कन्‍याभ्रूण। डॉक्‍टर एक, सेंटर अनेक, जांचें धकाधक

बिटिया खबर

: न मान्यताप्राप्त डिग्री और न ट्रेनिंग, रेडियोलाजिस्ट के तौर पर अवैध रजिस्‍ट्रेशन हो रहा है पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत : अधिकांश रजिस्‍टर्ड एमडी रेडियोलॉजिस्‍ट को अल्‍ट्रासाउंड का ज्ञान तक संदिग्‍ध : मेरीबिटिया डॉट कॉम की पहल पर निकले डरावने तथ्‍य :

कुमार सौवीर

लखनऊ : ओ हो। तो आप अगर कन्‍या भ्रूण हत्‍या की बढ़ती तादात और उनकी बेतहाशा बढ़ती आशंकाओं को लेकर चिंतित हैं, तो फिर आपको सरकारी कामकाज की शैली पर एक नजर डालनी होगी. मां के पेट पलने वाली अजन्‍मी बेटियों को मौत के घाट तक उतारने के लिए असल जिम्‍मेदार है पीसीपीएनडीटी एक्‍ट का दुरूपयोग जो कि अवैध कमाई का बड़ा जरिया बन चुका है.

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डॉक्‍टर

इसका खुलासा तब हुआ जब प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम ने पूरे देश और खास तौर पर यूपी के सभी जिलों में सरकारी कागजों और वहां दर्ज सूचनाओं का जायजा लिया। मेरी बिटिया डॉट कॉम ने इस अभियान के तहत प्रदेश के सभी मुख्‍य चिकित्‍सा अधिकारियों, मुख्‍य चिकित्‍सा अधीक्षकों, जिलाधिकारियों, पीसीपीएनडीटी के तहत गठित समिति के पदाधिकारियों, सभी मेडिकल कॉलेजों तथा देश के सभी एम्‍स और भारतीय चिकित्‍सा परिषद तथा सभी प्रदेशों के चिकित्‍सा परिषदों से इस बारे में विस्‍तृत जानकारियां हासिल करने का प्रयास किया था।

इस प्रयास के तहत जो भी सूचनाएं मिलीं, वे हैरतनाक, आश्‍चर्यजनक होने के साथ ही प्रशासनिक व सरकारी कामकाज के बेहद अराजक और खतरनाक स्‍तर तक की थीं। इन सूचनाओं से साफ स्‍पष्‍ट होता है कि कन्‍या भ्रूण के संरक्षण और कन्या भ्रूण हत्‍या के खिलाफ झंडा उठाने वाले पीसीपीएनडीटी कानून के अनुपालन की असलियत क्‍या है। साफ पता चला है कि जिस कानून को कन्या भ्रूणहत्या रोकने के उद्देश्‍य के लिए बनाया और लागू कराया गया था, वह अपंग साबित हो रहा है.

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दुर्दशा कन्‍या भ्रूण की

देश में बिना मान्यता प्राप्त डिग्री या ट्रेनिंग के रेडियोलाजिस्ट की श्रेणी में पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत गलत रजिस्ट्रेशन करा कर अल्ट्रासाउंड कर रहे अनेक डॉक्टर। CT स्कैन और एमआरआई MRI से भी हो सकती है। लिंग की जांच लेना होगा संज्ञान, लाना होगा पीसीपीएनडीटी एक्ट के दायरे में।

अल्ट्रासाउंड करने हेतु डॉक्टर का पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत स्थानीय सीएमओ ऑफिस में रजिस्ट्रेशन होना अनिवार्य है. यह रजिस्ट्रेशन विभिन्न श्रेणियों में किया जाता है जैसे रेडियोलाजिस्ट, ओब्स् एंड गायनी विशेषज्ञ, अन्य स्नातकोतर डिग्री तथा एमबीबीएस अल्ट्रासाउंड करने के लिए न्यूनतम ६ माह की ट्रेनिंग भी अनिवार्य है जो की पिछले कुछ ही वर्षों से रेडियोलाजिस्ट (केवल एमडी डिग्री) और ओब्स गायनी के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है, जब की अन्य डॉक्टर्स को यह अलग से करनी होती है एक्ट के अनुसार डॉक्टर की डिग्री मेडिकल  (MCI)से अवश्य मान्यता प्राप्त होनी.

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भगवान धन्‍वन्तरि

परन्तु सच यह है कि हमारे प्रदेश में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे डॉक्टर्स रेडियोलाजिस्ट की श्रेणी में रजिस्ट्रेशन करा कर अल्ट्रासाउंड कर रहे हैं जिनकी एमडी रेडियोलोजी की डिग्री कोर्स करने के समय भारतीय चिकित्‍सा परिषद से मान्यता प्राप्त नहीं थी। इसका कारण उस वक़्त विभाग में अल्ट्रासाउंड मशीन और कई आधुनिक उपकरणों के न होने से पूर्ण पाठ्यक्रम ही नहीं संचालित होता था। आरटीआई सूचनाओं के हवाले से यह भी पता चलता है कि हमारे प्रदेश के कई मेडिकल कॉलेजों में अल्ट्रासाउंड मशीन सन-2000 के उपरान्त आयी। यह भी गौर करने योग्य है कि कई कॉलेजों में अल्ट्रासाउंड मशीन विभाग की एमडी रेडियोलोजी भारतीय चिकित्‍सा परिषद द्वारा मान्यता हो जाने के भी कई वर्षों बाद आयी अर्थ यह कि बहुत से एमसीआई से मान्यता मान्यता प्राप्त रेडियोलोजी डिग्री के डॉक्टर्स ने कभी अपने कोर्स के दौरान अल्ट्रासाउंड सीखा ही नहीं।

डिप्लोमा इन मेडिकल रेडियोडायग्नोसिस (DMRD)दो साल का होता है जिसमे ६ महीने की अल्ट्रासाउंड ट्रेनिंग का प्रावधान नहीं है क्यूंकि ३ साल की MD डिग्री में ही ६ माह की अल्ट्रासाउंड ट्रेनिंग की व्यवस्था है. इसी प्रकार DMRE(डिप्लोमा इन मेडिकल रेडियोलोजी एंड एलेक्ट्रोलोजी) किये गए अनेकों डॉक्टर्स भी रेडियोलाजिस्ट की श्रेणी में रजिस्टर्ड हैं जबकि यह डिप्लोमा MCI से मान्यता प्राप्त नहीं है और न ही इसमें ६ माह की अल्ट्रासाउंड ट्रेनिंग दी जाती है.

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चिकित्‍सक

स्पष्ट है कि DMRD अथवा DMRE डॉक्टर्स का भी PCPNDT एक्ट में रेडियोलाजिस्ट की श्रेणी में रजिस्ट्रेशन होना पूर्णतया गलत है। इस तरह के बहुत रेडियोलाजिस्ट डॉक्टर्स ने अन्य श्रेणियों (जैसे MBBS, दूसरी विधाओं में MD) के ही समान बाहर चल रहे अल्ट्रासाउंड ट्रेनिंग कोर्स किये हैं क्योंकि विगत में केवल ये ही उपलब्‍ध थे। कुछ ऐसे रेडियोलाजिस्ट भी हैं जिन्होंने अल्ट्रासाउंड में कभी किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण या अनुभव प्राप्त ही नहीं किया।

यूपी समेत पूरे देश में कन्‍या भ्रूण हत्‍या पर रोकथाम करने वाली सरकारी एजेंसियां इस हालत को थामने के बजाय सीएमओ और जिलाधिकारियों समेत कई सम्‍बन्‍धी अफसरों की मुट्ठी गरम करने का एक बड़ा जरिया बन चुका है। प्रमुख न्‍यूज पोर्टल मेरी बिटिया डॉट कॉम द्वारा की गयी छानबीन और जन सूचना अधिकार के तहत जुटायी गयी सूचनाओं को हमने विश्‍लेषित करना शुरू कर दिया है। हम इसअभियान को अब श्रंखलाबद्ध प्रकाशित करने की तैयारी कर रहे हैं।

अधिकांश अल्‍ट्रासाउंड सेंटर का मतलब अब किसी कत्‍लगाह से कम नहीं रह गया है, जहां मां के पेट में जन्‍म लेने की तैयारी कर रहे कन्‍या भ्रूण की आपराधिक पहचान कर उसे मौत के घाट उतारने की साजिशों की जाती हैं। इससे जुड़ी खबरों को देखने को अगर इच्‍छुक हों तो कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिएगा:-

कन्‍या भ्रूण के कत्‍लगाह

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