इमर्जेंसी को समझने के लिए “नसबंदी” या “कटरा बी आर्जू” बांच लीजिए

मेरा कोना

: न संजय, न विचार, न मंच, यानी लुटियाचोरों की पौ-बारह : यादों के कब्रिस्तान में सड़ांध मारता संजय-मेनका का धंधा : लुच्चा कांग्रेसियों का लै-मार संगठन था संजय विचार मंच :

कुमार सौवीर

संजय विचार मंच।

किसी भी चुनाव के रंगारंग मौके पर यादों के कब्रिस्तान से संजय विचार मंच जैसी सड़ी-गली और बेतरह दुर्गन्ध फैलाती लाश की याद आ ही आती है। वजह यह कि पिछले 35 बरसों के बीच के राजनीति-अखाड़ा में इतना कोई बदबूदार संगठन नहीं मिला है, जितना संजय विचार मंच।

वाकई बेमिसाल था यह मंच, जहां न तो कोई विचार थे और न कोई मंच-फंच। लेकिन देश के अधिकांश और खासकर हिन्दी-बेल्ट में तो गल्ली-गल्ली में संजय विचार मंच के बोर्ड ही लग गये थे। देश के जितने भी लुम्पेन-एलीमेंट्स थे, संजय विचार मंच के पदाधिकारी बन गये। यह मंच सिर्फ पदाधिकारियों का था, कार्यकर्ताओं का नहीं। वार्ड स्तर तक कार्यकारिणी हुआ करती थीं, जिसमें इंदिरा-संजय-मेनका के बाद किसी लै-मार दबंग नेता को क्षेत्रीय संरक्षक बनाने के बाद अपनी पूरी टोली को पदाधिकारी मनोनीत किया जाता था।

इमरजेंसी में इसी टोली ने अराजकता का पूरा खुला नंगा नाच किया। परिवार-नियोजन के नाम पर किशोरों से लेकर कब्र पर पांव लटकाये बुजुर्गों तक की नसबंदी करायी थी संजय-टोली ने। विरोधियों को बधिया करने के लिए भी नसबंदी तक को औजार बनाया गया और उन्हें तहस-नहस करने के लिए जेलों में अभूतपूर्व प्रताड़ना का दौर चला। आप अगर उस इमर्जेंसी को समझना चाहें तो आईएस जौहर की फिल्म़ “नसबंदी” देख लीजिए अथवा विरोधियों को तबाह करने की साजिशों-करतूतों को समझने के लिए राही मासूम रजा का लघु-उपन्यास “कटरा बी आर्जू” बांच लीजिए। हां, संजय ने सहजन और यूकेलिप्टस का सघन वृक्षारोपण जरूर कराया।

दरअसल हकीकत तो यह थी कि संजय के पास जब कोई विचार था ही नहीं, तो उनके विचार के किसी मंच का औचित्य ही क्या था, लेकिन जब कोई न कोई दूकान खोलनी ही थी, तो संजय विचार मंच जैसा कोई आकर्षक शटर तो दिखना ही चाहिए। लाखैरा टाइप समर्थकों के पापी पेट का सवाल भी तो था, जिनमें भुनी-तली मछलियों का मदिरा-इक्वेरियम किलोल नियमित होता रहे।

इसी बीच अचानक इन सक्रिय-निष्ठावान-समर्पित पदाधिकारियों की किस्मत से छींका फूटा और इंदिरा गांधी का नूर-ए-चश्म यानी लाडला बेटा संजय गांधी सफदरजंग एयरपोर्ट पर एक हवाई दुर्घटना में मारा गया। जाहिर है कि पूरा गांधी कुनबा के लिए यह हादसा अब तक का सबसे बड़ा झटका था। इंदिराजी ने अपने संयम और क्षमता का परिचय देते हुए राजीव गांधी को पायलेट की नौकरी छुड़वा कर कांग्रेस का महासचिव बना दिया और देश-कांग्रेस को सम्भालने के अपने नारे-संकल्प को साकार करना शुरू कर दिया। इधर तो यह चल रहा था, उधर संजय की संहारक-टोली अपने द्रव्य‍—भोजन की जुगत में भिड़ी थी। इन्हें पदाधिकारियों ने समय भांप लिया। वे समझ गये कि संजय गांधी की मौत से आहत इंदिरा-राजीव समेत पूरे परिवार की सैम्पेथी पैसों की बारिश करवा सकती थी। इन पदाधिकारियों को इसके लिए मेनका गांधी के आंसुओं को पोंछने का प्रदर्शन ज्यादातर संजय-कार्यकर्ताओं को मुफीद लगा। इंदिरा गांधी के लाड़ले के लुच्चे समर्थकों की पूरी की पूरी टोली मौजूद थी ही, जो येन-केन-प्रकारेण द्रव्य-भोजन पर जिन्दा थे।

नतीजा, संजय विचार मंच की कार्यकारिणी की कई-कई शाखाएं गली-कूचों में विस्तार पा गयीं। मकसद रहा कि सिर्फ और सिर्फ उगाही। कैसे भी हो, बस उगाहो। जो भी मिले, ले उड़ो और मौज उड़ाओ। हां, इस मंच के जो हम्पी-डम्पी सेट ऑन अ वाल जैसे बड़े नेता तो राष्ट्रीय स्तर पर धंधा चमका रहे थे, लेकिन प्रदेश स्तरीय नेताओं का जीवन हमेशा की ही तरह केवल नियमित तौर पर बोतल और भोजन तक ही सीमित रहा।

तो आइये, यूपी की हालत पर चर्चा कर ली जाए। यूपी वाले अकबर अहमद डम्पी संजय के दोस्त थे। संजय ने अपने विचार मंच को लखनऊ के दारूलशफा में एक फ्लैट अलॉट करा दिया था। बहराइच वाले दारोगा सिंह इस मंच के अध्यक्ष बने और भीमकाय विनोद त्रिपाठी महामंत्री बन गये। इसके बाद तो यह दोनों ही लोगों ने खुद को अपने इन पदों से फेवीकोल के साथ चिपका लिया। ऐसे लोग ही तो ब्राह्मण-क्षत्रिय एकता का सबसे बड़ा आलाप होते हैं।

लेकिन हाय दैव-योग। इंदिरा जी ने इतालवी एयर-होस्टेस को अपने कलेजे से लिपटा लिया और सन पत्रिका की मालकिन को घूरे पर पटक दिया। संजय विचार मंच के लोगों ने भी मेनका और संजय विचार मंच से किनारा करने की जुगत भिड़ानी शुरू की। लेकिन अंदर तक फंसी फांस इतनी आसानी से कहां निकलती है भइया।

तो भइया, बदले हालातों में संजय विचार मंच और उसके मठाधीशों का भांडा फूटने लगा।

इस लेख-श्रंखला को पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- संजय विचार मंच

कुमार सौवीर पत्रकार और लेखक हैं।

आप कुमार सौवीर से kumarsauvir@gmail.com या kumarsauvir@yahoo.com अथवा 09415302520 पर सम्पर्क कर सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *