पत्रकारों की नुमाइंदगी के लिए अभी से भिड़े हेमन्त और कलहंस

मेरा कोना

चुनावी दौर में देवरानी-जेठानी के ‘ रिश्ते ‘ आखिरी दहलीज तक पहुंचे

हेमन्त को तगड़ी चोट देने पर आमादा है कलहंस खेमा

लखनऊ : बेशुमार विवादों से घिरी यूपी मान्यताप्राप्त पत्रकार समि‍ति की नई कार्यकारिणी के चुनाव की भागा-दौड़ी अब तेजी पकड़ती जा रही हैं। साथ ही भनाभन साजिशें, पटका-पटकी। अरे नहीं यार, खुलेआम नहीं, बिलकुल चुपचाप। तो आइये, इसी मसले पर थोड़ा चकल्लस किया जाए।

हुआ यह कि समिति चुनाव में मुखिया के पद के लिए अब वो दो बड़े लोग दावेदार हो गये हैं, जो पिछले चुनाव में एक-दूसरे के कटोरी-चम्मच बन गये थे। लेकिन अब होली का माहौल जोरों पर है। मामला यहां तक पहुंच गया है कि इनके रिश्ते देवर-जेठानी के अन्तिम रिश्ते की दहलीज तक पहुंच चुके हैं, जहां चकल्लस नहीं, बल्कि झोंटा-नुचव्वर का रिश्ता ही केवल महत्वपूर्ण होता है। (सुलभ संदर्भ के लिए कवि कैलाश गौतम की कविता बांच लीजिए:- अनौसा का मेला)

तो, सीन यह है कि हेमन्त तिवारी अगले कार्यकारिणी में दोबारा फिर अध्यक्ष बनना चाहते हैं, जबकि मौजूदा सचिव सिद्धार्थ कलहंस उनके ख्वाबों की तस्वीर पर कालिख पोतने पर आमादा हो गये हैं। उनका खेमा तो अब खुल कर बोलने लगा है कि:- ‘अरे भाड़ में जाए हेमंत तिवारी, कलहंस खुद ही बनेंगे अध्यक्ष। ‘

कथानक यह है कि पिछले चुनाव में हेमन्त ने अपने एक अपने खासुलखास एक शख्स को यह नि:शुल्क और धर्मादा ठेका सौंप दिया कि सारे वोटर पत्रकारों तक ऐसी दारू बोतल मुहैया करें जो उन पत्रकारों के खानदान तक के लोगों ने कभी सुना-चखा तक नहीं हो। हुकुम की तामील हो गयी। इसी ठेकेदार ने इन पत्रकारों की हर सुविधा का ध्यान दिया। हां हां, निशुल्क ही यार। प्रेस क्लब में हेमंत तिवारी की सारी बैठकों का सारा इंतजाम यही ठेकेदार करता रहता।

लेकिन अब सीन पलट गया है। समिति की अध्यक्षी का नशा ज्यादा चढ़ गया तो हेमंत तिवारी ने इस ठेकेदार को ही सरेआम गरिया दिया तो यह ठेकेदार ने जगदम्बिका पाल वाली स्टाइल में सीधे सिद्धार्थ कलहंस की पार्टी ज्वाइन कर दिया। बस इसी पलटा-पलटी ने कलहंस का बजट समृद्ध कर दिया। मतलब लॉटरी। और इस नयी गोटियों के चलते कलहंस के रक्त-संचार में भविष्य के अध्यक्षी के सपने का नशा तारी होने लगा। अरे हां यार, इस मालदार ठेकेदार के साथ के चलते ही।

तो अब जरा निहारिये इस चुनाव में सत्ता-संतुलन का नजारा। हेमन्त तिवारी के सिर पर प्रदेश के कुछ मंझोले किस्म के दलाल अफसरों और खासकर पुलिस के कुछ लोगों की सरपरस्ती है। जिस पर हेमन्त इतराते रहते हैं और जिनका नाम लेकर छोटे पत्रकारों पर रूआब झाड़ते रहते हैं। दारू पीकर सड़क पर झगड़ा करने के वक्त यही अफसर हेमन्तो को बचाते हैं। नोटों की बारिश करके हेमन्त खुद का जलवा टाइट करते रहते हैं। एक चिंटू को हेमंत ने मान्यताप्राप्त पत्रकार बनवा दिया है जिसका फुलटाइम जॉब होता है कि जब भी वह किसी हस्ती के साथ खड़ा होने का मौका हासिल करे तो उसकी मोबाइल से फोटो खींच कर झट्ट से फेसबुक पर चस्पां कर दे। हां, इतिहास बताता है कि हेमन्त तिवारी ने किसी भी जरूरतमंद पत्रकार का कोई भी काम नहीं कराया। तवारीख गवाह है कि चाहे कोई भी मौका-हादसा हो जहां पत्रकार पिटे या मरे-घायल हुए, हेमन्त ने हमेशा अपना मुंह सिल चुप्पी  साधे रखी।

दूसरी ओर सिद्धार्थ कलहंस के पास है कुछ पियक्ककड़ों की टीम। अब इस ठेकेदार के चलते इनका मार्किट ज्यादा टनाटन हो चुका है। और हां, ठाकुर और क्षत्रिय-छत्र के नीचे आश्रय हासिल किये पत्रकार भी इनकी गली में मौजूद हैं। यूपी प्रेस क्लब और उप्र श्रमजीवी पत्रकार संघ का एक बड़ा हिस्सा कलहंस कब्जा रखते हैं। बस इत्ती भर दुनिया है सिद्धार्थ कलहंस की। किसी पत्रकार का कोई भी काम कलहंस नहीं करवा सकते। हां, वे मान्यताप्राप्त पत्रकारों को यूपी प्रेस क्लब का सदस्य जरूर बनवा सकते हैं। लेकिन करेंगे नहीं। वजह यह कि प्रेस क्लब तो उनकी टीम की जागीर है यार, उसके कैसे लुटवा दें।

बस आखिरी बात यह कि पिछले बीस बरसों से हेमन्त तिवारी ने एक भी रिपोर्ट या खबर-लेख नहीं लिखा, जबकि सिद्धार्थ कहलंस एक वैचारिक हैसियत वाले शख्स हैं। यही वजह है कि हेमन्त जहां घुग्घू की तरह अपनी दाढ़ी सहला रहे हैं, वहीं कलहंस ने हेमन्त की धुलाई के लिए तिकड़में-बिसातें बिछाना शुरू कर दिया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *