वंदे मातरम: साहब के मामले में चपरासी ने आला वकीलों की फौज खड़ी कर दी

सैड सांग

: यूपी चकबंदी आयुक्‍त कार्यालय में जुलाई-16 को हुई थी हंगामे की नौटंकी : पीटे गये थे आयुक्‍त, मुकदमा लड़ रहा है चपरासी : आरोप लगे कि चकबंदी अफसर ने भरे दफ्तर जमकर कूट दिया था आयुक्‍त को :

कुमार सौवीर

लखनऊ : एक सरकारी महकमे के भरे दफ्तर में एक दिन जमकर हंगामा हुआ। खबर आयी कि एक अदने से अफसर ने अपने ही अपने आला अफसर को सरेआम और दिनदहाड़े जमकर पीट दिया था। इस जोरदार कुटम्‍्मस में उस अदने से अफसर के साथी और उसके बेटे तक ने भी अपने-अपने हाथ खूब साफ किये। बताया गया कि उस अफसर व उसके साथियों ने आला अफसर पर शीशे के ग्‍लास से हमला किया और हाकिम का चेहरा कूंच दिया।

गजब है यूपी।

लेकिन इससे भी ज्‍यादा गजब तो तब सामने आया, जब पता चला कि जिस हाकिम को भरे दफ्तर कूटा गया था, उसने खुद तो कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं कराया, लेकिन इस महकमे के एक चपरासी ने सामने कूद-कूद कर वह सारी बातें बयान कर वह मुकदमा दर्ज करा दिया, जो साहब के साथ तथाकथित घटित हुआ था। इतना ही नहीं, किसी भी सरकारी विभाग  में सबसे कमजोर कड़ी माने जाने वाले इस चपरासी ने इस मुकदमे की पैरवी के लिए प्रदेश के नामचीन वकीलों की फौज तक खड़ी कर दी।

आपको याद होगा कि पिछले साल 13 जुलाई को हजरतगंज के पास बहुमंजिली इंदिरा भवन के सातवीं मंजिल में अचानक एक जबर्दस्‍त हंगामा हुआ था। इसी भवन में स्‍थापित है प्रदेश के चकबंदी आयुक्‍त का कार्यालय। खबर आयी कि तब के चकबंदी आयुक्‍त डॉ हरिओम अपने दफ्तर में बैठै थे कि अचानक ही अमेठी के एक चकबंदी अफसर और उसके बेटे समेत कई लोगों ने डॉ हरिओम पर हमला कर दिया। हमलावरों ने किसी अस्‍त्र-शस्‍त्र के बजाय मेज पर रखे शीशे के ग्‍लास से आयुक्‍त पर हमला किया था। गौरतलब बात तो यह है कि इसी भवन में पुलिस के कई विभागों के मुख्‍यालय भी मौजूद हैं। कहने की जरूरत नहीं कि इस हमले से यूपी के सरकारी जगत में सनसनी फैल गयी थी।

बहरहाल, लेकिन दिलचस्‍प बात यह रही कि इस हमले की पुलिस रिपोर्ट चकबंदी आयुक्‍त डॉ हरीओम ने नहीं लिखायी, बल्कि उनके चपरासी राजकुमार ने खुद ही पुलिस में जाकर घटना की लिखित रिपोर्ट दर्ज करायी थी। यानी हैरत की बात है आला हाकिम पर हुए तथाकथित हमले की रिपोर्ट वास्‍तविक वादी ने नहीं, बल्कि विभाग के सबसे निचले पायदान पर खड़े चपरासी ने पहल की। बाकी अफसर और स्‍टेनो और पीए तक एक-दूसरे का मुंह ही ताकते रहे, और चपरासी ने लपक कर चमत्‍कार कर लिया।

इतना भी होता तो भी गनीमत थी। इससे भी आगे बढ़ कर इस चपरासी से इस मुकदमे के लिए जो-जो नामचीन वकील अदालत में बाकायदा किसी फौज की तरह पेश कराये, उन्‍हें देख कर किसी को भी यकीन नहीं आया कि एक चपरासी भी इतना बड़ा खर्चा कर सकने वाला माद्दा-जिगरा रख सकता है। चपरासी राजकुमार द्वारा अपने पक्ष में खड़े गये वकीलों में से वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता कुंवर मृदुल राकेश के साथ ही साथ विनोद शाही, मनीष वैश्‍य और सभाजीत यादव तक को हायर किया था। यह सब के सब वकील प्रदेश के सर्वाधिक महंगे अधिवक्‍ताओं में से शीर्ष माने जाते हैं।

अब इससे भी ज्‍यादा गजब बात तो यह रही कि चपरासी राजकुमार ने इन महारथी वकीलों की टीम उस पूरे मुकदमे के लिए नहीं लगायी थी, बल्कि इस चपरासी ने यह सारा खर्चा सिर्फ एक अभियुक्‍त द्वारा दायर की गयी जमानत अप्‍लीकेशन का विरोध करने के लिए खर्च किया।

तो आखिर में इस चपरासी का शिजरा भी देख लीजिए तो पूरा मामला समझ में आसानी से समझ में आ जाएगा। राजकुमार की नौकरी करीब 10 साल पहले किसी रिक्‍त पद पर 89-89 दिनों की शर्त पर लगायी गयी थी। बाद में राजकुमार ने हाईकोर्ट की शरण ली, और इस वक्‍त केवल स्‍टे पर ही इस विभाग में अस्‍थाई तौर पर तैनात है। इसका कुल वेतन प्रतिमास करीब 23 हजार रूपया बताया जाता है। विभाग के कर्मचारियों में चल रही चर्चाओं के लिए राजकुमार ने यह सारी पहलकदमी केवल अपने अफसर की हरचंद सेवा के लिए ही किया।

अब सवाल यह है कि ऐसी हालत में इस मुकदमे पर हो रही लाखों रूपयों का खर्चा का स्रोत क्‍या है, इसका अंदाज आसानी से ही लगाया जा सकता है।

वाकई यूपी गजब है।

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