देयर वाज ए नेशन-वाइड यूनियन फॉर बैक्टीरीज, नेम्ड संजय विचार मंच

मेरा कोना

मुर्गीचोर और लुटियाचोरों में ज्यादा इल्म ही कहां होता ?

मुख्यमंत्री से करारी डांट पाये पत्रकारों की घिग्घी फंसी हुई है

कुमार सौवीर

लखनऊ : परजीवी तो समझते हैं ना आप ? परजीवी मतलब, कीट-बैक्टीरिया टाइप। तो, देयर वाज ए नेशन-वाइड यूनियन फॉर दैट टाइप सच बैक्टीरियाज, नेम्ड संजय विचार मंच। जी हां, ऐसे परजीवी लोगों का सांगठनिक गिरोह था।

संजय विचार मंच परजीवी लोगों का जीवन्त पर्याय था। जो खुद तो कुछ नहीं उपजा सकते थे, फीता-कृमि की तरह पूरे समाज ही पूरी आंत घायल कर डालते थे। इसमें शामिल हर इकाई-व्यक्ति था पक्का नौटंकीबाज, जिसमें था केवल आज या ज्यादातर कल-परसों के शराब-भोजन चरने का माद्दा। परसों से ज्यादा तक समेटने की कूवत-भसोट इन लोगों में थी ही नहीं। मुर्गीचोर और लुटियाचोरों को इससे ज्यादा का इल्म ही कहां होता है? यह दीगर बात थी कि बड़े खंडहरनुमा हवेलियों के स्वामी लोग ऐसे लोगों को अपने यहां पाल लेते थे। मकसद हुआ करता था कि ऐसे सांड़ जैसे लोग जहां मौजूद रहेंगे तो ऐसी प्रापर्टी की ओर से कोई भी नहीं देखेगा।

यह लोग शहर और प्रदेश के चंद बड़े पत्रकारों-सम्पादकों के चंटू-टाइप मित्र हुआ करते थे। यह इनकी मजबूरी भी थी और इन पत्रकारों की आदत भी। जहां-तहां घरेलू पार्टी आयोजित करने के लिए इन चिंटुओं का दफ्तर बार-दारूखाना बन जाता था। जहां कभी-कभी आयोजित होने वाले दुष्कर्म के आनन्द-पर्व भी ऐसे ही कार्यालयों में सम्पादित हो जाते थे। समवेत भाव में पत्रकार भी इसमें अपनी-अपनी तुरही बजा लेते थे। चाहे वे चंबल से लखनऊ पहुंच कर सुरमा लगा रहे हों या फिर फैजाबाद से पहुंच कर दिल्ली की जमीन खोद-गोड़ रहे हों। वैसे भी पत्रकारों की औकात मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सरेआम नंगी कर दी है। अखिलेश ने अपने सरकारी आवास में पत्रकारों को खूब बेइज्‍जत किया लेकिन किसी ने भी चूं तक नहीं की। पत्रकारों के नेताओं के पास तो और भी धंधे होते हैं। है कि नहीं ? वे अपनी दलाली चमकाने के लिए सरकारी लोगों की जूतियां चाटें या अवाम-जन अभिव्यक्ति बरास्ते अपने अपमान का विरोध जताएं। उनके इस चरित्र का असर आसन्न चुनावों में शर्तिया पड़ेगा। खैर

शीतलहर अब शुरू होनी ही वाली है। लेकिन इस बार की सर्दियों में तो यूपी की राजनीति की आग में तपती ही रहेगी। शुरूआत हो ही चुकी है। किसी के घर आटा गीला हो चुका है तो कहीं इतना कड़ा हो चुका है कि पत्थर तक शर्मिंदा हो जाए। किसी के चूल्हे में रोटियों कहीं सेंकी जा रही हैं, तो कहीं जलायी-फूंकी जा रही है। कहीं कोई अपनी पार्टी को मजबूत करने में जुटा है तो कोई अपनी ही लुटिया डुबोने में जुटा है। कई ऐसे लोग तो बहुतायत में मौजूद हैं जो इस चुनावी पॉलिटिकल-मैदान में अपनी रोजी-रोटी के साथ ही साथ दारू-भोजन खोजने में श्वान-श्रंगाल की तरह यत्र-तत्र-सर्वत्र विचरण कर रहे हैं। ऐसे मरभुक्खे लोगों का सूक्ति-वाक्य है:- पहले भोजन फिर साड़ी, भाड़ में जाए पार्टी।

खैर, देश में चुनाव की सुरमई सरगर्मी छा रही है। मेरी कलम बेचैन है। तो अब बिना किसी भूमिका के, मैं उन संगठनों, व्यक्तियों और व्यक्तिनुमा लोगों से आप लोगों का सीधा साक्षात्कार कराना चाहता हूं जो मेरे हिसाब से उपरोक्त शर्तों-पायदानों पर खरे उतरते हैं। पहला नाम है संजय विचार मंच।

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कुमार सौवीर पत्रकार और लेखक हैं।

आप कुमार सौवीर से kumarsauvir@gmail.com या kumarsauvir@yahoo.com अथवा 09415302520 पर सम्पर्क कर सकते हैं।

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