मिसिंग गर्ल्स या किल्ड गर्ल्स इन इंडिया: लांसेट
यत्र नार्यस्त पूज्यन्ते महामंत्र पर लगा बदनुमा ग्रहण
23 मई को जारी होगा कत्ल की गयी बेटियों का ब्योमरा
रईस खानदानों में कन्याओं के कत्ल की दर सबसे ज्यादा
दूसरी संतान को होता है कत्ल किये जाने का ज्यादा खतरा
देश के 278 जिलों में औंधे मुंह गिरा भारी लिंग अनुपात
सालाना मारी जा रही हैं करीब चार लाख अजन्मी बेटियां
माताओं और देवियों की उपासना करने वाली भारतीय संस्कृति दरअसल बेटियों की कत्लगाह में तब्दील हो चुकी है। क्रूरता की सारी सीमाएं तो पेट में पल रही अजन्मी बेटियों तक खंजर लेकर पहुंच चुकी हैं। आंकडे गवाह हैं कि बीते दस बरसों में अपने महान भारत देश में 45 लाख अजन्मी बेटियों को कोख में ही मार डाला गया। विभिन्न स्रोतों से इकट्ठा किये गये इन आंकडों से कत्ल की यह हकीकत कहीं ज्यादा भी हो सकती है। यानी हर साल करीब साढे चार लाख बेटियों को हमारे हिन्दुकस्तानी परिवार मार डालते हैं। हालांकि अभी तक इस तथ्य का खुलासा नहीं हो सका है कि दुनिया के कितने देशों में यह हकीकत किस हद तक है, लेकिन यह आंकडे फिलहाल तो हमें अपनी ही बेटियों के कत्ल के मामले में विश्व रिकार्ड तो दिलवा ही सकते हैं। यत्र नार्यस्त पूज्यन्ते , रमन्ते तत्र देवता का नारा देने वाली भारतीय संस्कृपति में पनपी इस क्रूरता का अंदाजा इसी तथ्य् से लगाया जा सकता है कि कातिलों की जमात में जल्लाद का यह चेहरा केवल गरीब परिवारों में नहीं, बल्कि धनी और पढे-लिखे सम्पन्न परिवारों में ज्यादा कुरूप है। हमारे इस जल्लाद चेहरे का खुलासा किया है एक प्रख्यात शोध पत्रिका लांसेट ने। अपने एक ताजा अध्य्यन में लांसेट ने दावा किया है कि पिछले दशक यानी सन 2000 से लेकर 2010 तक के दौरान भारत में पैंतालीस लाख से ज्यादा बेटियों का कत्ल कर दिया गया। आज यानी मंगलवार को हनुमान महापर्व यानी बडा मंगल के दिन जब भारतीय जन-समुदाय बजरंग बली से अपने लिए मंगल कामनाओं के लिए हाथ जोडे होगा, तब उनके हाथों में लगे उनकी ही बेटियों के कत्ल के खून का खुलासा करेगी लांसेट पत्रिका। यह पत्रिका अपने इस शोध प्रबंध को 23 मई को जारी करने जा रही है।
मिसिंग गर्ल्सै इन इंडिया शीर्षक से जारी होने वाले इस अध्ययन को भारतीय मनोविकार के संदर्भ में दरअसल किल्ड् गर्ल्स इन इंडिया का नाम देना ज्यादा बेहतर होगा। वैसे लांसेट ने सन 1980 से लेकर 2010 तक के आंकडों को अपनी रिपोर्ट का आधार बनाया है। इसके अनुसार सन 1980 से लेकर 1990 के बीच कोख में ही मार डाली गयी बेटियों की तादात दस लाख के आसपास थी। जबकि सन 1990 से लेकर 2000 तक के बीच 26 लाख अपनी ही अजन्मी बेटियों को भारतीयों ने बडी ही बेरहमी से मार डाला। लांसेट के अनुसार पिछले दशक यानी सन 2000 से लेकर 2010 तक 45 लाख अजन्मी बेटियों को तो अकेले भ्रूण परीक्षण कराने के बाद बडी ही बेरहमी से उनकी ही सुरक्षित मानी जाने वाली कोख में निपटा दिया गया। हकीकत तब तो और भी क्रूर हो जाती है जब इस अध्ययन को केवल दूसरी संतान के रूप में जन्म लेने वाली संतान के लिंग परीक्षण के आंकडों के आधार पर देखा गया।
इस अध्ययन के अनुसार, जिन परिवारों में पहली लडकी है, वहां दूसरे लडका होने के मामले बढे हैं। दूसरे बच्चे, के जन्म से पूर्व लिंग का चयन तो अब भारत में लगभग खुलेआम कराया जा रहा है। अब हालत यह है कि सलेक्टिव गर्भपात को एबार्शन का सबसे बडा आधार बनाया जाने लगा है। लांसेट की रिपोर्ट बताती है कि पिछले दशक में लिंग अनुपात में 1 4 की खतरनाक स्तर तक की गिरावट हुई है। हालात की विभीषिका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश के 49 फीसदी जिलों यानी 278 में यह विभीषिका तो और भी खतरनाक दर्जे की है।