: जब आवारगी पर आमादा लड़के इशारों में बेशर्मी से हंसते हैं : आशु चौधरी अर्शी की इस कविता को पढ कर दहल जाएंगे आप, शर्तिया : क्यों भेजा गया उसे पूरक नामक वस्तुओं में शामिल करने :
::: अर्शी :::
कुछ लड़कों की बातें सुनती
उन बातों में धँसती हुई लड़की।
सोचती है … !
वे दूसरी दुनिया के हैं, या हैं छलावा?
या कि हैं कई भूलभुलैया एकसाथ?
आवारगी के रास्ते, अजीब से शब्द
और उनके अर्थ व सारांश,
ख़त्म होते हैं एक बेशर्म सी हँसी के साथ।
वे अभिनय के साथ बैठाते हैं
सामन्जस्य कथित सभ्य समाज से।
फिर लौट जाते हैं रात होते ही अपने ख़ोल में।
अब परेशान हो जाती है लड़की,
कि क्यूँ भेजा गया उसे यहाँ
बनाकर पूरक, नाम दे सृष्टि का !
दरअसल पूरक वस्तुओं में
दिमाग़ होना ही नहीं चाहिये।
हृदय, भाव, संवेदना से पूरित ही नहीं
होनी चाहिये पूरक वस्तुयें।
अन्यथा वे दिये गये उद्देश्य से भटक जायेंगी
और बन जायेगी असाम्य की स्थिति।
लड़की अब प्रयास करती है पूरक बनने का,
किंतु स्वयं से भी तो आगे निकल आयी है।
अब वापसी के रास्ते तंग हैं,
आगे बढ़ती जाती है अब लड़की।
नाख़ून से ख़ुरच देती है पृथ्वी का कोना,
पलट देती है कुछ मिट्टी,
टपका देती है कुछ नमकीन बूँदें
रख देती है कुछ पत्ते,
डालकर मिट्टी दबा देती है कसकर।
अपवादों पर कोई निष्कर्ष नहीं दिये जाते।