रामायण तो हुआ, पर अखिलेशायण शायद नामुमकिन हो

मेरा कोना

: पिता के आदेश पर राम ने हंस कर गद्दी छोड़ी, अखिलेश ने मुलायम को अपदस्‍थ कर दिया : हालांकि यह त्रेता और कलियुग का अन्‍तर है, लेकिन घटनाएं तो हैं एक-सी ही : भावनाओं की तेज धारा में बह जाता है भारतीय जनमानस : यादव-कुल में कलह :

कुमार सौवीर

लखनऊ : इतिहास को जानने-समझने वालों को खूब पता है कि भारत के लोग अपने नेताओं के आचरण के प्रति अपनी आस्‍थाओं के आधार पर मूल्‍यांकन करते हैं, ओछी राजनीति को देख कर नहीं। इसका सटीक उदाहरण त्रेता में हुए रघु-कुल वाले अयोध्‍या-काण्‍ड से बेहतर और कोई नहीं। अयोध्‍या में राम के वन-गमन पर 14 बरसों तक फूट-फूट कर रोती रही, लेकिन दशरथ के खिलाफ एक भी शब्‍द जनता के मुंह से नहीं निकला। आ और जैसे ही राम वापस लौटे, पूरी अयोध्‍या झूम कर उनका स्‍वागत करने छोड़ पड़ी। इतना ही नहीं, उत्‍सव और उल्‍लास इतना मचा कि हजारों-लाखों बरसों बाद भी आज तक दीपावली के तौर पर जन-जन के उल्‍लास का समारोह बन गयी।

अब जरा इधर निगाह डालिये। कलियुग के दशरथ और उनके बेटे के बीच चल रहे धींगा-मुश्‍ती पर। मुलायम सिंह यादव ने अन्‍तत: अपने भीतर के दशरथत्‍व को ओछे स्‍वार्थों के चलते त्‍याग दिया। ठीक उसी तरह, जैसे दशरथ ने किया था। शुरूआत में तो ऐसा लगा, जैसे इस मुलायमी दशरथ ने अपनी राजगद्दी अपने बेटे अखिलेशी-राम के हाथों में सौंप दी है, लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। मुलायम दशरथ नहीं बन पाये। रघुकुल का दशरथ अपने पुत्र राम को सिर-आंखों बिठाता था लेकिन यादव-कुल का दशरथ अपने बेटे अखिलेश को बात-बाप पर अपमानित करने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ता था। मुलायम ने अखिलेश को राजसत्‍ता तो सौंप दे दी, लेकिन अपने हरकतों से हमेशा यही संदेश देते रहे कि अखिलेश यादव सिर्फ एक कठपुतली मात्र है, जिसकी मजबूत डोर की अवहेलना अगर अखिलेश ने की तो अखिलेश को अर्श से फर्श तक पहुंचाने में क्षण-मात्र नहीं

दशरथ के दीगर दायित्‍व भी थे, जिसने उनके जीवन के क्रिया-विधियों के चलते कई लम्‍पट-छलकपट से जन्‍मे थे, दशरथ अपने इन लोलुप कृत्‍यों से निवृत नहीं हो पाये। लालुपता और स्‍त्री-मोह के चलते अपने बेटे को राजनीति के बियावान जंगल में अकेला भटकने पर बाध्‍य कर दिया। कुछ भी हो, इन अखिलेशायण की शुरूआत में मुलायम ने अपने चेहरे से दशरथ का मुखौटा तो अपना लिया, लेकिन राम की भूमिका को अंगीकार करने से अखिलेश ने साफ इनकार कर दिया। इस गाथा के मध्‍यान्‍तर तक अखिलेश ने खुद में रामत्‍व को तज दिया।

इसके बाद तो जो राम ने वन-गमन के पहले अपने पिता का चरण-स्‍पर्श कर विदा ली थी, उसी कलियुग में अखिलेश ने दशरथ को चुनौती दे दी। इतना ही नहीं, कलियुगी राम ने कलियुगी बाप को सत्‍ता से बेदखल भी कर दिया। त्रेता की घटना से ठीक उलट।

लेकिन मौजूदा राम शायद यह भूल गया कि अब युग बदल चुका है। भूल गया कि यह त्रेता नहीं, कलियुग है। नया रामायण और कलियुग की गाथा में एक बेसिक फर्क है। और यही फर्क रामायण और अखिलेशायण में साफ दिखेगा। जानकार बताते हैं कि अपने पिता के आज्ञा का पालन करने के बाद वन से लौटै राम को अयोध्‍या ने अपने सिर-आंखों पर बिठाया था, जबकि अखिलेश का फैसला चुनाव में ही दिखेगा।

रामायण तो हो गया, लेकिन अखिलेशायण शायद नामुमकिन हो।

वैसे यह तो कलियुग ही तो है, न जाने ऊंट किस करवट बैठ जाए।

पिछली कड़ी में कलियुगी दशरथ, राम और सपा की जनता का किस्‍सा दर्ज है। इसमें अधिकांश घटनाक्रम तो त्रेता की अयोध्‍या के रामायण जैसे ही दिखायी पड़ेंगे आपको, लेकिन जहां त्रेता में इसका सुखान्‍त दिखा, वहीं कलियुगी यादवी-कुल में दुखान्‍त दिख रहा है। इसकी पिछली कड़ी को पढ़ने के लिए कृपया निम्‍न लिंक पर क्लिक कीजिए:- उस और इस राम में बड़ा फर्क है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *