निर्वंश शख्सियत : डगर ममता से क्रूरता की

मेरा कोना

राजनीति में शब्दों के गढ़ते नये अर्थ वाली ममता

बंगाली दीदी को सारधा फाइनेंस के झगड़े ने फंसा दिया

पिछले अंक में आपने पढ़ा है दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह की प्रस्तावना। आइये, इस अगली कड़ी को देखने के लिए कृपया मूल बहस पर एक नजर फिर डाल लिया जाए।

कई शब्द ऐसे तो होते ही हैं, जो अपनी प्रवृत्ति को लेकर बेहूदा लग सकते हैं, लेकिन ऐसे भावों को पूरी तरह व्याख्यायित कर पाना या उसे सटीक अर्थ में समझ-समझा पाना इस शब्दों की गैरमौजूदगी में नामुमकिन हो जाता है। हिन्दी शब्दकोष में दर्ज निर्वंश शब्द ऐसे ही एक संदेश, आकार और भाव कहा जा सकता है।

मेरी बिटिया डॉट कॉम ने खोजना चाहा है कि देश की राजनीति में अपना-अपना बम्बू-तम्बू गाड़े लोगों का व्यवहार कैसा और क्यों है, खासकर जब वे निर्वंश-स्थित भाव में पहुंच चुके हैं। नहीं, इन्हें किसी ने थोपा नहीं है, बल्कि उन्होंने यह भाव स्वत: माना, अंगीकार किया है। उसके हर पहलू को ठोंक-पीट कर महसूस करने के बाद ही उन्होंने उसमें जीवन खपाने और उसका आनंद उठाने का स-प्रयास किया है। हमारे देश में ऐसे लोग बहुतेरे हैं जो अपनी निर्वंश स्थिति को अपना चुके हैं, लेकिन उसके मूल भाव से ठुकरा कर ता‍कत, पैसा, लोभ, हिंसा, षडयंत्र और काम आदि अनेक तामसी गुणों को पाल-पोस रहे हैं। जबकि उन्हें आम आदमी की नजर से ऐसे लोगों से ऐसा करना अपेक्षित नहीं माना जाता है। हमारे अध्ययन का केंद्र-विषय यही है और हम आप जैसे सुधी-जागरूक लेखकों और पाठक से अपेक्षा करते हैं कि आप इस कड़ी को लगातार आगे बढ़ाते रहें।

इसी श्रंखला की अगली कड़ी के तौर पर प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन फुटेला की राय, जो बताते हैं कि ममता बनर्जी का चेहरा क्या है। हालांकि यह आलेख श्री फुटेला का नहीं, बल्कि एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास का है, लेकिन उसका प्रस्तुति का श्रेय तो फुटेला को तो जाता ही है। हां, शब्दों की हेरफेर तो मैंने भी की है। समाज में जहां-तहां एक-दूसरे की चादर खींचने में जुटी क्रूर शख्सियतों पर केंद्रित यह श्रंखला लगातार जारी रहेगी। ( कुमार सौवीर )

जगमोहन फुटेला

दीदी का मतलब तो आप खूब जानते होंगे। अरे हम बंगाल की बोली में बोलने वाले उन शब्दों पर बात कर रहे हैं जिन्हेंब बंगाली जुबान में सम्मा नजनक तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। मसलन, अपने से किसी बड़े आदरणीय शख्स को दादा और किसी बड़ी सम्मानित महिला को दीदी के सम्बोधन से पुकारा जाता है।

तो दीदी अब तक कहती रही हैं कि उन्होंने पोइला वैशाख से पहले इस बारे में कोई खबर ही नहीं थी, लेकिन चिटफंड मामले में हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका की सुनवाई के सिलसिले में राज्य सरकार की ओर से दायर हलफनामे में उनके कार्यकाल के दौरान एकदम शुरुआत से चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कार्रवाइयों का सिलसिलेवार दावा किया गया है।

अपनी मां के जीवित होते हुए घरेलू विवाद के चलते दीदी एकबार अपना घर छोड़कर चली गयी थी। अब राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर दीदी के घर में जंग छिड़ गयी है। उनके भाई कार्तिक जो खुलेआम, टीवी चैनल पर भी साल भर से चिटफंड के खिलाफ मुखर होने का दावा कर रहे हैं, मंत्रियों से लेकर संतरियों तक को बख्श नहीं रहे हैं, इसके पीछे भी अभिषेक को उत्तराधिकार दिये जाने का असंतोष बताया जा रहा है।

इस पूरी श्रंखला को देखने-पढ़ने को चाहें तो कृपया क्लिक करें:- निर्वंशों की राजनीति

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