: बिहार का जनमानस, जानकी, राम और गोस्वामी तुलसीदास बनाम नरेंद्र मोदी की ताजा बस-यात्रा : आम बिहारी अपनी बेटी का विवाह राम-क्षेत्र से करने में बिदकता है : रामशलाका की चौपाइयों को मैं बिहार की बेटियों के विवाह से जोडूं, या धार्मिक बस-यात्रा योजना में :
कुमार सौवीर
लखनऊ : मैं मूलत: अघोरी-घुमन्तू प्राणी हूं। धूल-कींचड़ से लेकर खीर-पकवान तक जो भी मिल जाए, रस बटोरता रहता हूं। इसी क्रम में करीब तीन बरस पहले मैं बिहार के छपरा यानी सारण के निवासी और वरिष्ठ अधिवक्ता बीरेंद्र नारायण सिंह से भी मिला था। न्याय-कर्म उनका पुश्तैनी धर्म है। गहन पाठक, गजब विश्लेषक और कुशल वक्ता हैं सिंह जी। बातचीत के दौरान चर्चा शुरू छिड़ गयी बिहार के मुकाबले बाकी पश्चिम भारत से सम्बन्धों पर। अचानक कोई टीस-सी लगी वयोवृद्ध श्री बीरेंद्र सिंह के दिल में। वे बरबस बोल ही पड़े कि हम बिहारी लोग बाकी पश्चिम क्षेत्र पर बेटी नहीं ब्याहते हैं। हालांकि अब नये माहौल में यह मान्यताएं टूटने लगी हैं, लेकिन आज भी अधिकांश बिहारी यह पसंद नहीं करता है कि उनकी बहन या बेटी की शादी बिहार से बाहर और खास कर पश्चिम राज्यों पर हो।
जाहिर है कि मैंने ही अगला सवाल उछाला, कि आखिर क्यों। जवाब था कि हम बहुत छले जा चुके हैं। हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक ग्रंथ और उनकी गाथाएं बताती हैं कि धोखा हुआ है हम बिहारियों से। सिंह साहब ने अपनी बात को और विस्तार देना शुरू कर दिया। बोले:- हमारी धार्मिक आस्थाओं में है बेटी। बेटी हमारे समाज में सर्वोपरि स्थान रखती है। इतना सम्मान और आदर शायद ही किसी और समाज में दिया जाता हो, जितना सामान्य बिहारी समाज अपनी बेटी और बहन को देती है।
श्री बिरेंद्र नारायण सिंह का तर्क था कि त्रेतायुग में हम बिहारियों ने अपनी बेटी सीता पश्चिम के राजा अयोध्या को सौंपी थी। लेकिन वे लोग हमारी उस बेटी को लगातार अपमानित ही करते रहे। कहां-कहां की धूल फांकती रही सीता। इतना असुरक्षित माहौल दिया गया हमारी बेटी को, कि उसका अपहरण तक हो गया। बाद में अबला और गर्भवती सीता को राम के आदेश पर लक्ष्मण ने बियावान जंगल में फेंक दिया। सीता ने उफ तक नहीं की।
मगर कुछ भी गया हो, कभी भी सीता ने राम को कभी भी नहीं छोड़ा। राजपरिवार और राम लगातार सीता पर जुल्म ढाते रहे, लेकिन तब भी सीता ने कुछ भी आवाज नहीं उठायी। तब भी नहीं, जब राम ने सीता की अग्नि-परीक्षा देने का आदेश जारी कर दिया। वह भी सरेआम, सार्वजनिक रूप से। सीता ने तब भी अपनी पीड़ा और अपने आंसू पी डाले, लेकिन चूं तक नहीं की। सीधे कदम उठाया और अग्नि के ज्वाला-कुण्ड में अपना प्राण दे दिया। श्री बीरेंद्र नारायण सिंह जी बताते हैं कि उनकी जानकारी में कई ऐसी घटनाएं हैं, जब बिहार की बेटी बिहार से पश्चिम ब्याह दी गयीं, लेकिन उनका सम्मान तो दूर, उन्हें हमेशा अपमान ही हुआ। हर क्षण, हर कदम। श्री सिंह पूछते हैं कि इन्हीं घटनाओं को देख कर अगर आम बिहारी अपनी बेटी-बहन का विवाह बिहार से पश्चिम करता है, तो क्या गलत करता है। तुम्हारे यहां बेटी और बहन के साथ क्या होता है, क्या संस्कार हैं तुम्हारे, हमें इसे जानने-समझने की क्या जरूरत है। हम तो केवल यह देख-समझ रहे हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, अपनी बेटी बिहार से पश्चिम मत देना चाहिए। खैर,
खैर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज जनकपुर में हैं। वहां वे अपने 2019 के चुनाव को लेकर रणनीति को मूर्त आकार देंगे। मसलन, मद्धेसियों को कैसे इस चुनाव से जोड़ा जा सके। किस तरह जनक पुर से अयोध्या का रिश्ता मजबूत किया जा सके। भले ही उनकी यह रणनीति सामान्य तौर पर दो देशों के परस्पर रिश्तों को मजबूत करने की दिख रही हो, लेकिन सच बात यही है कि इस बस-यात्रा का मूल आधार धार्मिक ही है। कहने की जरूरत नहीं कि बिहार के दरभंगा से सटे नेपाल के उत्तरी-पूर्वी में है जनकपुर, जो काठमांडू से करीब चार सौ किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्वी नेपाल में है। सीता का नाम मिथिलापुत्री और जानकी भी है। उसका तर्क यह कि जनकपुर ही बिहार के दरभंगा, मधुबनी एवं सीतामढ़ी और आसपास के विशाल मैथिल राज्य की प्राचीन राजधानी था। बाद में उस इलाका नेपाल में शमिल हो गया। नेपाल में आज भी सर्वश्रेष्ठ भाव को व्यक्त करने के लिए “रामरौ छ” शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे निकृष्ट भाव को व्यक्त के लिए “गू छ” बोलते हैं आम नेपाली।
बहरहाल, त्रेतायुग और कलियुग के संधि-काल में काशी में एक महाकवि पैदा हुए, जो अवधी में राम नाम का एक महान महा काव्य-ग्रंथ लिख गये। उनके ग्रंथ का नाम था रामचरित मानस, और उसके रचयिता थे गोस्वामी तुलसीदास जी। गोस्वामी जी ने यह जो ग्रंथ लिखा, वह सुखान्त कम जबकि अधिकांश दुखान्त ही है। अपने ग्रंथ में गोस्वामी जी ने कुछ चौपाई भी लिखे हैं, जिनका जिक्र उन्होंने अपने ग्रंथ के अंत में बनी प्रश्न-वली भी पर भी दर्ज किया है।
मसलन:-
चौपाई:- उधरे अंत न होहि निबाहू , काल नेमी जिमि रावण राहू !
अर्थात:- यह चोपाई बाल काण्ड के आरम्भ की है, कार्य की सफलता में संदेह है …
चौपाई:- बिधि बस सुजन कुसंगत परही, फनि मनि सम निज गुण अनुसरही !
अर्थात:- यह चोपाई भी बाल काण्ड के आरम्भ की है, बुरे लोगों का संग छोड़ दो कार्य पूर्ण होने में संदेह है …
चौपाई:- होई हें सोई राम रचि राखा, को करि तरक बढ़ावहि साथा !
अर्थात:- यह चोपाई बाल काण्ड में शिव पार्वती के संंवाद के समय की है, कार्य पूर्ण होने में संदेह है। प्रभु पर छोड़ दो …
चौपाई:- बरुन कुबेर सुरेस समीरा, रन सन्मुख धरि काह ना धीरा !
अर्थात:- रावण वध पर मंदोदरी के विलाप के संदर्भ में यह चोपाई है, कार्य पूरा होने में संदेह है …
उपसंहार:- मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि इन चौपाइयों को मैं बिहार की बेटियों से बिहार के बाहर के पश्चिमी क्षेत्र के साथ विवाह से जोड़ कर देखूं, या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आज जनकपुर से अयोध्या तक शुरू की गयी बस-यात्रा योजना में देखूं।