‘जसरा सिस्टर्स मस्ट कम फर्स्ट’ और लीला जीत गयीं (2)

मेरा कोना

बहुत बहादुर था प्रो शर्मा, अंग्रेजों ने उसे बहुत टार्चर किया

: अंतिम दौर में लीला जसरा की स्‍मृति कमजोर होती जाने लगी थी : जीवन गांधी-दर्शन को समर्पित रहीं लीला ने हमेशा खादी धोती पहुंची : महेंद्रवी हास्‍टल में तो अब एक भी वृद्ध नहीं बचे :

( पिछले अंक से आगे ) वे यहां प्रिंसिपल भी बन गयीं। महात्मा गांधी, कस्तूसरबा और एनी बीसेंट जैसी महान हस्तियों की नजदीकी उन्हें हासिल हुई। वे तो काफी दिन वर्धा में भी रह आयीं। इसी बीच उन्होंने मालवीय जी द्वारा तकनीकी संस्थान के गांधीवादी प्रोफेसर राधेश्याम शर्मा को सम्मानित होते देखा। प्रसिद्धि तो लीला की भी खूब थी। शादी का प्रस्ताव प्रोफेसर शर्मा की ओर से आया और तमाम गांधीवादियों ने मिल कर लीला के हाथ पीले कर दिये। इसी तरह दूसरी बहनों का भी विवाह हुआ। लेकिन प्रोफेसर शर्मा के खिलाफ तो पूरी गोरी हुकूमत पड़ी थी। एक वक्त तो ऐसा भी आया जब उन्हें जिन्दा अथवा मुर्दा पकड़ने के लिए सात हजार रूपयों का ईनाम तक घोषित हो गया। अपनी आरामकुर्सी पर बैठी लीला जसरा ने इस बारे में बात करते समय अचानक उचक कर सिर उठायी और बोलीं:- बेटा, तब के वक्त में सात हजार रूपयों का मतलब समझते हो या नहीं ? कहने की जरूरत नहीं कि यह रकम आज के मुकाबले लाखों रूपयों के बराबर थी।

लीला जसरा बताती हैं कि यहां तो पूरा खानदान ही आंदोलन पर आमादा था। खुशी इस बात की थी कि गोरी हुकूमत इन लोगों से भयभीत है और इसीलिए भारी भरकम ईनाम का ऐलान करने पर आमादा है। पूरा परिवार में गर्व का भाव था। बहन और बहनोई तक जेल गये। प्रोफेसर शर्मा तो सात बार जेल जा चुके थे। उनका निधन सन 1993 में तब हुआ जब वे बीएचयू से सेवानिवृत्‍त हो चुके। प्रोफेसर शर्मा की यादें में डूबी लीला जसरा उनके प्रति अपने प्रेम-आत्मीयता को छिपा नहीं पायीं। बोलीं:- … बहुत बहादुर था प्रो शर्मा। अंगे्रजों ने उसे बहुत टार्चर किया। पर उसने हार नहीं मानी।

डा लीला शर्मा हमेशा लाजवाब और जंगजू जैसी रहीं। हालांकि उनके दो बेटे हुए। एक यानी मनीषी का अचानक निधन हो गया और दूसरा यानी मनोज शर्मा मौलाना आजाद मेडिकल कालेज में कैंसर विभाग के प्रोफेसर हैं। प्रोफेसर मनोज शर्मा से तीन साल बड़े थे मनीषी। श्रीराम फाइबर्स में काम करते थे। गजब का जीवट था। बिलकुल मां का सा। एक बार 75 हजार का कबाड़ बेचने का सौदा उन्होंने बदला और 55 लाख रूपयों का लाभ कम्पनी को करा दिया। मनीषी ने अपनी जीवन में काम को नशे के तौर पर जिया। हालांकि जवान बेटे की मौत उन्हें बुरी तरह टूट गयी। जब महेंद्रवी हॉस्टंल में लीला जसरा जी से मैंने मुलाकात की, करीब चार घंटों के बीच वे कई बार टूटीं। लेकिन जीवट बेहिसाब बना रहा। हां, बातचीत के बीच कई बार वे स्मृति-लोप की स्थिति में भी आयीं, लेकिन सिर झटक कर फिर बातें करनी लगीं।

जीवन का काफी समय लीला जी ने महेंद्रवी हास्टल में गुजारा। राजा भिनगा की बेटी और राजा डूंगरपुर की पत्‍नी राजेंद्रकुमारी देवी उनकी शिष्या थी। वह पढाई पूरी कर जब गयी तो राजकुमारी राजेंद्रगकुमारी देवी ने लीला शर्मा को महेंद्रवी के पास की अपनी हवेली भेंट कर दी। लीला जी का हौसला देखिये। आज उन्होंने इस हवेली का एक बड़ा हिस्सा वृद्ध-जनों के हास्टल के तौर पर बना दिया है। यह दीगर बात है कि अब वहां वृद्ध भी नहीं बचे। सिवाय खादी के प्रति आज भी पूरी तरह समर्पित लीला जसरा और उनके सेवक लवधर द्विवेदी के। लेकिन यहां आते समय यदि आपने यहां के माहौल को गौर से देखा-महसूस करने की कोशिश की, तो साफ पता चल जाएगा कि यहां कभी महानतम लोगों में से रहे लोग रह चुके हैं।

बस आखिरी बात और। लीला जसरा के छोटे पुत्र प्रोफसर मनोज शर्मा अब भी काशी से जुड़ाव रखे हुए हैं। उन्हों ने यहां कैंसर पीडि़तों और खासकर महिलाओं के कल्याण सम्बन्धी़ अनेक प्रयोग शुरू किये हैं। उन्हें  यकीन है कि इनमें से एक नहीं अनेक लीला जसरा जैसी माताएं मौजूद होंगी।

इस बातचीत और आलेख की पहली कड़ी को देखने के लिए कृपया क्लिक करें:- “जसरा सिस्टर्स मस्ट कम फर्स्ट” और लीला जीत गयीं (1)

इस सीरीज को पूरी तरह देखने और पढ़ने के लिए कृपया क्लिक करें:- लीजेंड्स ऑफ बनारस

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *