: कोई भी प्रशासन अपनी जुल्फी से नहीं, जन-समर्पित दायित्वों से सुधरता है : आखिर कैसे कोई प्रशासन इस सीमा तक नीच बन सकता है, समझ में नहीं आता : विधायक को सरकारी अस्पतालों की बदहाली के लिए वक्त ही नहीं :
कुमार सौवीर
लखनऊ : यह सवाल आज आज तब दिल-दिमाग को बुरी तरह मथ गया, जब आज अचानक मैं एक मरीज से मिलने जौनपुर जिला अस्पताल पहुंचा। काफी देर बाद शौचालय की जरूरत महसूस हुई। सरकारी शौचालय बहुत गन्दा था। मैंने एक डॉक्टर से निवेदन किया, तो उसने डॉक्टर्स-रूम भेज दिया।
कमरे में चलते कई एसी पूरे कमरे को शीतल रखे थे। तीन बिस्तर भी सजे थे। अटैच्ड बाथरूम भी था। लेकिन अंदर जाते ही दिमाग भन्नाय गया। वहां के टॉयलेट के भीतर दो यूज़्ड कंडोम पड़े थे। समझ में ही नहीं आया कि सरकारी अस्पताल की असल जरूरत किस लिए होती है।
जाहिर है कि यह अव्यवस्था का मामला है। आप इस फोटो पर नजर डालिये यहाँ जो रोगी कल्याण समिति बनायी गई है, उसमें डीएम तो खुद को अध्यक्ष बनाये रखे है। बाकी डाक्टर सदस्य हैं। लेकिन हैरत की बात है कि जो विधायक शचीन्द्र त्रिपाठी है उसे सबसे नीचे किसी वार्ड-ब्वाय या चपरासी की तरह दर्ज किया गया है। मानो, अभी समिति की बैठक होगी, और उसके बाद विधायक शचीन्द्र त्रिपाठी जूठे ग्लास और पत्तल उठाए के लिए लपकेगा।
क्या राय है शचीन्द्र मियां ? जुल्फी-प्रशासन कैसा चल रहा है? मेज-टेबल-फर्श आदि साफ कर दिया या नहीं? जल्दी कर दो, वर्ना जुल्फी झटक पड़ेगी