सुब्रत राय की पार्टी में आला हस्तियों ने खूब दिया गच्‍चा

मेरा कोना

अशोक होटल में सुब्रत के नौ-रतन गायब हो गये गधे की सींग की तरह

: अमिताभ, अम्‍बानी, शाहरूख, जया, विजय माल्‍या व सानिया तक नदारत : तय हो गया कि अब सहारा और सुब्रत राय से कथित हस्तियों ने मुंह मोड़ लिया: क्‍या वाकई अब अशक्‍त हो चुका है सहारा इंडिया का मुखिया :

सुब्रत अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा पीआर यानी दिग्‍गज हस्तियों के सेवा-सुश्रुषा पर बेहिसाब खर्च करते हैं और इसके बदले में वे उससे कई गुना ज्‍यादा कमा लेते हैं। इस धंधे का यही मजा भी तो है ना। एक करोड़ खर्च करो और हजार करोड़ दोनों हाथों से बटोर लो। लेकिन सुब्रत राय का यह महामंत्र बीती 20 मार्च को पूरी तरह फेल हो गया, जब उनकी एक पार्टी में देश के राजनीतिक, खेल, संस्‍‍कृति और फिल्‍मों से जुड़े हजारों लोगों को तो सहारा इंडिया ने बुलाया तो जरूर, लेकिन उनके बदले उन्‍हें कानी-कौड़ी तक नहीं मिल पायी। हां, पार्टी की भद पीटने पर अब शायद सुक्रत और उनके कार्यकर्ता अपने सिर जरूर बुरी तरह धुन रहे हैं।

खुद को सहाराश्री कहलाने में फख्र महसूस करने वाले सुब्रत राय ने 20 मार्च को अपनी पोती के अन्न-प्राशन की पार्टी दिल्ली के अशोका होटल में रखी थी। सहारा समय न्यूज़ चैनलों और सहारा समूह के अख़बारों के पत्रकारों से कहा गया कि इस पार्टी में वीवीआईपी लोगों को हर हाल में लेकर आया जाए भले ही ये वीवीआईपी कुछ देर के लिए ही आएँ। लेकिन यह पार्टी भी बुरी तरह फ्लाप रही क्योंकि आम तौर पर लोग ऐसे व्यक्ति की पार्टी में जाना पसंद नहीं करते जो न्यायपालिका का सम्मान नहीं करता हो।

सुब्रत के नौ रत्नों में से कई नगीने गायब रहे। इस पार्टी में अमर सिंह नहीं थे, अनिल अंबानी नहीं थे, अमिताभ नहीं थे, शाहरुख नहीं थे, कोई भी जया(बच्चन और प्रदा) नहीं थीं, (जो कभी सुब्रत के ख़ास थे, अब फूटी आँख नहीं सुहाते). विजय माल्या नहीं थे, सहारा एयर के विमान खरीदनेवाले गोयल नहीं थे, सानिया मिर्ज़ा नहीं थी. रीजनल चैनलों के संपादकों पर जिम्मा था कि वे अपने अपने राज्य के सी एम को लेकर आएँ, लेकिन शीला दीक्षित के आलावा कोई सी एम नहीं था। हाँ, यूपी और जम्मू कश्मीर के सी एम के नेता पिता अवश्य थे, न तो शीला दीक्षित गयीं, न नरेंद्र मोदी, न शिवराज सिंह, न रमण सिंह, न नीतीश कुमार। और तो और, उत्तराखंड-झारखंड के सीएम तक ने घास नहीं डाली।

अपने अखबार और चैनलों में पेड न्यूज़ को लेकर चर्चों में रहा सहारा समूह अब खुद न्यूज़ बाईंग में लगा है. हाल ही में एक पत्रिका की कवर स्टोरी सहारा के पक्ष में मैनेज करायी गई। इससे कितना माहौल बना ये तो किसी को नहीं मालूम, लेकिन बात उलटी पड रही है अब तो।  हाँ, क्रिकेट टीम के कुछ खिलाडी प्रायोजक के नमक का फ़र्ज़ ऐडा करने ज़रूर पहुंचे।

कहावत शायद ठीक ही कही जाती है कि जब किसी के साथ बहुत बुरे दिन आते हैं तो उसके साथ भी वैसा ही होता है जैसा कि सुब्रत रॉय के साथ इस वक्‍त हो रहा है। पहले सेबी का शिकंजा, फिर सीएटी में बुरी हार, फिर हाई कोर्ट में पराजय, फिर सुप्रीम कोर्ट में झटका, फिर अपील पर झटका। झटका पर झटका। हर बार सुब्रत रॉय अख़बारों में विज्ञापन दे देकर सेबी, कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना करते रहे हैं। विज्ञापनों में यह ज़रूर लिखा जाता रहा कि हम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन सेबी कोर्ट को ग़लत जानकारी देकर मिसगाइड कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट क्या बच्चा है जिसे चाँद का लालच दिखाकर, गब्बर डाकू का डर दिखा कर बहका दिया जाए ? क्या सुब्रत रॉय कोर्ट का महत्व जानते हैं? ये बात और है की उनके सलाहकार मंडल में ही कई ऐसे लोग हैं जो न्यायपालिका में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं.

आजकल सुब्रत रॉय को एक और ग़लतफहमी हो गई है कि भारत माता की आत्मा उनमें आ गई है. वे जब तब भारत माता का नाम लेकर जाप करते रहते हैं. ये कैसा भारत माता  का लाल है जो भारत देश के क़ानूनों की धज्जियाँ उड़ाता है, जिस पर अनेक मामले लंबित है, पुणे के पास जिसने अंबी वैली नाम बस्ती बसाई है, जहाँ पर्यावरण के नियमों की धज्जियाँ बिखेरी गई हैं और हज़ारों आदिवासियों का जीवन उससे दूभर हो गया है, क्योंकि उनका रास्ता रुक गया है. अब सेबी के खिलाफ इस व्यक्ति का आरोप है कि वह ग़लतबयानी कर रहा है और वे किसी भी न्यूज़ चैनल पर जाकर बहस यानी शास्त्रार्थ करने को तैयार हैं. वाह, क्या बात कही? क़ानून का पालन तो कर नहीं रहे उल्टे सज़ा मिलने के बाद शास्त्रार्थ करना चाहते हैं. चाहते हैं कि किसी भी तरह वक़्त कट जाए , सेबी के कुछ ईमानदार अफसर रिटायर हो जाएँ, बस

सुब्रत राय: पानी में फंसा मगरमच्छ और सहारा इंडिया का मतलब:- इसकी टोपी, उसके सिर

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