बेअदबी, उद्दण्‍डता और धर्मान्‍धता न हो तो मुख्‍यमंत्री पद के लिए आजम खान लाजवाब

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: कभी मुस्लिमों के फिजूल मसलों को लेकर विधवा-विलाप, तो कभी अपनी बदजुबानी के लिए भी कुख्‍यात हैं रामपुरी छोटे नवाब : जब कुर्सी से बेदखल हो जाते हैं आजम, तो उनकी सारी अकड़-फूं मिट्टी में मिल जाती है :

कुमार सौवीर

लखनऊ : रेल-यात्रा के दौरान डिब्‍बे में नवाब साहब को जो नई धुली चादर मिली, उसमें सिलवटें थीं। बस फिर क्‍या था। नवाब साहब हत्‍थे से उखड़ गये। भरे स्‍टेशन पर उन्‍होंने टीटी को मुर्गा बना डाला।

यह एक सरकार के एक गैर-जिम्‍मेदार मंत्री का उद्दण्‍ड व्‍यवहार था।

सहारनपुर में अफसरों की बैठक में जिला योजना पर चर्चा हो रही थी। एक अफसर थोड़ा विलम्‍ब से बैठक में पहुंचा, तो नवाब साहब की त्‍योरियां चढ़ गयीं। पहले तो नवाब साहब ने उस अफसर को कस कर झाड़ा, फिर पूरे जिला प्रशासन को हड़काते हुए खुद ही उस बैठक का बहिष्‍कार कर गये।

यह कदम अपनी ही सरकारी मशीनरी के प्रति अराजक रवैया था।

नवाब साहब के फार्म से करीब एक दर्जन भैंसें चोरी हो गयीं। नवाब साहब ने इस हादसे को प्रदेश या रामपुर में अपराधियों की धमक के तौर पर देखने के बजाय, सीधे पुलिस कप्‍तान के पेंच कस दिये। नतीजा यह हुआ जिले में हुए बाकी सारे अपराधों की छानबीन छोड़ कर पूरा पुलिस अमला सिर्फ नवाबी भैंसों की खोज में जुट गया। मजाक नहीं, चंद घंटों में ही भैंसे बरामद हो गयीं। अब यह पता नहीं कि जो भैंसे बरामद हुईं, वे वाकई नवाब साहब की ही थीं, या फिर पुलिसवालों ने नवाब साहब को खुश करने के लिए अपने खर्चे से यह बरामदगी कर डाली।

यह सत्‍ता के दुरूपयोग का मामला था।

समाजवादी पार्टी के यादवी-कलह की आग जब बेहिसाब भड़क गयी, तो नवाब साहब ने पहले तो मामले का जायज लिया। फिर आनन-फानन सपा के मुस्लिम विधायकों की बैठक आयोजित कर डाली। जबकि होना यह चाहिए था कि एक बड़े कद्दावर मंत्री होने की हैसियत रखने के चलते नवाब साहब उस मसले पर सपा-परिवार पर सबसे पहले कूदते, बजाय इसके कि मुस्लिम विधायकों की बैठक बुलाते।

यह कवायद उनकी धर्मान्‍धता और केवल एक पक्ष के प्रति समर्पण का प्रतीक ही थी।

जनाब, बादशाह तो बादशाह होता है। उस का बड़प्‍पन तो उसका गाम्‍भीर्य होता है। हां, बात-बात पर तिनुक जाना, हर बात को प्रतिष्‍ठा का प्रश्‍न बना डालना और सरेआम किसी को भी बेइज्‍जत करा डालना तो सिर्फ किसी छोटे-मोटे दरबारी या नवाबों को भी शोभा देता है। रामपुरी चाकू वाले शहर के आजम खान इसी श्रेणी में खुद का नाम दर्ज कराये बैठे हैं। यही वजह है कि आजम खान साहब खुद को यूपी सरकार में किसी मध्‍यम स्‍तर के मंत्री तक ही सिमटा रखा है।

अब यह बहस छेड़ी जा सकती कि आजम खान की यह हैसियत खुद की वजह के चलते है, अथवा मुलायम सिंह यादव की रणनीतियों के चलते आजम को सपा में दोयम दर्जे तक सिमेटे रखने पर मजबूर कर रखा है। लेकिन हकीकत तो यही है कि आजम का यह सीमितीकरण उन्‍हें फिलहाल किसी और ऊंचे पायदान तक पहुंचा सकता है।

या फिर कोई चमत्‍कार हो जाए तो दीगर बात है।

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