वसुधैव कुटुम्बकम्, यानी सीना ठोंक कर महिला-शोषण

बिटिया खबर

हां, हम बडे देशों के बराबर हैं महिलाओं पर अपराधों में
यह मर्दों की एकजुटता का नारा है आधी आबादी के खिलाफ
विकसित देशों में चुप्पी, पाक में मुख्तारन की गरजती आवाज
औरत की हर उम्र और हैसियत लूटने पर आमादा पुरूष दंभ

वसुधैव कुटुम्बकम् शब्द का संस्कृत में अर्थ होता है कि इस धरा पर वास करने वाले एक ही कुटुम्ब यानि परिवार के वासी। यह शब्द पूरे विश्व में एकीकृत भावना के लिए माना जाता है। परन्तु इस शब्द  ने मर्दों के मामले में भले ही पूरी दुनिया में अपने अर्थ को सार्थक किया हो, हकीकत यही है कि महिलाओं के मामले में यह शब्द उन्हें मर्दों के बराबर वह अर्थ हर्गिज हासिल करा पाया। लेकिन दुनिया की आधी आबादी यानी महिलाओं के शोषण और उनके प्रति अपराधों में एक बडी समानता है और वह मर्दों से पूरी तरह अलग ही है।
हमारे देश में बलात्कार, कन्या भ्रूणहत्या, यौन शोषण जैसे मामले तो अक्सर अखबारो में भरे ही रहते हैं। और तो और धर्म के ठेकेदारों और मठों तक में इनकी गूंज है। सामाजिक तौर पर यह कभी आनर किलिंग तो कभी इमराना और गुडिया जैसे मामलों की नजीरों से भरा है जो हमारे समाज में पुरूषत्व के गुरूरता और उसकी प्रधानता को ही दर्शाता है। यह हाल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे एशिया में खुले रूप से है। दुनिया भर में है यही हालत। हमारे पड़ोसी पाकिस्तान में महिलाओं पर अत्याचार के मामले हमारे साथ ही समानता के साथ बढ़त लिए हैं। यहां हद्दू कानून लागू है जिसकी सबसे मशहूर नजीर मुख्तारन बाई हैं। जिनको हाल में ही पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट तक से न्याय न मिल पाने का मलाल इस पूरी आधी आबादी को लगातार सालता ही रहेगा। हद्दू कानून के तहत सामूहिक बलात्कार का शिकार हुईं मुख्तारन बाई को भले ही न्याय नहीं मिल पाया, लेकिन दूसरी औरतों को न्याय दिलाने के अभियान के तहत उन्होंकने एक इंटरव्यू में पाकिस्तान में न्याय न होने पर अफ़सोस जताया था और कहा था कि वे ऐसे जाहिल और मध्ययुगीन कानून के खिलाफ लगातार जंग लडती रहेंगी।
ऐसे ही पाकिस्तान में सेना से लेकर कस्बों तक पैठ बना चुकी जिरगा पंचायतों द्वारा हो रहे शोषण में महिलाओं को भेाग की वस्तु से ज्यादा नहीं समझा जाता है। ऐसे ही हाल अरब देशेों में हैं। जहां मौलानाओं के नये-नये फ़रमान आते रहते हैं। कुछ समय पहले अरब के एक मौलाना ने फ़रमान जारी किया था कि कामक़ाज़ी महिलायें अपने पुरूष सहयोगी का अपना दूध पिलायें जिससे वह उनके बेटे जैसे हो जायें। ताकि उनके बीच शारीरिक सम्बन्धों को विकसित होने से रोका जा सके। इस तरह के ऊल-जुलूल फ़रमान यह दिखाते हैं कि महिला की स्थिति पुरूषवादी समाज़ में कैसी है। महिला शोषण के मामले आंतरिक गृहयुद्ध से जलते श्रीलंका और कम्यूनिस्ट चीन में भी कम नही हैं।
ऐसा नहीं है कि महिला शोषण केवल अल्प शिक्षित और विकासशील माने जाने वाले एशिया में ही हैं। महिला शोषण का सबसे बडा और बदनुमा दाग यानि वेश्यावृत्ति अति शिक्षित, सभ्य और विकसित यूरोप से लेकर अमेरिका और आस्ट्रेलिया समेत पूरे विश्व में फैला है। फ्रांस और ज़र्मनी जैसे देश जो प्रगति का दम भरते हैं, उन्होंने अपने यहां वेश्यावृत्ति को कानूनी ज़ामा पहना रखा है। विश्व के अधिकतर देशों में अश्लील फिल्मों का सबसे बडा कारोबार अमेरिका और रूस जैसे देशों से प्रमुखता से होता है। हर देश के विज्ञापनों में महिला का इस्तेमाल एक शो-पीस के रूप में होता है। लडकियों को कम कपडे पहनाकर फिल्मों में ग्लैमर पैदा किया ज़ाता है। पूरे विश्व में किसी ना किसी रूप से महिलाओं का शोषण बदस्तूर ज़ारी है। अमेरिका जैसे देश में बलात्कार के मामले बढ़ते जा रहे हैं। एमेनेस्टी इण्टरनेशल की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के प्रति पूरे विश्व में हिंसा और शोषण का अनुपात कम नहीं हो रहा है।
महिलाओं के शोषण में आम आदमी से लेकर देशों के प्रमुख व्यक्ति तक शामिल हैं। अभी हाल में ही विश्व मुद्रा कोष के अध्यक्ष पद पर रहते हुए फ्रांसीसी नेता डामनिक स्ट्रास केन पर वाशिंग्टन के टाइम स्कवायर होटल में एक अफ्रीकी मूल की महिला के यौन शोषण का आरोप लग चुका है। इसी प्रकार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिण्टन और व्हाइट हाउस की कर्मचारी मोनिका लेवेंस्की के प्रकरण तो पूरी दुनिया जानती ही है। इसी प्रकार इटली के राष्ट्र प्रमुख बर्लुस्कोनी पर भी कई यौन शोषण के कई आरोप लग चुके हैं।
महिलाओं के दैहिक और मानसिक शोषण को लेकर पूरे विश्व में एकरूपता बनी हुई है। आज़ हम ज़ब कहते हैं कि हम विकसित और समृद्ध हुए हैं, तब यह घटनायें हमें सोचने पर मज़बूर कर देती हैं। तब यह कहने पर मज़बूर होना पड़ता है कि पूरे विश्व में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना सिर्फ महिला शोषण के मामले में ही मर्दों को एकजुट करती है।

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