दावों के विपरीत देश में घट गईं बेटियां

सैड सांग

लिंग-अनुपात में गिरा निहायत शर्मनाक आंकड़ा

: देश में अब बचीं एक हजार लड़कों में सिर्फ 914 लड़कियां : छत्तीसगढ़ में 991, तो पंजाब में 841 की दयनीय हालत : कुपोषण में भी लड़कों के मुकाबले बेटियों की मौत ज्यादा : गावों के मुकाबले शहरों में ज्यादा हैं कन्या-हत्यारी सोच : चार साल के मुकाबले एक हजार में एक बेटी लुप्तु :

नई दिल्ली : जमीनी हकीकत ने एक बार फिर जाहिर कर दिया है कि महिलाओं को लेकर हमारी संवेदनशीलता दिखावे भर की है। देशभर में चार साल तक की लड़कियों की संख्या तीन साल में उल्टा कम हो गई। वर्ष 2008 में जहां हजार लड़कों के मुकाबले 915 लड़कियां मौजूद थीं, अब महज 914 रह गई हैं। देश के सबसे बड़े जनसांख्यिकीय सर्वेक्षण के नतीजे लड़कियों के खिलाफ पैदा होने से लेकर परवरिश तक में होने वाले भेदभाव को लेकर हैरान करने वाली हकीकत पेश कर रहे हैं।

देश के ऐसे सबसे बड़े सर्वे के नतीजे बताते हैं कि देश में चार साल तक की लड़कियों का ताजा लिंगानुपात महज 914 है। यह वर्ष 2008 के अनुपात से तो एक अंक नीचे है ही, पिछले पांच साल में भी सबसे निचले स्तर पर है। भ्रूण हत्या और लिंग भेद के खिलाफ सरकारी अभियानों को देखते हुए यह तथ्य बेहद हैरान करने वाला है। यह सच्चाई सामने आई है भारत के महापंजियक (आरजीआइ) की ओर से करवाए जाने वाले सालाना सर्वेक्षण एसआरएस में।

स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न पैमानों पर वर्ष 2011 तक के ये विस्तृत आंकड़े आरजीआइ जल्दी ही सार्वजनिक करने वाला है। यही रिपोर्ट बताती है कि बीते दो साल के दौरान बेटी को लेकर लोगों की मानसिकता में रत्ती भर का भी सुधार नहीं हुआ। अब भी सालाना हजार लड़कों के मुकाबले महज 906 लड़कियां पैदा होने दी जा रही हैं। पिछले साल के मुकाबले यह 0.1 फीसद का मामूली सुधार भले दिखाई दे मगर उससे भी एक साल पहले के हालत देखें तो यहां कोई सुधार नहीं दिखेगा।

जन्म के समय लड़कियों के अनुपात के लिहाज से छत्तीसगढ़ 991 अंकों के साथ सबसे बेहतर स्थिति में है। जबकि पंजाब महज 841 लड़कियों के साथ सबसे पीछे है। गांव में लड़कियों की स्थिति थोड़ी बेहतर रही। शहरों के 900 के अनुपात के मुकाबले गांवों में यह 907 रहा।

पालन-पोषण और इलाज में भी लड़कियों के साथ जमकर भेदभाव हो रहा है। यही कारण है कि चार साल तक की उम्र के बच्चों में लड़कियों की मौत लड़कों से ज्यादा हो रही है। जहां 11.5 फीसद बालक चार साल के होने से पहले ही दम तोड़ देते हैं, बालिकाओं में यह औसत 13 फीसद है। छत्तीसगढ़ को छोड़ दिया जाए तो सभी बड़े राज्यों में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की मृत्यु दर ज्यादा है। (दैनिक जागरण)

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