: झटके में याद आने लगे त्रेता से लेकर द्वापर तक के किस्से : एक जज की आत्मकथा- आठ :
राजेंद्र सिंह
बांदा: (गतांक से आगे) जिला जज के स्थानान्तरण का आदेश आ गया । नए जिला जज श्री जेबी सिंह आ रहे थे जो बेधड़क और ईमानदार छवि वाले थे ।
मैंने चैन की सांस ली । अब जिला जज सेवक सरन गुप्ता जी की विदाई पार्टी का समय आ गया । विवेक दुबे अर्ध शासकीय पत्रों के बोझ के नीचे दबे थे । और मैं उनके कृतित्वों के नीचे । कृष्ण चंदर की कहानी “जामुन का पेड़” की याद आ रही थी ( न पढ़ा हो तो ऑनलाइन पढ़ लेना ) । हम दोनों की बात हुई ।ये भी याद था कि हमारे परिवार के वरिष्ठतम सदस्य शाही साहेब को स्थानांतरण के समय चाय पर टरकाया गया था और जिला जज द्वारा उसमें कोई योगदान भी नहीं किया गया । जिला जज अगर ये समझे “अहम ब्रम्हास्मि” तब वो चला चुका जिला ।
वेद व्यास के मानस पटल पर एक महान ग्रन्थ की रचना अंकित हो चुकी थी । उन्होंने ब्रह्मा से कहा कि कौन लिखेगा ।ब्रह्मा ने गणेश जी का नाम सुझाया ।व्यास जी गणेश जी का सदर आव्हान किया और वे उपस्थित हुए । व्यास जी ने प्रार्थना की तब गणेशजी ने कहा वे लिखेंगे लेकिन उनकी लेखनी रुकनी नहीं चाहिये नहीं तो वे वहीँ रुक जाएंगे ।व्यास ने स्वीकार करते हुए अनुनय किया कि विध्नहरण आप श्लोक का अर्थ ठीक ठीक समझ लें, तभी लिखें ।व्यास जी ने लिखाना शुरू किया, , कभी कभी क्लिष्ट श्लोक बोलते जिससे उन्हें थोड़ा समय मिल जाता था । इस तरह महाभारत ग्रंथ पूरा हुआ। व्यास ने अपने पुत्र शुकदेव को इसे कण्ठस्थ कराई ।देवों को नारद ने ये कथा सुनाई ।शुक ने गन्धर्व और राक्षसों , यक्षों को सुनाई । मानव जाति में वैशम्पायन ऋषि ने इस कथा का प्रसार किया । नारद ने बताया था कि छोटी मोटी महाभारत न्यायपालिका में भी होती रहेगी ।हर युग मे राम की सहायता करने वाला लक्ष्मण भी अवतरित होगा । अर्जुन के लिए वो छली कृष्णा आएगा ।। पता नहीं किसने ये दुष्प्रचार कर दिया कि विवेक तो लक्ष्मण स्वरूप है। वैसा इसका कोई सीधा संबंध मुझसे और विवेक दुबे से नहीं है ।
ये उस समय की बात है जब पापा बाँदा आये हुए थे । जज साहब की विदाई पार्टी की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं ।अंशदान लेने हरकारे निकल चुके थे ।पीड़ित पक्षकार मैं और विवेक थे । आपसी विचार विमर्श से किसी निष्कर्ष पर पहुंचना था ।पापा ने जब Calcutta University से MA प्रायोगिक मनोविज्ञान में किया तब उस दौरान उनका IQ टेस्ट हुआ था जो 9.9+ आया था । लिहाज़ा हम द्वय ने एक पत्र बाँदा के जिला जज को लिखा जिसकी प्रति सभी अधिकारियों के पृष्ठांकित की गई । पापा ने GO आदि का हवाला दिया और पत्र को सारगर्भित बनाया । जज साहब की विदाई समारोह का दिन, समय व स्थान निश्चित हो गया और मेरा उसी दिन मानिकपुर स्थल निरीक्षण का कार्यक्रम बन गया । विदाई समारोह की पूर्व रात्रि को हमनें उस असाधारण पत्र को , जो संभवतः उत्तर प्रदेश न्यायपालिका का ऐसा पहला संग्रहणीय पत्र होगा जो किसी ने आजतक देखा न होगा , जिला जज और सभी अधिकारियों को प्राप्त कराया और अगले दिन भोर में मैं और विवेक दुबे ट्रेन पकड़ कर मानिकपुर पहुँच गए ।
वो पत्र तो अभी खोजे नहीं मिल रहा पर उसका मुख्य सारगर्भित अंश आज भी याद है ।
” आदरणीय महोदय ,
आपका स्थानांतरण प्रतापगढ़ के लिए हो गया है । हम लोग आपके अच्छे भविष्य की कामना करते हैं ।आप जहाँ भी रहे खुश रहे । हम लोग चाह कर भी आपकी विदाई पार्टी में शामिल नहीं हो पा रहे है क्योंकि इससे पहले अपने न्यायिक परिवार के वरिष्ठतम सदस्य श्री शाही राम जी के स्थानांतरण पर आपने कोई विदाई पार्टी नहीं की और न ही अपना अंशदान दिया ।”
इसके अलावा भी लिखा गया था जो इस समय याद नहीं आ रहा । (क्रमश:)
राजेंद्र सिंह यूपी के उच्च न्यायिक सेवा के वरिष्ठ न्यायाधीश रह चुके हैं। वे लखनऊ हाईकोर्ट के महानिबंधक और लखनऊ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश समेत कई जिलों में प्रमुख पदों पर काम कर चुके हैं। हालांकि अपने दायित्वों और अपनी जुनूनी सेवा के दौरान उन्हें कई बार वरिष्ठ अधिकारियों का कोपभाजन भी बनना पड़ा। इतना ही नहीं, राजेंद्र सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट में प्रोन्नत करने के लिए कोलोजियम में क्लियरेंस भी दी गयी थी। लेकिन विभागीय तानाबाना उनके खिलाफ चला गया। और वे हाईकोर्ट के जज नहीं बन पाये। अपने साथ हुए ऐसे व्यवहार से राजेंद्र सिंह का गुस्सा अब आत्मकथा लिखने के तौर पर फूट पड़ा। उनके इस लेखन को हम धारावाहिक रूप से प्रकाशित करने जा रहे हैं। उनकी इस आत्मकथा के आगामी अंक पढ़ने के लिए कृपया क्लिक कीजिए:-
एक जज की आत्मकथा