महादेव शिव का सेवक नंदी-बैल चुप ही रहता है क्योंकि उसका रिश्ता केवल शंकर तक सीमित है। आमतौर पर नंदी खामोश ही रहता है, लेकिन जब कोई जागरूक नंदी समाज के तंतुओं को खड़खड़ा देता है तो हंगामा बरपा होना लाजिमी होता है। और जयपुर में यही हुआ। चूंकि नंदी का रिश्ता हमारे-आपके, समाज, प्रदेश और देश से जुड़ा है, इसलिए नंदी को बोलना ही था। नंदी बोले, और उग्र प्रतिक्रिया सामने आ गयी।लेकिन तब तक नंदी ने हमारे समाज के उस चेहरा को पूरा तरह पदा नोंच लिया है, जो काम अब तक इसके पहले अण्णा नहीं कर पाये थे। सरकारी अश्लील बेइमानी के मामले में नंदी के इस कदम से देश भर में अब तक गैर-जमानती धाराओं में दो दर्जन से ज्यादा एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं, जिनमें उनमें दस साल तक की सजा हो सकती है। जगह-जगह नंदी के पुतले फूंके जा रहे हैं, रास्ताजाम और प्रदर्शन जैसी कार्रवाई चल रही हैं। जातीय सिरमौर बांधे लोगों ने नंदी के खिलाफ अपनी-अपनी छातियां पीटना शुरू कर दिया है। ऐलान किया है कि जब तक नंदी को जेल में बंद-सड़वा नहीं देंगे, शांत नहीं होंगे। उधर नंदी ने इस पूरे मामले में अपना स्पष्टीकरण जारी कर दिया और ऐलान कर दिया कि वे राजनीतिज्ञों के सामने हाथ नहीं जोड़ेंगे। फिलहाल, नंदी कहीं अज्ञात जगह हैं और दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत देने की अर्जी खारिज कर दिया है।
लेकिन पहले आइये देख लीजिए कि आशीष दरअसल हैं क्या चीज। नंदी कोई मामूली हस्ती नहीं हैं। सन-07 में उन्हें प्रतिष्ठित फकुओका एशियन कल्चर पुरस्कार मिला था। वे सेंटर फार द स्टडी आफ डेवलपिंग सोसायटीज के निदेशक रह चुके हैं। बिहार के भागलपुर में सन 1937 में जन्मे आशीष नंदी अपने तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं। पिता का नाम सतीश चंद्र नंदी और माता का नाम प्रफुल्ल नलिनी नंदी।
यह ईसाई बंगाली परिवार है जिसमें प्रतीश नंदी जैसे बहुआयामी शख्सियत शामिल हैं। पूरी पढ़ाई कोलकाता के ला मार्टिनियर स्कूल में हुई जहां उनकी मां शिक्षिका भी थीं। इस स्कूल में पहली भारतीय वाइस प्रिंसिपल बनी थीं आशीष नंदी की मां। यह अंग्रेजों का दौर था। स्वतंत्रता और अपने विषय को खुद चुनने की आजादी परिवार में संस्कार के तौर पर थी। शुरूआत से ही बेलौस मगर पढाकू शख्स रहे हैं आशीष। जीव-विज्ञान को समझने के लिए न जाने कितने मेंढक उन्होंने चीर-खोल कर देखा और बारीकियां समझीं। लेकिन अचानक उन्हें लगा कि जीव के तंतुओं से बेहतर और जटिल संरचना तो समाज की होती है। फिर क्या था, आशीष ने अपना रास्ता बदला। मेडिकल कालेज की अच्छी-खासी पढ़ाई छोड़ दिया और समाजशास्त्र की पढाई करने के लिए नागपुर के हिस्लप कालेज में चले गये। समाज-विज्ञान में एमए करने के बाद वे गुजरात यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद में मनोविज्ञान में पीएचडी कर डाली। दुनिया के करीब एक दर्जन विश्वविद्यालयों में वे पढ़ा चुके हैं या लेक्चर दे चुके हैं। नंदी ने अल्टरनेटिव साइंसेज, एन अम्बेगियस जर्नी टू द सिटी: द विलेज ऐंड अदर ऑड रूइंस आफ द सेल्फ इन इंडियन इमेजिनेशन, टाइम व्रैप्स: द इंसिस्टेंट पोलिटिक्स आफ साइलेंट एंड एवेसिव पास्ट्स, ए वेरी पॉपुलर एक्सिल जैसे शोध जारी करके पूरी दुनिया को हिला दिया था।
हर छह साल पर आयोजित किया जाने वाले साहित्य मेला को देश के विचारवान लोगों के मन में महा-कुम्भ से कम सम्मान नहीं होता है। लेकिन इस बार यह मेला जब जयपुर में आयोजित हुआ तो अभूतपूर्व हंगामा हो गया। देश ही नहीं, विश्वविख्यात समाजशास्त्री और वयोवृद्ध विचारक आशीष नंदी के बयान ने बखेड़ा खड़ा कर दिया। साहित्य महोत्सव के पैनल चर्चा में नंदी ने कह दिया कि ज्यादातर भ्रष्ट लोग ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के होते हैं। नंदी के शब्द जैसे ही महोत्सव में गूंजे, नंदी के खिलाफ नारेबाजी उससे ज्यादा गूंजने लगी। पांडाल में कोहराम मच गया, मंच पर बैठे कुछ दीगर लोगों के साथ ही साथ पांडाल के कई लोग नंदी के खिलाफ भड़क गये। आखिरकार नंदी महोत्सव से बहिर्गमन कर गये। लेकिन नंदी के खिलाफ लोगों का रोष बना ही रहा और आनन-फानन जयपुर के अशोकनगर थाने में नंदी और इस महोत्सव के संयोजक सुजॉय रॉय के खिलाफ मामला दर्ज कर दिया गया। और इसके बाद से ही अब तक नंदी के खिलाफ देश भर में हंगामा और मुकदमों का दौर बदस्तूर जारी है।
इसी बीच दुनिया भर में जाने-माने दलित साहित्यकार और प्रोफेसर कांचा इलिया ने नंदी का बचाव करते हुए लोगों को चौंका दिया है कि नंदी का यह बयान एक निहायत अच्छी मंशा के साथ कहा गया था। हो सकता है कि उनका लहजा खराब रहा हो, लेकिन इस मामले को अब यहीं खत्म कर देना चाहिए। मगर नंदी भी शायद किसी खास मिट्टी से ही बने हैं। विरोध के बीच उन्होंने ऐलान किया कि मैं अब 75 बरस को हो गया हूं और इस अनुभव और उम्र के इस पड़ाव पर मैं अपने तरीके नहीं बदल सकता। हालांकि नंदी ने कहा कि उनकी बातों से अगर किसी को ठेस पहुंची हो तो वे इसके लिए लोगों से माफी मांगते हैं। लेकिन इतना तय ही है कि उनके बयान को सही संदर्भ में पेश नहीं किया गया और हंगामा खड़ा किया। नंदी ने ऐलान किया है कि वे भविष्य में शायद ऐसे असहिष्णु समाज पर नहीं बोलेंगे।
दरअसल आशीष नंदी किसी वर्ग या जाति-विशेष के लिए नहीं, बल्कि आम आदमी की बात करते हैं। उन्हें यह देख कर चिंता लगती है कि बड़े होटल में दसियों हजार रूपये खर्च कर दो लोग भोजन करते हैं और होटल के बाहर कचरा खोजते वक्त बच्चे को कुत्ते को प्रतिस्पर्धा देखते हुए बच्चे को दस झड़की दे देते हैं। या फिर किसी मंगते बच्चे को दस रूपये देकर आप सोचते हैं कि आपने अपना कर्तव्य निभा दिया। और जब आशीष यह कहते हैं कि किसी जाति-विशेष में छोटा-छोटा भ्रष्टाचार ज्यादा संख्या में होता है तो वह सतह पर साफ दिख जाता है जबकि सवर्ण की बेइमानी बड़ी रकम होते हुए भी छिप जाती है, लेकिन यह मन्तव्य देखने के बजाय लोग आशीष पर पत्थर फेंकना शुरू कर देते हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती और अनुसूचित जाति आयोग के पीएल पुनिया उन्हें फौरन गिरफ्तार करने की मांग करते हैं, आगजनी शुरू हो जाती है।
यह कहा जाता है कि आशीष जाति-आग्रह से पीडि़त हैं। खैर, इलिचा कांचा ने नंदी को बेहतर तरीके से समझा। अनुसूचित जाति अधिकारी महासंघ के डा उदित राज ने नंदी पर हमला के बजाय उन्हें बहस के लिए आमंत्रित किया। सड़कछाप विरोध से अलग ऐसी प्रतिक्रियाएं स्वागत-योग्य हैं। कुछ भी हो, साहित्य-कुम्भ का कारवां लगातार बढता ही जा रहा है। पहले यह एक छोटी सी लीक थी, लेकिन आज ये दुनिया के प्रमुख साहित्य समारोहों में शामिल हो गया है। तब तो कराची समेत करीब ढाई दर्जन स्थानों पर ऐसे आयोजन शुरू हो गये हैं। विद्वानों की भीड़ भी खूब उमड़ने लगी है। बस, जरूरत है ऐसे आयोजन में वैचारिक बहस-मुहाबसे की, न कि ऐसे सड़कछाप उठा-पटक वाले दंगल की।