: हर जिले में पचास से ज्यादा सरकारी मास्टर करते हैं पत्रकारिता : बलिया का पत्रकार जेल में चक्की चला चुका, जबकि जौनपुर वाला डीएम को उंगलियों में नचाता है : सरेआम दलाली करते हैं ऐसे पत्रकार बने सरकारी मास्टर : एक मास्टर तो जिला पत्रकार संघ में महामंत्री तक है, 20 बरस से : ऐसे दलाल सरकारी कर्मचारियों पर थूकना जरूरी :
कुमार सौवीर
लखनऊ : बोर्ड के प्रश्नपत्रों को लीक करने के मामले में बलिया में बंद एक पत्रकार का मामला काफी उछल रहा है। इस मसले को पत्रकारिता के अस्मिता, शुचिता और आवाज का गला दबोचने के तौर पर सभी अखबार उछल-कूद रहे हैं। लेकिन एक भी आवाज इस मसले पर नहीं उठ पा रही है कि बलिया में जेल भेजा गया पत्रकार वाकई पत्रकार है भी या नहीं। इस सवाल पर तो खूब हल्ला उठ रहा है कि बलिया का डीएम चोर है और डाकू है। लेकिन यह पत्रकार क्या हैं, इस पर कोई बात ही नहीं कर रहा है। डीएम की करतूतों का छिद्रान्वेषण की कोशिश बाद में कर ली जाएगी, लेकिन सच बात तो यह भी तो है कि पत्रकार का पायजामा पहन कर सारे कर्म-कुकर्म करने वाले शिक्षक भी कम परले दर्जे के नीच होते हैं।
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आपको बलिया में प्रश्नपत्र लीक करने के मामले में जेल में बंद किये गये अजीत ओझा नाम के पत्रकार की याद तो खूब होगी, जिसको लेकर पूरे प्रदेश में हंगामा खड़ा कर दिया गया है। लेकिन शायद ही कोई इस बारे में एक बार भी आवाज उठा पाया है कि अजीत ओझा एक प्राथमिक विद्यालय में एक सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्त है। वह प्राथमिक शिक्षक संघ में भी अपना दखल किये है। और प्रशासन में भी उसका काफी दखल रहा है। डीएम और बाकी अफसरों में उसकी खासी धमक बतायी जाती है। उसे एक सक्रिय और दबंग पत्रकार के तौर पर भी पहचाना जाता है। लेकिन वह केवल वह ही अपना मूल काम नहीं करता है, जिसके लिए उसे सरकारी खजाने से अवैध रूप से मोटी रकम थमायी जाती है। ऐसा नहीं है कि डीएम और प्रशासन के अफसर इस पत्रकार की करतूतों पर अनजान हैं। दरअसल, अफसरों के बीच एक बड़े न्यूज मैनेजर के तौर पर भी अजीत ओझा की पहचान है। हालांकि बलिया के ही एक पत्रकार ने दोलत्ती को बताया कि अजीत ओझा सरकारी स्कूल के शिक्षक नहीं हैं, बल्कि उनका नाम एक वित्तविहीन स्कूल में शिक्षक के तौर चलता है।
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बलिया ही नहीं, पूरे प्रदेश की पत्रकारिता में सरकारी प्राइमरी स्कूलों में तैनात कुटिल, भ्रष्ट और अराजक मास्टरों की लूटपाट चरम पर चल रही है। गोंडा जिले के एक राष्ट्रीय अखबार के ब्यूरो चीफ बताते हैं कि पूरे गोंडा में सरकारी प्राथमिक स्कूल के मास्टरों की तादात करीब 45 के आसपास है, जो सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम निपटाने के बजाय किसी न किसी अखबार में लिप्त हैं। कहने की जरूरत नहीं कि इन लोगों का धंधा पत्रकारिता के नाम पर प्रशासन पर दबाव बनाना और अपने धंधे को फल-फूल करते ही है। गोंडा के कर्नेलगंज और इटियाथोक में ऐसे पत्रकारों की संख्या करीब आधा दर्जन से ज्यादा बतायी जाती है।
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अम्बेदकर नगर में ऐसे मास्टर होने के बावजूद पत्रकारिता के धंधे में मलाई चाट रहे लोगों की संख्या भी काफी है। लेकिन दिलचस्प बात तो जौनपुर की बतायी जाती है। यहां पिछले 23 बरस से सरकारी प्राथमिक स्कूल में सहायक शिक्षक के पद से मोटी तनख्वाह उगाह रहे एक पत्रकार ने अपने पूरे कार्यकाल में एक बार भी अपने स्कूल में हाजिरी नहीं लगायी। वह पूरे धमक के साथ अखबारों में विज्ञापन का काम कमीशन के तौर पर करता है। कई अखबारों और समाचार एजेंसियों में बाकायदा रिपोर्टर के तौर पर भी न केवल तैनात है, बल्कि सूचना विभाग से उसकी मान्यता भी मिली हुई है। इतना ही नहीं, पत्रकार का पायजामा पहने इस मास्टर को जौनपुर के पत्रकारों ने अपने जौनपुर पत्रकार संघ का महामंत्री तक बना दिया है। वह भी पिछले 20 बरस से इस पद पर वह पत्रकारिता और सरकारी स्कूल से मोटी रकम उगाह रहा है।
डीएम साहेब ! तुम चोर हो क्या ?
इस पत्रकार नुमा सरकारी मास्टर का नाम है मधुकर तिवारी। सूत्र बताते हैं कि मधुकर ने वाजिदपुर में फ्लैक्स का एक बड़ा कारखाना भी लगा रखा है। बस, सरकारी नौकरी से उसका रिश्ता केवल इतना ही है कि वह सरकारी खजाने से मोटी रकम उगाहता है। वह भी तब, जब वहां के डीएम रहे राजन शुक्ला के साथ मधुकर तिवारी ने सीधा झगड़ा-पंगा लिया। महीनों तक यह झंझट चलता रहा। तब वह कई बरसों तक हिन्दुस्तान अखबार का ब्यूरो चीफ की कुर्सी को सुशोभित कर माल काट रहता है। बताते हैं कि अभी करीब कुछ महीनों के बीच मधुकर तिवारी को अपने प्रशासनिक धमक के बल पर जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी से कह कर खुद को निलम्बित करा लिया। ताकि उसको आधा वेतन मिलता रहे और रिटायरमेंट के बाद उसे सारा बकाया रकम भी मिल जाए।
दोलत्ती संवाददाता ने जौनपुर और बलिया के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ही नहीं, बल्कि मधुकर तिवारी और अजीत ओझा से इन आरोपों पर अपना पक्ष रखने का अनुरोध किया, लेकिन इन लोगों ने अपना फोन नहीं उठाया। इसके बावजूद पत्रकारिता की मूल आत्मा को संरक्षित करने के लिए हम चाहेंगे कि उपरोक्तगण अपनी बात अगर हमें भेजते हैं, तो हम उसे पूरे सम्मान के साथ प्रकाशित करेंगे। साथ ही हम सभी जिलों में सरकारी स्कूलों में तैनात सरकारी शिक्षकों की करतूतों को परख कर उसकी खबर दोलत्ती को भेजेंगे, तो हम बिना किसी भेदभाव के साथ और पूरे सम्मान के साथ प्रकाशित करेंगे।
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सूत्र बताते हैं कि बाराबंकी, सोनभद्र, बहराइच, बांदा, आजमगढ़, गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज, बलरामपुर, बस्ती, संतकबीर नगर, पीलीभीत, लखीमपुर और सीतापुर और हरदोई समेत मध्य और पूर्वांचल के अधिकांश पत्रकारों की तादात बहुत ज्यादा है, जो सरकारी प्राथमिक स्कूल में शिक्षक के पद पर तैनात तो हैं, लेकिन अपना धमक बनाये रखने के लिए पत्रकारिता में जबर्दस्त धंधाबाजी करते हैं। कहने की जरूरत नहीं कि ऐसे लोगों का सरकारी विद्यालय में शिक्षक के तौर पर वहां के छात्रों को पढ़ाने का नैतिक रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो चुका है। सरकारी अफसर भी उन लोगों के मुंह नहीं लगते और अनदेखा कर लेते हैं।
अकेले बलिया में ही पत्रकारों ने मेरी बात पर जिस तरह का निकृष्ट व्यवहार किया, वह ऐसे तथाकथित पत्रकारों पर एक तमाचा ही नहीं, बल्कि भीगे जूतों से कम नहीं है। इन लोगों ने तो पत्रकारिता के मूल्यों और दायित्वों को भी जोरदार लात रसीद कर रखी है। वहां के एक पत्रकार की हत्या के बाद जब दोलत्ती ने असलियत का खुलासा करना शुरू कर दिया, तो यहां के पत्रकारों में हड़कंप मच गया। असलियत जगजाहिर हो जाने से वे पगला गये और उन लोगों ने तो मुझे सरेआम सड़क पर जूतों से पीटने का ऐलान ही कर दिया, मानो वह पत्रकार न हों बल्कि जेहादी गिरोह हों।
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वह तो उस वक्त का पुलिस कप्तान और तत्कालीन डीआईजी ही था, जिसमें इतना साहस ही नहीं था कि वह इस मामले पर तनिक भी हस्तक्षेप कर सकता। इन अफसरों ने मेरी रिपोर्ट दर्ज करने से ही इनकार कर दिया था। कहने की जरूरत नहीं कि यही डीआईजी सुभाषचंद्र दुबे आज वाराणसी का अपर पुलिस आयुक्त है। मेरा मानना है कि अगर प्रशासन की करतूतों को समय रहते ही थाम दिया जाता, तो आज बलिया के ऐसे पत्रकारों को उसी वक्त जवाब दिया जा सकता था। इतना ही नहीं, बलिया में पेपर लीक मसले पर चल रहे बवाल पर जिलाधिकारी और प्रशासन और पुलिस अफसरों की नाक कुछ इस तरह सरेआम नहीं काटी जाती।
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