अफगान के पुनर्निर्माण में जुटी हैं उम्मीद जगाती बच्चियां

बिटिया खबर

घर की महिलाओं का जोश, हर घर में लौ जलायी शिक्षा की

: सब्जी के थैले में किताबें छुपा कर ले जाती थीं अफगान बेटियां : लड़कों की ड्रेस पहनी, ताकि पहचान न ले कि हम बेटी हैं :

खुद के खात्मे सी निराशा के दिन देखे हैं हम लोगों ने। तालिबानी खौफ बढ़ रहा था। उन दिनों कई बार मैं निराश हो जाया करती थी। खौफ के साए में स्कूल जाना और डर-डर के पढ़ना मुझे अच्छा नहीं लगता था। कई बार मैं कहती थीं, अब मैं स्कूल नहीं जाऊंगी। ऐसे डर के जीना अच्छा नहीं लगता। मेरे पिता ने मुझे हिम्मत दी। उनकी वजह से ही आज मैं आपके सामने हूं। मेरा पालन-पोषण ऐसे देश में हुआ जो बरसों चली आतंकी जंग से तबाह हुआ है। मेरे उम्र की छह प्रतिशत से भी कम लड़कियां यहां हाईस्कूल से आगे पढ़ पाती हैं।

लेकिन आखिरकार मुझे तो हो ही गया डिग्री

मैं खुशनसीब हूं कि मैं स्नातक की डिग्री हासिल कर पाई। मेरे पिता ने उच्चशिक्षा के लिए मुझे बाहर भेजा। जब मैं स्वदेश लौटी तो मेरे नाना बहुत खुश हुए। उस समय तो वह और भी खुश हुए जब मैंने उन्हें अपनी गाड़ी में बैठाकर काबूल की गलियों की सैर कराई। मेरे परिवार ने मुझ पर भरोसा किया, इसलिए आज मैं महिला शिक्षा अभियान की ग्लोबल अंबेसडर बन सकी। मैंने अफगानिस्तान में लड़कियों के लिए पहले बोर्डिंग स्कूल की स्थापना की। आज जब मैं अपने स्कूल की लड़कियों से मिलती हूं तो उनकी आंखों में ढेर सारे सपने देखती हूं। उनसे मिलकर अफगानिस्तान को लेकर नई उम्मीद जगती है। अच्छा लगता है यह देखकर कि उनके माता-पिता तमाम धमकियों की परवाह किए बगैर अपनी बच्चियों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।

लोगों की हिम्मत तो थी ही, वरना हम कैसे वापस होते

लोगों का हिम्मत हमारी ताकत है। मैं एक बच्ची और उसके पिता को जानती हूं जिन पर हाल में बम से हमला किया गया। शुक्र है कि वे बाल-बाल बच गए। बाद में आतंकियों ने उसके पिता को फोन पर धमकी दी कि अगर उसने अपनी बेटी को आगे से स्कूल भेजा तो उन पर दोबारा हमला किया जाएगा। उस बहादुर पिता ने साफ कहा कि वह नहीं डरेगा, उसकी बेटी स्कूल जरूर जाएगी।

डर के आगे आ गयी नई उम्मीद

अफगानिस्तान की तस्वीर बदल रही है। पिता जागरुक हो रहे हैं। वे अपनी बेटियों का भविष्य संवारना चाहते हैं। एक समय था जब स्कूल जाने वाली बच्चियों की संख्या बस कुछ सौ थी लेकिन आज यहां करीब तीस लाख लड़कियां स्कूल जा रही हैं। यह सब उन पुरुषों की वजह से संभव हुआ है जिन्होंने आतंकवादियों की धमकी की परवाह किए बगैर अपनी बेटियों, बहनों को स्कूल भेजने का साहस दिखाया है। दोस्तों, अगर आप बाहर से देखेंगे तो अफगानिस्तान हिंसा से कराहता देश नजर आएगा। मेरी आंखों से देखेंगे तो यह नई उम्मीदों और नई संभावनाओं के साथ आगे बढ़ता एक मजबूत देश नजर आएगा। मैं जानती हूं मेरे देश की तस्वीर की बदलेगी।

पूरी खबर देखने के लिए कृपया क्लिक करें:- अरे वाह । भाग गये तालिबानी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *