सहारा इंडिया का दावा: 1228 परियोजनाओं में बनेंगे बीस लाख मकान
: आखिरकार कहां है सहारा इंडिया की 36 हजार एकड़ जमीन : केवल कागजों पर बना दिया 367 शहरों में स्वप्ना सिटी : कोचि जैसे शहरों में भव्य अट्टालिकाएं भी सिर्फ कागज में :
सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठमलट्ठा। सहारा इंडिया के फर्जी दावे सुनने में तो बेहद दिलकश और सुनहरे लगते हैं। इतने कि इन दावों पर दिल खोलकर अपनी सारी जमापूंजी लुटा दे। लेकिन सुब्रत राय के ऐसे सारे दावे केवल कागजी अट्टालिका से ज्यादा नहीं रहे। ताजा मामला है सहारा की रियल इस्टेट और हाउसिंग कम्पनियों का, जिसमें देश के सैकड़ों शहरों पर अकूत मकान बनाने का ऐलान किया गया है। अकेले सहारा स्वप्ना सिटी के नाम पर सहारा ने 367 शहरों में 1228 परियोजनाओं को बनाने का दावा किया है, जिसमें बीस लाख से ज्यादा मकान बनाये जाएंगे।
केवल एम्बी वैली के नाम पर बनी कालोनी को प्रोजेक्ट करते हुए सुब्रत राय की हिम्मत लगातार बढ़ती जाती रही है। स्वप्ना सिटी का ऐलान इसी प्रक्रिया का परिणाम है, जिसमें जमीन का तो अतापता नहीं है, लेकिन सुब्रत राय और उनकी कम्पनी 20 लाख से ज्यादा मकान बनाने का दावा कर रहे हैं। अपनी पत्नी के नाम बनने वाले इन मकानों की कीमत पांच से 17 लाख रूपयों के बीच रखने का दावा किया है सहारा ने। जबकि 10 साल पहले अपने सबसे छोटे मकान की कीमत सहारा ने साढे 17 लाख रूपये तय की थी। सहारा के दावों के मुताबिक यह मकान भी आकार में स्वप्ना सिटी के मकानों के ही तरह है।
लेकिन हैरत करता है कि पांच लाख रूपयों से मकान देने का दावा। अकेले यूपी आवास एवं विकास परिषद जैसी सरकारी एजेंसी के छोटे से छोटे मकान गरीबतम लोगों को छह लाख रूपये में पड़ रहे हैं। वह भी तब, जबकि केंद्र सरकार इसके लिए इन लाभार्थियों को एक लाख रूपयों तक की सब्सिडी भी देता है। जाहिर है कि यह सहारा का यह दावा उसके दस्तूर की परम्परा के तहत ही है। वैसे इन दावों को लेकर हमने सहारा के प्रबंधकों से कई बार सम्पर्क करना चाहा, लेकिन उनसे किसी भी तरह से सम्पर्क नहीं किया जा सका।
लेकिन इतना ही नहीं, सवा लाख टका का सवाल तो यह है कि यह मकान बनेंगे तो कहां। मकान के लिए पहले जमीन की जरूरत होती है, लेकिन सहारा के पास इतनी जमीन है ही नहीं। सहारा का दावा है कि उसके पास 36 हजार एकड़ जमीन उपलब्ध है। लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया जा सका है कि आखिरकार यह जमीन है कहां। भवन निर्माण से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि मकान के लिए जमीन तो बन सकती हैं, लेकिन कागजों पर केवल खाका ही तैयार हो सकता है।
इतना ही नहीं, कोचि समेत विशालतम और सुदंरतम व भव्य कालोनियों का खाका पिछले 20 बरसों से केवल कागज पर बना है, और उसी प्रस्ताव को ही प्रचार करते हुए निवेशकों से सहारा जोरदार उगाही करता रहा है।
हमने सहारा के प्रबंधकों से कई बार सम्पर्क करना चाहा, लेकिन उनसे किसी भी तरह से सम्पर्क नहीं किया जा सका। उनके मीडिया और लाइजिंग सेक्शन के अधिकारियों के फोन नहीं उठ पाये। इस हालत के चलते सहारा इंडिया का पक्ष नहीं जा सका है। वैसे हम इस बारे में किसी भी तरह की स्पष्टीकरण, सूचना अथवा ऐतराज दर्ज किया जाएगा तो हम उसे भी ससम्मान प्रकाशित करेंगे।
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(यह लेख लेखक के निजी विचार हैं)
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