बहुत जद्दोजहद के बाद दिया जस्टिस गांगुली ने इस्तीफा

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

इस्‍तीफा के पहले एक शिक्षिका के यौन-शोषण की सुनवाई की

मामले से जुड़ी व जजों की आचार संहिताओं पर याचिका खारिज

भारी दबावों का सामना कर रहे उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एके गांगुली ने सोमवार को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया। उच्च पदस्थ सूत्रों ने सोमवार रात यह जानकारी दी। उन्होंने एक ला इंटर्न के यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद यह कदम उठाया है।

सूत्रों ने बताया कि न्यायमूर्ति गांगुली ने यह इस्तीफा पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एमके नारायणन से यहां राजभवन में मुलाकात के दौरान सौंपा। न्यायमूर्ति गांगुली की राज्यपाल के साथ करीब 45 मिनट तक मुलाकात हुई।

यह पूछे जाने पर कि क्या राज्य मानवाधिकार आयोग के प्रमुख के पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया है, न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि मैं प्रतिक्रिया नहीं दूंगा। पूर्व एटार्नी जनरल सोली सोराबजी ने दिल्ली में कहा कि यह अच्छी बात है कि उन्होंने मुझसे बात करने के एक दिन बाद इस्तीफा दे दिया। सोराबजी ने कल कहा था कि न्यायमूर्ति गांगुली ने टेलीफोन पर उनसे कहा था कि वह आयोग के प्रमुख पद से इस्तीफे के बारे में सोच रहे हैं।

उनके इस्तीफे की जोर शोर से मांग कर रही अतिरिक्त सालीसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने कहा कि यह काफी समय पहले ही हो जाना चाहिए था। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति गांगुली द्वारा किया गया यह सही निर्णय है। न्यायमूर्ति गांगुली का यह निर्णय केन्द्रीय कैबिनेट द्वारा बृहस्पतिवार को किए गए फैसले के बाद आया है। कैबिनेट ने इस मुद्दे पर राष्ट्रपति द्वारा उच्चतम न्यायालय से राय मांगे जाने (प्रेसिडेंशियल रिफरेंस) के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। इस कदम को गांगुली को पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटाए जाने की दिशा में एक कदम माना जा रहा था।

उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों वाली एक समिति ने न्यायमूर्ति गांगुली को अभ्यारोपित किया था। समिति ने पाया कि इंटर्न के लिखित एवं मौखिक बयान से प्रथम दृष्टया इस बात का खुलासा होता है कि न्यायाधीश ने उसके (पीड़िता के) साथ 24 दिसंबर 2012 को दिल्ली के ली मैरिडियन होटल में अशोभनीय आचरण (यौन प्रवृत्ति का अशोभनीय मौखिक- गैर मौखिक आचरण) किया।

न्यायमूर्ति गांगुली ने इन आरोपों को खारिज कर दिया और आरोप लगाया कि कुछ ताकतवर हित उनकी छवि बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने चंद फैसले किए थे। भारत के प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम को पिछले माह लिखे पत्र में न्यायमूर्ति गांगुली ने कहा कि उन्होंने ला इंटर्न को कभी परेशान नहीं किया तथा न ही कभी उसके या किसी अन्य महिला इंटर्न के प्रति आवंछित पहल की। इससे पहले सोमवार को न्यायमूर्ति गांगुली अपने कार्यालय गए और उन्होंने एक स्कूल अध्यापिका के कथित उत्पीड़न की शिकायत पर कार्रवाई की।

उधर सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने गांगुली व उससे जुड़ी दो याचिकाओं को खारिज कर दिया। गांगुली के समर्थन में डॉ.पद्म नारायण सिंह की याचिका खारिज करते हुए प्रधान न्यायाधीश पी. सतशिवम ने कहा कि हमने आपकी याचिका के हर शब्द को पढ़ा है। हम इस बारे में कुछ कहने नहीं जा रहे हैं। इस बारे में हम कोई राय नहीं प्रकट करना चाहते हैं, क्योंकि इससे संबंधित पक्ष प्रभावित हो सकते हैं। यह अभी जल्दबाजी होगी। प्रधान न्यायाधीश सतशिवम ने कहा कि इस स्थिति में हस्तक्षेप करने का यह मामला नहीं है। हम इसे खारिज करते हैं।

इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने वकील उदय गुप्ता द्वारा दायर एक अन्य याचिका को भी खारिज कर दिया। गुप्ता ने अदालत से अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों के आचरण के लिए नियम बनाने का आग्रह किया था। न्यायालय ने कहा कि यदि आप वास्तव में ऐसा चाहते हैं तो आपको अपना आवेदन सरकार के पास देना चाहिए। न्यायाधीश ने कहा कि वह दोनों याचिकाओं को खारिज करते हैं। कानून को अपना कार्य करने दीजिए।

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