शैव तो उग्र थे, अयोध्‍या में अचानक कैसे फाट पड़े

मेरा कोना

: इस सवाल का जवाब खोजने के लिए तब के वरिष्‍ठ धार्मिक नेताओं को खंगालना पड़ेगा : वरिष्‍ठ पत्रकार प्रभातरंजन दीन ने की थी गोरखनाथ मंदिर के महन्‍थ स्‍वर्गीय योगी अवैद्यनाथ से लम्‍बी बातचीत :  वरना अयोध्‍या की ओर फटकते तक नहीं थे शैव-मतावलम्‍बी : राम जन्‍मभूमि आंदोलन-तीन :

कुमार सौवीर

लखनऊ : इतिहास बताता है कि वैष्‍णवों का अड्डा रही अयोध्‍या की ओर कोई भी शैव-मतावलम्‍बी कभी भी नहीं फटकता था। परस्‍पर हिंसक दुश्‍मनी, और घोड़ा-भैंसा जैसी हुंकार। वजह यह कि अयोध्‍या और उसकी जनता हमेशा से ही शांत थी, सरल थी, भावुक थी, और आज भी है। अयोध्‍या ने कभी भी अपनी मर्यादा को नहीं छोड़ा और न ही कभी मर्यादा पुरूषोत्‍तम राम की शालीनता का परित्‍याग किया। सरयू भी यहां बेहद शांत प्रवाह में अपना रास्‍ता निपटाती है। कारण यही, कि अयोध्‍या का चरित्र ही मर्यादित रहा है, राम के वक्‍त भी, और राम के बाद आज तक भी।

जबकि शैव सम्‍प्रदाय के उपासक अपनी उग्रता के लिए जाने-पहचाने जाते हैं। हमेशा से ही। चाहे कुम्‍भ हो या फिर उज्‍जैन में उनका डेरा, हमेशा से वे वैष्‍णवों से, और वैष्‍णव भी शैवों से खासी दूरी बनाये रखते हैं। उज्‍जैन का ही उदाहरण देखिये। पहाड़ पर शैवों का डेरा होता है, जबकि नीचे वैष्‍णवों का। कई बार हिंसक और खूनी युद्ध हो चुके हैं इन दोनों में। और कहने की जरूरत नहीं कि हर बार वैष्‍णवों का ही नरसंहार हुआ है। कई-कई बार तो हजारों-हजार लोग इन हादसों में मारे गये हैं।

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रामजन्‍मभूमि आंदोलन

तो फिर सवाल यह है कि वैष्‍णवों के पास शैव कैसे आये। जवाब देते हैं प्रभातरंजन दीन। लखनऊ के वरिष्‍ठ पत्रकार प्रभात रंजन ने गोरखनाथ मंदिर के महंथ योगी अवैद्यना‍थ से लम्‍बी बातचीत की थी, जब वे जीवित थे। यह बातचीत गोरखपुर में ही मंदिर-परिसर में हुई थी। प्रभात रंजन बताते हैं कि महंथ से बातचीत के दौरान उन्‍होंने कई सवाल किये, जिसका जवाब महंथ जी लगातार देते ही रहे। कई बार सवालों का जवाब खुल कर नहीं दिया गया, तो कभी घुमावदार मिला। लेकिन आखिरकार जब यह सवाल उठा कि वे कौन से कारण-कारक तत्‍व थे, जिनके चलते राम मंदिर का आंदोलन अचानक रामजन्‍म भूमि आंदोलन में कैसे तब्‍दील हो गया।

महंथ ने जवाब दिया था कि:- हम अयोध्‍या के मसले पर व्‍यापक हिन्‍दू जनमानस को जोड़ना चाहते थे। तब तक वैष्‍णवों की भूमि अयोध्‍या की ओर शैव नहीं फटकते थे, जबकि उन्‍हें राम से जोड़ना अनिवार्य लगा। लगा कि अयोध्‍या की जीत बिना शैवों के मुमकिन नहीं होगी। इसलिए शैवों को आमंत्रित किया गया।

हालातों पर गौर किया जाए तो यह बात तार्किक भी है। दरअसल, अयोध्‍या का मसला तब तक लगातार दबा ही रहा, जब तक कि वैष्‍णवों का मर्यादित भाव और आचरण अयोध्‍या में भारी रहा। वह यूं कि तब वैष्‍णवों के अलावा किसी मतावलम्बियों का आना-जाना ही होता था। लेकिन नव-अयोध्‍या के भाग्‍य-नियंतों ने समझ लिया कि अगर अयोध्‍या को जीतना है, तो वहां उस विवादित ढांचे का खात्‍मा करना ही होगा। और यह काम वैष्‍णवों के वश का ही नहीं था। ऐसे में अयोध्‍या में शैवों को सादर आमंत्रित किया गया। (क्रमश:)


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