जब कोई लड़की जमीन खुरच कर मिट्टी पर टपका देती है कुछ नमकीन बूंदें

: जब आवारगी पर आमादा लड़के इशारों में बेशर्मी से हंसते हैं : आशु चौधरी अर्शी की इस कविता को पढ कर दहल जाएंगे आप, शर्तिया : क्‍यों भेजा गया उसे पूरक नामक वस्‍तुओं में शामिल करने : ::: अर्शी ::: कुछ लड़कों की बातें सुनती उन बातों में धँसती हुई लड़की। सोचती है … […]

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तेरी मां-बहन की &%^$#&^@। क्या यही दिलवालों की दिल्ली है?

: कनॉट प्लेस में सरेआम बिलखती दीख रही हैं युवतियां : कहीं बाला-हृदयों को कुचल न दें ऐसी आधुनिक संस्कृति : कोई भद्दी गालियां देती घूमती हैं, तो कहीं चुपचाप अकेले में हिचकियों को सम्भालने की जुगत में : कुमार सौवीर नई दिल्ली : आइ विल फक यू। कमीने, हरामजादे बास्टर्ड। मदर-फकर, ब्लाडी बास्टर्ड। यू […]

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कोमलता के निरीहता बनने पर उसे कठोर हो जाना

: काश मैं स्त्री हो पाती … नारीपन मैं ढ़ल पाती … : ”पैदा हो पायी बच्चियाँ अपने लड़कीपन में ऐसे उगती हैं, जैसे दीवार पर उभरी आकृतियाँ। सुंदरता लाने के लिये दीवारों पर पोत दिया जाता है रोग़न।” स्त्रीत्व एक गुण है, एक भाव है, जो देवताओं को भी दुर्लभ है। आज आम स्त्री […]

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