आरूषि कांड: राजेश का नया नाम कैदी ‘नंबर- 9342’

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फिलहाल तो अनिद्रा से पीडि़त है राजेश तलवार

नई दिल्ली : उम्रकैद मिलने के बाद तलवार दंपति को वापस गाजियाबाद की डासना जेल भेज दिया गया। अब उनकी नई पहचान और पता ये होगाः- राजेश तलवार-कैदी नंबर- 9342, बैरक नंबर 11। नूपुर तलवार-कैदी नंबर 9343, बैरक नंबर 13 डासना जेल, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश।

साढ़े पांच साल बाद इंसाफ का हथौड़ा चला और 14 साल की मासूम आरुषि की हत्या करने के दोषी उसी के मां-बाप तलवार दंपति को पूरी उम्र सलाखों के पीछे काटने की सजा दे दी गई। सीबीआई ने उनके लिए सजा-ए-मौत मांगी थी लेकिन एडीशनल सेशन जज श्याम लाल ने इस केस को रेयरेस्ट ऑफ रेयर यानि जघन्यतम मानने से इनकार कर दिया। 30 नवंबर को रिटायर हो रहे जज साहब ने शाम 4.30 बजे सजा का ऐलान किया।

कोर्ट ने धारा 302 यानि हत्या के जुर्म में सश्रम आजीवन कारावास, धारा 201 यानि सबूत मिटाने और धारा 34 यानि गुनाह करने का साझा इरादा रखने के जुर्म में 5 साल की सजा, धारा 203 यानि पुलिस को गलत जानकारी देने के जुर्म में राजेश तलवार को 1 साल की सजा सुनाई।

दोपहर दो बजे के करीब सजा पर बहस शुरू हुई। बहस के दौरान सीबीआई ने कहा कि इस केस में एक बार नहीं बल्कि दो बार हत्या की गई है। सीबीआई ने कहा कि पहले गोल्फ स्टिक से आरुषि और हेमराज को मारा गया और फिर ब्लेड से उनका गला काटा गया। सीबीआई के वकील ने तर्क दिया कि ये हत्या ठंडे दिमाग से की गई है, लिहाजा इसे जघन्यतम मानते हुए फांसी की सजा दी जानी चाहिए। लेकिन बचाव पक्ष के वकील तनवीर मीर ने कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ सबूत बेहद कमजोर हैं और इसीलिए तलवार दंपति के साथ रहम बरता जाना चाहिए। दलीलें सुनने के बाद जज ने कहाः-

-सब जानते हैं कि कई बार हत्याएं बिना किसी वजह या किसी बड़ी वजह के बिना भी कर दी जाती हैं। सिर्फ इस आधार पर कि सीबीआई कत्ल के आरोपी की ऐसी किसी मानसिक स्थिति को सबूत में तब्दील नहीं कर सके, ये नहीं कहा जा सकता कि हत्यारे के मन में हत्या के वक्त दरअसल कुछ नहीं था।

-अपराध में इस्तेमाल हथियारों का नहीं मिलना मामले से बरी होने का आधार नहीं हो सकता, जबकि जांच एजेंसी के पास पुख्ता और भरोसेमंद सबूत मौजूद हैं।

-ये गौर करने लायक बात है कि मारे गए दोनों लोगों के सिर और गले पर मिले जख्मों के निशान देखकर ऐसा नहीं लगता है कि वो हथौड़े और चाकू से किए गए वार थे और इसीलिए उनके मिलने का सवाल ही नहीं खड़ा होता।

-गोल्फ स्टिक तो खुद डॉक्टर राजेश तलवार ने पेश की। सर्जिकल ब्लेड का साइज एक पेन के बराबर होता है और उसे आसानी से छिपाया या नष्ट किया जा सकता है। दोहरे हत्याकांड वाली रात आरोपियों के पास पूरा वक्त और मौका था कि वो सर्जिकल ब्लेड और दूसरे अहम सबूतों को छुपा दें या नष्ट कर दें।

-मेरा मानना है कि दोनों आरोपी समाज के लिए खतरनाक नहीं हैं और न ही धारा 302 के तहत सजा-ए-मौत इनके लिए उपयुक्त है। इसलिए सश्रम उम्रकैद की सजा इनके लिए उचित है। न्याय के हित में ये भी सही है कि डॉक्टर राजेश तलवार को आईपीसी की धारा 203 के तहत एक साल की सामान्य कैद की सजा दी जाए।

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