शिक्षा का दूसरा नाम हैं सीएमएस वाली भारती गांधी

सक्सेस सांग

: सिटी मांटेसरी स्कूल में आज पढ़ते हैं 45 हजार से ज्यादा शिक्षार्थी : पढ़ाई के लिए दूसरों की रसोई पकायी, खटारा सायकिल चलायी : शादी में जमीन पर पालथी बैठे सुनते रहे भारती गांधी का भाषण राज्यपाल : पाखाना से पटे अलीगढ़ की सड़कों को साफ करने जुटे थे कभी जगदीश गांधी : दुनिया को बदल डालने की कोशिशें और उसे पूरा करने का जुनून है गांधी परिवार में :

पढ़ाई की ऐसी लगन लगी कि कभी किसी की रसोई पकायी, मांगी गयी पुरानी खटारा सायकिल पर रबर की चप्पलें चटखायी। दूसरे शिक्षकों के हिस्से की कापियां जांचीं, 3 रूपये रोजाना की दिहाड़ी पर टेलीफोन ऑपरेटरी की। नाइट कॉलेज में छात्रों को ट्यूशन पढ़ाया, लाइब्रेरी से मांगी किताबों के बल पर पढ़ाई पूरी की। शादी में फेरे लगाने के बाद मौजूद मुग्ध-स्तब्ध हजारों लोगों के सामने सामाजिक समस्याएं और उनके समाधान पर अपने विचारों पर आधारित लम्बा-चौड़ा लेक्चर दे डाला। हैरत की बात रही कि यह भाषण सुन भावप्रवण हो कर जमीन पर आल्थी-पाल्थी बैठे राज्यपाल ने खुद भी फिर भाषण दिया। यही राज्यपाल बाद में देश के राष्ट्रपति के पद तक को सुशोभित कर गये।

यह सारा कुछ आपको बिलकुल फिल्मी कहानी लग रही है ना। लेकिन ऐसा है नहीं। बस एक लाइन और पढि़येगा, यानी उपसंहार निहारियेगा तो आपकी आंखें फटी की फटी ही रह जाएंगी। यह कहानी है उस महिला की जिसने अपनी पूरी जिन्दगी शिक्षा को समर्पित कर दिया और आज वह 20 बड़े विद्यालयों की स्वामी-शिक्षिका है जिसमें 45 हजार से ज्या‍दा छात्र-छात्राएं अनुशासित पढ़ाई करते हैं। जी हां, आपने बिलकुल ठीक पहचाना। यह और कौन नहीं, भारती गांधी ही हैं। लखनऊ के अंतर्राष्ट्रीय ख्यांति और दुनिया में अपनी धाक मचाये सिटी मांटेसरी स्कूल वाली भारती गांधी। दो हजार से शिक्षक और डेढ़ हजार से ज्यादा कर्मचारियों वाले इस स्कूल को पिछले करीब 15 बरसों से गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड नवाजा जाता रहा है।

लेकिन भारती गांधी का शिक्षा का यह विशाल साम्राज्य यूं ही नहीं खड़ा हो गया है। 8 अगस्त-1936 में जन्मीं और ईंटा-रोड़ी नामक बुलंदशहर के इस इलाके में 11 भाई-बहनों वाले इस परिवार के पिता और रेलवे में इंजीनियर ऐश्वर्यचंद्रअ्ग्रवाल की दूसरी नम्बार की बेटी थीं भारती। देश के बंटवारे के समय पिता लाहौर में हमलावरों के शिकार बन अस्पताल और फिर दिल्ली पहुंचाये गये। लेकिन वहां भी दंगा चल रहा था। पिता तो बच गये लेकिन दंगाइयों ने डॉ जोशी समेत के अस्पताल के कई लोगों को मार डाला। पाकिस्तान से कागज न आने से नौकरी भी चली गयी। रोटियों के लाले पड़ गये। इंटर के बाद सिफारिश न होने के चलते शिक्षक स्कूल में प्रवेश नहीं मिल पाया। महादेवी के महिला कालेज में अंग्रेजी न होने के चलते निराशा मिली। बेबस भारती कानपुर के बिरहाना के कालेज में पढ़ने लगीं। इसके बाद एलटी कालेज लखनऊ ज्वाइन किया। 30 रूपया वजीफा मिला। यहां भी पास किया तो बरेली के टेलीफोन में नौकरी मिली। पार्ट-टाइम जॉब किया, नाइट कालेज में और उसके बाद इलाहाबाद के मनोचिकित्सा शाला में मनोवैज्ञानिक की पढ़ाई की। फिर लखनऊ विश्वविद्यालय से एमएड करने के लिए आयीं। रहने और भोजन का खर्चा हमेशा की ही तरह ट्यूशन ही था। किताबों के लिए पैसा कम पड़ता था तो सीधे यूनिवर्सिटी या किसी और लाइब्रेरी से हासिल कर लेती थीं। इसी बीच शादी हो गयी अपने जैसे ही एक फक्कड़ और मस्त-मौला शख्स से। नाम था जगदीश गांधी।

लेकिन जरा रूकिये। भारती गांधी की सफलता को समझने के लिए दो-एक लाइनें जरा जगदीश गांधी पर भी कर देना जरूरी होगा। दरअसल, अपने इंटर की पढ़ाई के दौरान जगदीश के जिले अलीगढ़ में सफाईकर्मचारियों ने हड़ताल कर दिया और शहर भर का मैला मुख्य बाजार पर फेंक डाला। 25 दिनों तक शहर बिलबिला उठा। बीमारियां फैल गयीं। लोग शहर से निकल भागे। बाहर से सफाईकर्मियों को न बुलाने की धमकी प्रशासन ने पहले ही दे डाली थी। ऐसे में जगदीश गांधी और उनके करीब 50 साथियों ने चुनौती ले ली, और पूरा शहर दस दिनों में साफ कर दिया। तब डीएम थे केसी मित्तल। जगदीश गांधी को उन्होंने पुरस्कृत किया। इतना ही नहीं, जगदीश गांधी जब लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष बने तो केसी मित्तल ही संयोग से लखनऊ के डीएम बने। उन्होंने जगदीश गांधी को स्टेशन रोड पर एक बड़ा मकान 65 रूपये महीने पर अलाट कर दिया। शादी के बाद इसी मकान पर भारती गांधी और जगदीश गांधी ने सिटी मांटेसरी स्कूल की नींव डाली थी।

इसके बाद से तो इन दोनों की किस्मत ही चमक गयी। सफलता का मंत्र था ईमानदारी और कड़ा परिश्रम। शौक था दुनिया को बदल डालने की कोशिशें और उसे पूरा करने का जुनून। और इन दोनों ने अपने इन सपनों को साकार करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। सपने के तहत उन्होंने दो बार चुनाव लड़ा, लेकिन हार गयीं। मगर स्कूल का मजबूत करने के लिए शिक्षा को प्राथमिकता दी और उसे शोहरत दिलाने के लिए हरचंद मुमकिन प्रयास किया। चाहे हो लखनऊ, दिल्ली रहा हो, या फिर लंदन या न्यूयार्क समेत दुनिया के अधिकांश देश। भारती गांधी ने हर जगह अपने स्कूल का झंडा फहराया।

इस खबर के बाद अगले अंक पर है श्रीमती भारती गांधी जी से हुई लम्बी बातचीत। इस बातचीत को पढ़ने के लिए कृपया नीचे लिखा लिंक क्लिक करें जनसंख्‍या में बेटियों का गिरा अनुपात बेहद दुखद: भारती गांधी ( श्रीमती गांधी के बारे में यह रिपोर्ट डेली न्‍यूज एक्टिविस्‍ट में प्रकाशित हो चुकी है। )

भारती गांधी से हुई बातचीत अगले अंक में

जनसंख्‍या में बेटियों का गिरा अनुपात बेहद दुखद: भारती गांधी

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