तनिक लालच ने ही रेलूराम के परिवार को खत्म कर दिया
: हर कदम फूंक कर बनायी साजिशें, मगर खुलीं परतें : आइयें तो कि आखिर कैसे-कैसे साजिशें की थीं सोनिया-संजीव ने :
हिसार और जगाधरी: इस मामले की नायिका है एक महिला लेकिन इसके बावजूद यह एक ऐसा नृशंस हत्याकांड रहा है, जिसे सुनकर लोग सहम जाते हैं। कुछ भी हो, राष्ट्रपति से सोनिया और उसके पति को फांसी देने पर अंतिम मोहर लगाने के बाद सोनिया इस देश की पहली इकलौती महिला होगी जो फांसी पर झूलेगी। सोनिया की इस हालत पर पूरे देश में बहस-मुहाबसों का दौर शुरू हो गया है। आपको बताते चलें कि २३-२४ अगस्त, २००१ की रात्रि पूर्व विधायक रेलूराम पूनिया सहित परिवार के ८ सदस्यों की बेरहमी से हत्या हो गयी थी। पुलिस जांच में पता चला कि इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने वाला और कोई नहीं, बल्कि रेलूराम पूनिया की बेटी सोनिया व उनका दामाद संजीव था। यह पता चलते ही प्रशासनिक और राजनीतिक क्षेत्रों में हड़कम्प मच गया था। हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरे देश में यह कांड अपने आप में बेहद सनसनीखेज और रोंगटे खड़े करने वाला था जहां बेटी और दामाद ने ही पुनिया के ही सारे सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया हो।
हुआ यह कि २२ अगस्त, २००१ को रेलूराम पूनिया की बेटी सोनिया ने पूनिया हाऊस पर फोन कर जन्मदिन की पार्टी करने की बात कही थी। अदालत में चले अभियोग के मुताबिक अगले दिन २३ अगस्त को सोनिया हिसार के लिए रवाना हुई और रास्ते में विद्या देवी जिंदल स्कूल में अपनी बहन पम्मा को अपने साथ ले लिया। इसके बाद उसने बर्थ-डे मनाने के लिए केक व अन्य सामान की खरीददारी की। सायं को वह हिसार के कस्बे बरवाला स्थित पूनिया हाऊस पहुंची और जहां परिवार के सदस्यों के साथ बर्थ-डे मनाया। इसके बाद रात को हत्याकांड को अंजाम दिया गया। सोनिया ने अपने पति संजीव के साथ मिलकर अपने पिता रेलूराम पूनिया, मां कृष्णा पूनिया, भाई सुनील पूनिया, भाभी शकुंतला, बहन प्रियंका ऊर्फ पम्मा, तीन मासूम बच्चे मुकेश, सिवानी व प्रीत को मौत के घाट उतार दिया था।
इस मामले की सुनवाई करने के बाद ३१ मई, २००४ को जिला सत्र न्यायालय ने सोनिया तथा संजीव को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई। १२ अप्रैल, २००५ को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने सोनिया व संजीव की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया। १५ फरवरी, २००७ को सुप्रीम कोर्ट ने जिला सत्र न्यायालय के फैसले पर मोहर लगाते हुए दोनों सोनिया व संजीव को फांसी की सजा सुनाई।
२३ अगस्त, २००७ को सुप्रीम कोर्ट में दोषियों की तरफ से फांसी की सजा के खिलाफ दायर की गई पुर्नविचार याचिका रद्द कर दी गई। १ सितंबर, २००७ को फांसी का दिन निर्धारित करने के लिए जिला सत्र अदालत में याचिका दायर। ८ सितंबर, २००७ को जिला न्यायालय ने फांसी के लिए २६ नवंबर, २००७ का दिन तय किया गया। नवंबर, २००७ में बचाओ पक्ष द्वारा राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर की।
लेकिन साल 2001 के बहुचर्चित पूर्व विधायक रेलूराम नरसंहार कांड के दोषी संजीव और सोनिया की दया याचिका राष्ट्रपति के यहां से खारिज होने की खबर जैसे ही मां राजबीरी और पिता अनुप सिंह को मिली तो उनकी आखिरी उम्मीद भी समाप्त हो गई। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने जिन पांच दया याचिकाएं खारिज की है, उनमें एक महिला भी शामिल है। आजाद भारत में संभवत: पहली बार किसी महिला को फांसी की सजा देने पर राष्ट्रपति ने मुहर लगाई है।
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