उठ उठ नासपीटे। कितनी देर तक सोएगा? अरे तू नट है या नवनीत सिकेरा, कि दो-चार फां-फूं टाइप हवा-हवाई फेंक कर फिर खर्राटें भर लेता है। काम का, न धाम का, ढाई पसेरी अनाज का। कुम्‍भकर्ण कहीं का।

नट : काहे सुतापा सान्‍याल की तरह झूठ बोल रही हो? सब को पता है कि मोहनलालगंज में दो साल पहले मिली खून से सनी औरत की लाश को लेकर क्‍या-क्‍या गुल नहीं खिलाया गया था? सारे हत्‍यारे-बलात्‍कारी साफ बचा लिये गये और वह बेचारा सींकिया गार्ड तब से ही जेल में सड़ रहा है।

नटी : न जाने कौन सी पट्टी चढ़ा दी तूने पॉवर एंजेल के नाम पर अक्‍लेस की आंखों पर, कि उसे अब कुछ दिखता ही नहीं? सुतापा तो आजकल सियापा किये बैठी है, उसे कुछ सूझता ही हीं। हर एक को पहले तो अपनी मुंडेर पर कूदने का निमंत्रण देती है, लेकिन अगले ही दिन उसे बर्खास्‍त कर देती है। गजब पैरलल दूकान खोल रखी है कि उसमें एक भी ग्राहक नहीं फंसता। सारी मार्कीट खींच किये बैठा है केकड़ा, अपनी 1090 वाली दूकान में। लेकिन तू अब उसको छोड़, उस डिरेबर की सुना मेरे करेजऊ दिलबर?

नट : धीरे-धीरे बोल। पुराना चीफ सेक्रेट्री आजकल दिल्‍ली में बैठ कर उसी डिरेबर में हवा भर रहा है। पाइप है उसके बाप का, पार्टनर है सुपाल और एयर-पम्‍प है अमर-गाथा का। कहां चीफ-बॉस और कहां एनसीआर का कमिश्‍नर। बहुत हो गया अपमान। अब तो उसे सिर्फ बदला लेना है। अक्‍लेस ने तो उसकी दूकान ही बंद करा दी। अब तो कोई जलेबी के लिए भी नहीं पूछता है।

नटी : इसीलिए कहती हूं कि प्रतीकों पर बात मत कर। प्रजापालक गायत्री का मंत्र कब तक पढ़ेगा राजनीति के चमरगिद्ध? पूरी सल्‍तनत दक्खिन हो गयी, लेकिन अब तक तुझे समझ  में नहीं आता है। अबे डिरेबर की कहानी सुना, डिरेबर की। वरना ऐसा मंत्र पढूंगा कि तेरा चेहरा बिलकुल चिरागे-सिंघल हो जाएगा। न धोने लायक, न पोंछने लायक। पॉटी किये बच्‍चों की तरह ढेंढा चियार-चियार कर चलेगा।

नट : कौन डिरेबर? ओ हो, वह डिरेबर। अरे वह तो आजकल सातवें गियर पर वह डिरेबर अरबों के धंधे पर हाथ साफ कर रहा है।

नटी : वो कैसे रजऊ?

नट : अक्‍लेस की भलमनसाहत के चलते। और क्‍या। वरना कोई दूसरा होता तो अब तब ऐसी जगह पर लात पड़ चुकी होती, कि जिन्‍दगी भर बैठना-उठना दूभर हो जाता।

नटी : अरे हुआ क्‍या, यह तो बता मेरे राजा?

नट : अब तक तो अक्‍लेस को उस पर बिस्‍बास होने लगा था कि यह डिरेबर काबिल है। खुर्राट बाप की अक्‍ल ने सलाह दी कि सत्‍ता मिल गयी है तो अब पैसा उगाहना शुरू करो। बाप पहले ही एक बड़े बिल्‍डर के यहां अधिशासी निदेशक बन चुका था। उसके अनुभवों के बल पर फिर नयी बिसात बिछायी गयी। डिरेबर की बीवी को उसी बिल्‍डर के यहां एजेंट बनवा दिया। कमीशन तय हुआ तीन फीसदी। अब खबर है कि हाल ही उस डिरेबर की बीवी को उसी बिल्‍डर की बीवी को एक सौ करोड़ रूपयों का भुगतान कमीशन के तौर पर हुआ है। अफसरों-बिल्‍डरों पर असर दिखने लगा। डीलिंग शुरू हो गयी। धंधा धमाके से चौव्‍वन निकल पड़ा।

लेकिन जैसे इस डिरेबर ने अपने पैंतरे बदला शुरू किया, अक्‍लेस की समझ में आने लगा। पता चल गया कि यह तो खालिस धोखा है। नतीजा प्रमोशन के रास्‍ते खत्‍म हो गये, डिरेबर को किलिंजर बना दिया गया। ख्‍वाब थे कि सीधे सीएम पर नीचे-उप्‍पर गच्‍चा देकर अपनी काबिलियत दिखायेंगे, ताकि रंग पुख्‍ता जमे। लेकिन किस्‍मत ऐसे खूंटे पर बैठ गयी कि सारा-किया सरभण्‍ड हो गया। अब तो सचिव-डीजीपी को लादना पड़ रहा है। हवाई जहाज न हुआ, लद्दू-खच्‍चर हो गया। जो चाहे, बैठ जाए।

नटी : ओ हो। फिर अब क्‍या होगा मेरे ललछऊं चुम्‍मा?

नट : होगा क्‍या, बड़ी सत्‍ता से न सही, चिरकुट सत्‍ता तक टंग गया है, जैसे बुलंदशहर से हापुड़ वाली बस के कंडक्‍टर हल्‍ला मचाया करते हैं कि गुलावटी, स्‍याना, गुलावटी। ठीक उसी तरह डिरेबर ने सुपाल, सुपाल, सुपाल चिल्‍लाना शुरू कर दिया। उसके बाप और उसकी बीवी ने भी एक ओर सुपाल-सुपाल चिल्‍लाकर आदित्‍य की बांग देना शुरू किया, तो दूसरी ओर प्रतीकों के बल पर साधना-ध्‍यान लगाना शुरू कर दिया।

नटी : लेकिन इसका नतीजा क्‍या निकलेगा?

नट : निकलेगा नहीं, निकल चुका है।

नटी : वह क्‍या?

नट : कल बताऊंगा मेरी जान, तब तक तू नपुसंक टाइ नम्‍बरी लोगों के पोटेंसी-टेस्‍ट की तैयार कर ले। अमर ने अगर कहा है तो सोच-समझ कर ही कहा होगा। आखिरकार अमरवा इसी क्षेत्र का तो निर्विवाद कीड़ा है। बिलकुल गंदा-कीट। है कि नहीं ?( क्रमश:)

बड़े-बड़े बिलौटे टाइप कौवे-मूस मौजूद हैं इस कहानी में, जिन्‍होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए हर चीज को खोद डाला। एक बिल से दूसरे बिल तक। जहां खोदना चाहिए, वहां भी, और जहां नहीं चाहिए था वहां भी खोद डाला इन खुदासे चूहों-मूसों-बिलौटों-सियारों ने। इन लोगों ने अपने निजी कुत्सित लाभों के लिए सपा का बण्‍टाढार करने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी। इस पूरी श्रंखला-बद्ध कहानी को सुनने-पढ़ने के लिए निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- कहानी राजा उड़ान-छल्‍ला की

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