निर्वंश शख्सियत : राजनीति में शब्दों के अपभ्रंशों वाली लोरी

मेरा कोना

पैसा-ताकत में गृहस्थों से ज्यादा झगड़े तो हैं निरबसियों में

निस्पृहता नहीं, अब लालच, क्रूरता, काम अधिकता बढ़ी

कई शब्द ऐसे तो होते ही हैं, जो अपनी प्रवृत्ति को लेकर बेहूदा लग सकते हैं, लेकिन ऐसे भावों को पूरी तरह व्याख्यायित कर पाना या उसे सटीक अर्थ में समझ-समझा पाना इस शब्दों की गैरमौजूदगी में नामुमकिन हो जाता है। हिन्दी शब्दकोष में दर्ज निर्वंश शब्द ऐसे ही एक संदेश, आकार और भाव कहा जा सकता है।

मेरी बिटिया डॉट कॉम ने खोजना चाहा है कि देश की राजनीति में अपना-अपना बम्बू-तम्बू गाड़े लोगों का व्यवहार कैसा और क्यों है, खासकर जब वे निर्वंश-स्थित भाव में पहुंच चुके हैं। नहीं, इन्हें किसी ने थोपा नहीं है, बल्कि उन्होंने यह भाव स्वत: माना, अंगीकार किया है। उसके हर पहलू को ठोंक-पीट कर महसूस करने के बाद ही उन्होंने उसमें जीवन खपाने और उसका आनंद उठाने का स-प्रयास किया है। हमारे देश में ऐसे लोग बहुतेरे हैं जो अपनी निर्वंश स्थिति को अपना चुके हैं, लेकिन उसके मूल भाव से ठुकरा कर ता‍कत, पैसा, लोभ, हिंसा, षडयंत्र और काम आदि अनेक तामसी गुणों को पाल-पोस रहे हैं। जबकि उन्हें  आम आदमी की नजर से ऐसे लोगों से ऐसा करना अपेक्षित नहीं माना जाता है। हमारे अध्ययन का केंद्र-विषय यही है और हम आप जैसे सुधी-जागरूक लेखकों और पाठक से अपेक्षा करते हैं कि आप इस कड़ी को लगातार आगे बढ़ाते रहें।

इसी श्रंखला की पहली कड़ी के तौर पर प्रस्तुत है दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह की राय, जो बताते हैं कि दरअसल यह पूरा मामला है क्या। हां, शब्दों की हेरफेर तो मैंने भी की है। समाज में जहां-तहां एक-दूसरे की चादर खींचने में जुटी क्रूर शख्सियतों पर केंद्रित यह श्रंखला लगातार जारी रहेगी। ( कुमार सौवीर )

शीतल पी सिंह

अवधी बोली में एक शब्द बहुत लोकप्रिय और प्रचलित है। यह नाम है निरबसिया। दरअसल निरबसिया शब्द अपभ्रंश है। इसका मूल शब्द है निर्वंश का स्त्रीलिंग। लेकर लोक-बोली में इसे निरबंसिया या निरबसिया बना दिया है। खैर, हमारा मकसद निर्वंश के स्त्री लिंग शब्द अथवा उसके अपभ्रंश शब्द निरबसिया अथवा निरबंसिया पर बहस करना नहीं है। बल्कि हम तो इस शब्द के व्यावहारिक भाव और ऐसे शब्दों में प्रयुक्त किये जाने वाले व्यक्तियों में बदलती जा रही प्रवृत्तियों को टटोलना चाहते हैं।

तो, बात शुरू करने से पहले हम निर्वंश की स्त्री लिंग या निर्वंशनी के साथ ही साथ निरबसिया और निरबंसिया का अर्थ समझ ही लें। इस शब्द का मतलब होता है वह महिला जिसका पास आल-औलाद या वंश चला सकने वाला वारिस अथवा उत्तराधिकारी नहीं होता है। पहले वक्त में ऐसे लोगों को निर्भाव तरीके से अपना जीवन व्यापन करते थे, बिना किसी लालच, भय, आतंक, लोभ, काम, क्रोध आदि से परे, पूरी तरह दूर। लेकिन लगता है कि आज इस शब्द की परिभाषा नयी सिरे से गढ़ने का मौका आ गया है। हम आसानी के साथ देख सकता है कि कुमारी जे जयललिता, ममता बनर्जी, मायावती समेत अनेक लोग ऐसी शख्सियतें ऐसी हैं जिनमें निरबसिया, निरबंसिया अथवा निर्वंशनी के यहां राजनीतिक-आर्थिक बंटवारे के झगड़े गृहस्थों से ज्यादा बड़े और आक्रामक और हिंसक होते जा रहे हैं।

नहीं, नहीं। कृपया मुझे अन्यथा मत समझें। मैं इस बहस पर किसी भी शख्स को किसी भी कीमत पर बख्‍शने का मकसद नहीं रखता हूं। और तो और, देश के श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेई तक को नहीं। वे अपने दौर के भले ही निर्विवाद राजनीतिक शख्सियत रहें हों, लेकिन दाग तो उनके दामन पर भी है और खूब है।

तो, मैं उम्मीद करता हूं और आग्रह करता हूं कि हमारे बाद के लेखक इस प्रकरण को श्रंखलाबद्ध तरीके से लगातार चलाते ही रहेंगे। आमीन

इस पूरी श्रंखला को देखने-पढ़ने को चाहें तो कृपया क्लिक करें:- निर्वंशों की राजनीति

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