हमने भारती गांधी के जीवन के सभी पहलुओं की लम्बी पड़ताल और छानबीन की, ताकि बेहद प्रतिकूल हालातों में भी समाज की कोई बेटी किस तरह न केवल सफल हो जाती है, बल्कि दूसरी बेटियों के लिए भी प्रकाश-स्तम्भ भी बन जाती है। यह निर्विवाद है कि लखनऊ के विशालतम शिक्षा-साम्राज्य में बेताज बादशाहत हासिल है गांधी-दम्पत्ति को। भारती गांधी कम से कम अपने मामले में सफल और दूसरों के लिए उदाहरण बन चुकी हैं।
शुरूआती दौर में सिटी मांटेसरी स्कूल को लेकर अक्सर विवाद उठते रहे हैं। लेकिन इसकी सफलता की फेहरिस्त इससे कई गुना और बहुत आगे है। आपने पिछले अंक में देखा-पढ़ा सिटी मांटेसरी स्कूल यानी एसएमएस से संस्थापिका भारती गांधी के बारे में। उस खबर को देखने के लिए कृपया शिक्षा का दूसरा नाम हैं सीएमएस वाली भारती गांधी लिंक पर क्लिक करें। और उसके बाद आगे प्रस्तुत है भारती गांधी जी से हुई लम्बी बातचीत के प्रमुख अंश, जो डेली न्यूज एक्टिविस्ट में भी प्रकाशित हो चुका है:-
आप रेल अधिकारी की बेटी थीं। फिर यह शिक्षा का ख्याल कैसे आ गया
शिक्षा तो मेरा सपना रहा है जो साकार हुआ भी। सच बात यह है कि मैं क्लीनिकल साइकोलाजिस्ट बनना चाहती थी। मनोविज्ञान विषय मेरा पसंदीदा क्षेत्र था। इलाहाबाद में मैंने शैक्षिक मनोवैज्ञानिकशाला में इसी की पढ़ाई भी की। इस पढ़ाई की मदद से ही मैं बेहतर विद्यालय प्रबंधन क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकी गयी।
मनोविज्ञान ही क्यों
बहुत निजी मामला हो जाएगा। लेकिन आपको बता ही दूं कि चार बच्चों के बाद माता का निधन और फिर दूसरी मां। हमारा परिवेश। देश का बंटवारा। परिवार पर एक के बार पड़े संकट। पिता पर दंगाइयों का हमला, उनकी नौकरी खोना जैसे हादसे हमारे परिवार पर टूटे। शायद यही कारण रहा हो यह विषय लेने का। कोई भी शख्स अपने आसपास के माहौल से ही तो सीखता-टूटता है। है कि नहीं।
कभी शिक्षण तो और कभी टेलीफोन ऑपरेटरी। तुक समझ में नहीं आया
यह संघर्ष का दौर था। लक्ष्य के लिए पढ़ाई, और जरूरी खर्चों के लिए दीगर काम किये। मसलन, टेलीफोन, रसोई पकाना वगैरह। याद आता है तो हूक उठती है, लेकिन खुद पर गर्व भी होता है कि कुछ भी हुआ हो, मैं जीत गयी। विपरीत दायित्वों ने मुझे अपना रास्ता साफ करने में मदद दी। खाना और मकान का किराया अदा करने के लिए ट्यूशन किया। टेलीफोन की नौकरी के दौर में ही मैंने नाइट कालेज में छात्रों को अंग्रेजी की ट्यूशन पढ़ाया। उसी समय क्षेत्रीय शिक्षा अधिकारी रहीं ऊषा चटर्जी ने मेरी मेहनत पहचाना और मुझे लखनऊ में अस्थाई सह-मनोवैज्ञानिक बनवा दिया। मैं अपनी छोटी बहन आदर्श को साथ ले आयी। फिर इलाहाबाद में खुद और आदर्श को पढ़ाना आसान हो गया।
आपकी शादी तो खासी दिलचस्प हुई थी ना
गांधी जी से मुलाकात से पहले तो मैंने कभी शादी के बारे में कुछ सोचा ही नहीं था। पारिवारिक हालात ही ऐसे नहीं थे कि इस बारे में सोचा भी जा सके। परिवार को देखा-सम्भाला जाता या शादी। लेकिन अचानक उन्होंने प्रस्ताव रख दिया, तो मैं भी राजी हो गयी। शादी में मैं तो चंद लोगों को ही जानती थी, लेकिन गांधी जी छात्रसंघ अध्यक्ष थे। सबको न्योता दे आये। कार्ड नहीं, उन्होंने शादी के परचे चौराहों पर खड़े होकर बांटे थे। नाम से नहीं, सरेआम। बिना नाम लिखे। अरे वहीं स्टेशन रोड पर ही शादी हुई। तब राज्यपाल थे वीवी गिरी, जो बाद में राष्ट्रपति तक बने। राजभवन पर भी न जाने कौन यह परचा डाल गया तो वे भी पहुंच गये। बेहिचक जमीन पर बिछी दरी पर बैठ गये। पहले से ही तय था कि मैं आज की समस्याओं और उनके समाधानों पर बोलूंगी। पहले गांधी जी बोले, फिर मैं और उसके बाद सीधे वीवी गिरी बोलने खड़े। गजब है कि वे बोले:- जगत से भारती का विवाह। मैं स्तब्ध और गदगद थी। शादी पर ऐसे शानदार तोहफे की उम्मीद ही नहीं थी मुझे।
जगदीश गांधी के बारे में आपके क्या राय है
हमेशा उटांग-पटांग काम करते थे। वे पति नहीं, स्कार्पियो हैं। बहुत बोलते थे। हर विषय पर। जब कोचिंग शुरू की थी तो मोरल-भाषण दिया करते थे। नतीजा छात्र भाग जाते थे। खूब झगड़ा होता था हम लोगों का। कोई भी आयोजन होता तो व्यवस्था वे देखते और मुझसे कहते कि तुम फलां काम करो, ढमाका काम करो। लेकिन जल्दी ही पता चल गया कि उनके बराबर कोई नहीं। परस्पर समझ उत्पन्न हो गयी। फिर हम लोगों के लक्ष्य सटीक हो गये और हम उन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए एकजुट हो गये। चाहे वह भीख मांगना पड़ा या फिर कर्जा। मेरे परिवार को भी उन्होंने ही सम्भाला। बहुत कम लोग ही ऐसा करेंगे जो दायित्व। उन्होंने निभाया। आज चार बच्चे हैं हमारे। डॉ सुनीता, डॉ गीता, डॉ नीता और डॉ विनय। नीता मेडिकल है जबकि बाकी सब भी शिक्षा-क्षेत्र के दिग्गज हैं।
कभी आपस में झगड़ा
हां, खूब हुआ। लेकिन वह जीवन-गति थी। आनंद ही रहा।
बहाई धर्म क्यों अपना लिया
क्योंकि हमें लगा कि इससे बेहतर और किसी को हम नहीं समझ पाये। यह आसान और स्पष्ट है। दरअसल, हर धर्म का मूल सिद्धांत एक ही है, युग-धर्म अलग-अलग होते हैं। आपको बताऊं कि पहले हम लोगों के बीच खूब झगड़े होते थे, लेकिन सन-74 में बहाई धर्म अपनाने के बाद अप्रतिम शांति आ गयी जीवन में।
सीएमएस जैसे स्कूलों में छात्र-छात्राओं के अनुपात में बहुत फर्क है।
मेरा ख्याल है कि करीब 60:40 का अनुपात तो होगा ही।
आप तो अभिजात्य यानी इलीट क्लास वाले परिवारों के स्कूल हैं। फिर यह फर्क क्यों
ऐसी हालत बेहद दु:खद है। दरअसल हमारे समाज का ढांचा ही इसी तरह का होता जा रहा है। लड़कियों को भार माना जाता है जिनकी नियति शादी है। यह गलत है। जरूरत है कि इसे बारे में एकजुट होने की।
आपके स्कूल बेहिसाब महंगे हैं
नहीं। हमसे भी कई गुना ज्यादा महंगे स्कूल हैं। और फिर हम लोग बच्चों में केवल भौतिक गुणों के विकास पर ही केंद्रित नहीं है, बल्कि मानवीय और आध्यात्मिक गुणों पर भी जोर देते हैं।
सीएमएस में आप आईएएस, डॉक्टर, इंजीनियर बनाते हैं। कोई नेता कभी निकला आपके स्कूल से।
समाज में हर क्षेत्र अपने दायित्वों को निभा रहा है। हम भी अपना दायित्व पूरा कर रहे हैं। और फिर राजनीति बड़ा जटिल विषय है। जगदीश गांधी ने विश्व सरकार की वकालत की, जो पार्टीलेस हालातों में ही होगी। इसके लिए हम लगातार प्रयासरत हैं। दुनिया के सर्वोच्च न्यायाधीशों का सालाना अंतर्राष्ट्री य सेमीनार इसी क्रम में आयोजित होता है। जय जगत नारा है हमारा। सतयुग सतत चल रहा है।
तब और अब के लखनऊ में क्या फर्क दिखता है आपको
जमीन-आसमान का फर्क आ चुका है। मेरी शादी में हजारों सायकिलें और दर्जनों मोटरें थीं। आज की हालत आपके सामने है। सड़कों पर चलना दूभर है।
लखनऊ सुधारने के लिए आप क्या करना चाहती हैं
सबसे पहले गोमती नदी की सफाई। यह नदी नाला से भी बदतर हो चुकी है। भूगत-जल जहरीला होता जा रहा है। उस बारे में जागरूकता। यह हमारा शहर-प्रदेश है। इसे साफ रखा जाए। संवेदनशीलता, सामाजिक और पारिवारिक संबंध, प्रेम, सद्भाव और कानून-व्यवस्था के प्रति सम्मान और समर्पण।
अब आपका लक्ष्य
ठीक वही, जो हमेशा से ही है। मैं तो अपने लक्ष्य के प्रति हमेशा से ही समर्पित रही हूं और रहूंगी भी।
शिक्षा का दूसरा नाम हैं सीएमएस वाली भारती गांधी
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