बड़े पत्रकार ने हड़पा 36 करोड़ का ठेका

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: नेताओं से करीबी रिश्‍ते काम आ गये : ठेका हासिल करने के बाद उसे कमीशन वसूल कर दूसरे का थमा दिया इस पत्रकार ने : जातीय-समीकरणों में माहिर इस पत्रकार की चालों से मोहित-प्रभावित हैं उसके संस्‍थान के बड़े-बड़े सम्‍पादक :

कुमार सौवीर

लखनऊ : सच बात तो यह है कि जो पत्रकार छोटी जमीन पर घुइयां-अरबी बोने की जुगत में होता है, उसे घुइयां ही मिलता है। बहुत हुआ तो उसके पत्‍तों से बनी सेहुना-पतौड़ा। लेकिन जो पत्रकार साक्षात कुबेरों को तेल लगाते हैं, उनके लिए टकसाल के द्वार हमेशा खुले होते हैं। बस मौका भर चाहिए। मौका आया, तो दरवाजा हल्‍का सा खुला और भरभरा कर निकली रकम आपकी जेब तक सरक जाएगी। बाकी सब टापते रह जाएंगे। लखनऊ के एक बड़े पत्रकार ने अपना दिमाग इस्‍तेमाल किया, और आज नतीजा यह है कि उसने 36 करोड़ का एक भारी-भरकम ठेका हासिल कर लिया।

क्‍या समझे चिरकुट दल्‍ला-पत्रकारों। तुम आपूर्ति, दारोगा और अमीन जैसे छुटभैयों की दलाली करने के चक्‍कर में रोजाना बमुश्किल हजार-पांच सौ उगाहते रहते हो। आरटीओ में अपनी नाक रगड़ते हो, अफसरों-मंत्रियों के बीच बाबुओं की झूठी-सच्‍ची बुराई करते हो। खद्यान्‍न की बोरियां और तेल की पिपिया झटकते हो, दारोगा से चाय पीकर अपनी रंगबाजी का प्रदर्शन करते घूमते रहते हो, जबकि ओहदे में तुम्‍हारा बाप गजब पतंग उड़ा कर आज उतनी ऊंचाई तक पहुंच गया, जहां उसका सम्‍पादक तक नहीं सोच सकता था। लेकिन चूंकि आज इस पत्रकार ने अपने सम्‍पादकों को भी काफी राशन-पानी खिला-पिला रखा है, इसलिए किसी को भी तनिक भी ऐतराज नहीं। बल्कि सब गदगद ही हैं। इस पत्रकार के चलते इस सम्‍पादक के भी उन ओहदों तक भेंट-मुलाकात का जरिया बनता-खुलता जा रहा है, जहां उसकी कल्‍पना तक उसे नहीं थी।

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पत्रकार

खबर यह है कि एक बड़े अखबार के समाचार सम्‍पादक ने यह ठेका हासिल किया है। सूत्र बताते हैं कि इस पत्रकार के करीबी रिश्‍ते एक मंत्री से हैं, ओर यह रिश्‍ते उसके पत्रकार बनने के बाद बने। आधार था जातीय एकसमरसता, बंधुत्‍व और अपनी जाति में एकरूपता व समग्रता का। बात-बहादुर तो पहले से ही यह पत्रकार था, मंत्री को उसका लहजा-अंदाज बहुत जंच गया। घोड़े एकसाथ दौड़ने लगे। बहुत जल्‍दी ही उस पत्रकार ने उस मंत्री की करीबिया उस अखबार के मालिकों-सम्‍पादकों से करा दीं, बदले में मंत्री ने उस अखबार के मालिक-सम्‍पादक से कह कर उस पत्रकार को उस संस्‍थान में एक बड़े अहम ओहदे तक पहुंचवा दिया।

पायदान जब काफी ऊंचा हो गया, तो इस पत्रकार ने अपनी पींगें और बढ़ानी शुरू कर दीं। आखिरकार धन भी तो आना ही चाहिए था न, इसलिए। तो साहब, वह मौका आखिरकार आ ही गया। नेता-पत्रकार गंठजोड़ रंग लाया और इस पत्रकार की जिन्‍दगी में बहार आ गयी। दो-चार, दस-बीस लाख ही नहीं, बल्कि इस पत्रकार ने तो पूरा का पूरा 36 करोड़ का एक बड़ा ठेका झटक लिया। इतना ही नहीं, यह ठेका हासिल करने के बाद उस पत्रकार ने अपने गले में घंटी नहीं बांधे रखी। ठेका का भरपूर गोश्‍त खाया, और हड्डियां गले में लटकाने के बजाय उस ठेका को किसी दूसरे का थमा दे दिया। बदले में मोटी रकम बतौर कमीशन वसूल ली।

तो साहब, यह 36 करोड़ का ठेका अब पत्रकारिता जगत में खासा चर्चित होता जा रहा है। पता चला है कि इस पत्रकार ने अपने संस्‍थान में अपने लोगों की एक टोली भी तैयार कर ली है, जो उसके लिए अब भविष्‍य में सिंडीकेट के तौर पर काम करेंगे।

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