बधाई है जौनपुरवालों ! आप खुद में सिकुड़ रहे हैं

मेरा कोना

फिजां ही नहीं, शक्ल भी लगातार गंदला होती रही गोमा-संस्कृंति की

अनुराग यादव, अपर्णा यू, गौरव दयाल, बलकार सिंह के बाद बदरंग जौनपुर

कुमार सौवीर

जौनपुर : गोमा यानी गोमती नदी की गंदगी को नापने के लिए आइये, जौनपुर पधारिये और प्रशासनिक काहिली को निहारिये।

साढ़े आठ साल पहले मैंने जौनपुर छोड़ा था। इस बार दोस्‍तों के बुलावे पर बस घूमने चला आया हूं मैं। तीन दिन देखा, परखा जौनपुर को। याद आया कि सितम्‍बर-05 में जब मुझे जौनुपर छोड़कर वाराणसी की बस पकड़नी थी। तब अनुराग यादव यहां जिलाधिकारी थे। इस शख्‍स ने न जाने कहां खोजकर भरी-कसी आबादी में से जमीन खोजकर एक बाकायदा एक बड़ा पुल और चौड़ी सड़क बनवा डाली थी। रोहट्टा जैसे इलाके में सड़क घेर कर बनी इमारतों को धराशायी करवा दिया था अनुराग यादव ने। मडि़याहूं, वाजिदपुर जैसी सड़कों को अनुराग ने सुधार दिया, जिनकी किसी ने कल्‍पना तक नहीं की थी। इतना ही नहीं, अनुराग ने तो सरकारी दफ्तरों में छापा मार कर बाबुओं की तलाशी का अभियान तक छेड़ दिया ताकि बेईमानी पर अंकुश लग सके।

क्या गजब दौर हुआ करता था तब। आज जौलान के डीएम राम गणेश तब यहां के सीडीओ हुआ करते थे। राम गणेश ने प्रधानों को छूट दे दी थी कि होली के दौर में ढाई हजार रूपये तक की ढोल-मंजीरा और हारमोनियम वगैरह खरीद कर लें। मुझ से बात करते हुए राम गणेश बोले थे: कम से कम माहौल तो सकारात्मक-रचनात्मक बने।

इसके बाद आयीं अपर्णा यू। इस महिला ने डीएम कैम्‍प के हत्‍यारे और कुख्‍यात स्‍टेनो शिवशंकर श्रीवास्‍तव और असलहा बाबू गुलाब मियां समेत उन सारे बाबुओं को चलता किया, जो दशकों से अपनी कुर्सी पर कुण्‍डली मारे बैठे थे। यकीनन, यह लाजवाब प्रशासनिक कसावट वाली कवायद थी।

फिर आये गौरव दयाल। इस शख्‍स ने अपनी पारी शिक्षकों को सुधारने में लगा दी। इस अप्रतिम और नायाब कोशिश के तहत इस आदमी ने हर हेड-मास्‍टर को अपने-अपने स्‍कूल की बिल्डिंग के सामने सारे शिक्षकों को खड़ा कर सुबह-शाम मोबाइल से फोटो खींच कर एनआईसी भेजने की कवायद छेड़ी। हालत यह हुई कि जौनपुर में जब 90 फीसदी शिक्षक लापता रहते थे, उनकी तादात 100 प्रतिशत हाजिरी तक पहुंच गयी। फर्जी पत्रकारिता के बल पर शिक्षक और कुल-कुकर्म नामक कलंक बन चुके लोगों को को स्‍कूल की ओर दौड़ने पर मजबूर कर दिया गौरव दयाल ने।

बलकार सिंह को हालांकि कुल तीन महीना का मौका मिला, लेकिन इसके बावजूद बलकार ने अपने जिलाधिकारी पद को जिन्‍दा और जागृत बनाये रखा। हालांकि जिला जज की करतूत रही थी, लेकिन खूब बदतमीजी की वकीलों ने भी। करीब एक महीना तक वकीलों की हड़ताल हुई लेकिन बलकार सिंह ने अपने नाम और पद को जिन्‍दा रखा और वकीलों को घुटने टेकने पर मजबूर कर साबित कर दिया कि सरकारी पदों का माखौल नहीं किया जाएगा।

अब यहां मौजूद हैं सुहास एल वाई। इनका पूरा नाम तो नहीं पता चल पा रहा है, लेकिन इस पूरे शहर को इस शख्‍स ने लगता है बेच डाला है। बेहिसाब और अंधाधुंध अवैध निर्माण तो खूब हो ही रहे हैं, सारी सड़कों पर अतिक्रमण बेहिसाब चल रहा है। जिन सड़कों से अवैध निर्माण हटा कर अनुराग यादव ने चौड़ा कर दिया था, वह सड़कें अब पहले से भी बदतर हो गयी हैं। निर्माण का आलम तो यह है कि नालियां तो कई स्‍थानों पर डेढ़ मीटर तक सड़क पर सिकोड़ दी गयी हैं। सरेआम तहखाने-बेसमेंट खोदे-बनाये जा रहे हैं।

अब यह यकीन कौन करेगा कि पूरा शहर तबाह हो रहा है और डीएम साहब अपना हिस्‍सा नहीं लेते।

खैर चलिए, मैं तो अब जौनपुर से विदा हो रहा हूं लेकिन तुमसे एक गुजारिश-ख्‍वाहिश जरूर करूंगा जिलाधिकारी सुहास एल वाई। कम से कम अपने ओहदे, अधिकार और अपनी तनख्‍वाह को तो जायज साबित करो, वरना आने वाली नस्‍लें तुमको माफ नहीं करेंगी।

और हां, आपको भी शर्म आनी चाहिए जौनपुरवालों, कि आपके शहर की झील को आपके नेताओं और अफसरों ने बेचकर पाट डाला और आप खामोश ही बने रहे। इन नेताओं और अफसरों ने तो शहर को बेच डाला, लेकिन आपके माथे पर हमेशा-हमेशा के लिए कलंक थोप गये, और आप थे कि सिर्फ खामोश ही रहे।

बधाई। आपकी इस बेशर्मी को बधाई।

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