: जिस पत्र को शिक्षकों ने प्रेम-पत्र मान कर बच्चे को पीट दिया, वह मूल क्रियेटिविटी का परिचायक है : नजर पर सेक्स ही है, किसी सकारात्मक चश्मे का इस्तेमाल कैसे करें : वसीली अलांक्जांद्रोविच सुखोम्लिस्की की किताब पढ़ो गुरू जी। नाम है, बाल-हृदय की गहराइयां : सेक्स-जागृति एक :
कुमार सौवीर
लखनऊ : किसी भी कक्षा में प्राथमिक शिक्षा प्रक्रिया के तहत जिन क्रिया-विधियों और प्रक्रमों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है, वह है उनमें मौलिक शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास की प्रणालियां। इन्हीं प्रक्रियाओं के तहत बच्चे में पहले तो तस्वीरों से वस्तुओं को पहचानना, रटाना, खेलना सिखाना, अनुशासन सिखाना आदि प्रमुख गतिविधियां संचालित और सम्पादित की जाती हैं। इसके बाद श्रेणी आती है सोच कर लिखना सिखाना। लेकिन इस स्तर तक आने में तय किया जाता है कि बच्चे में न्यूनतम प्राथमिक शिक्षा का क्रम सम्पूर्ण हो चुका हो। सरकारी स्कूलों में यह स्तर कम से कम कक्षा दो तक माना जाता है। इसके बाद से ही इमला और सुलेख का क्रम आता है, जो कम से कम कक्षा पांच तक पूरी तरह निपटा लिया जाता है। मान लिया जाता है कि इस स्तर तक बच्चों का विकास हो चुका होगा।
इसके बाद शुरूआत होती है उस शिक्षा की, जो अब उसके मनोभावों को उकेर सके, ऐसा किया जाए ताकि बच्चे में मनोविकास की पींगें तेज हों, त्वरित हों और वह अपनी सोच-अभिरूचियों का प्राकट्यीकरण कर सके। उसे सिखाया जाए और फिर जांचा-परखा जाए कि उसने जो कुछ भी देखा, महसूस किा है, उसे वह बच्चा अभिव्यक्त कर भी सकता है या नहीं। ताकि उसकी प्रगति का नियमित परीक्षण-निरीक्षण कर उसे और भी विकसित, परिवर्द्धित और परिष्कृत किया जा सके। सोने को तपा कर उसे कुन्दन की तरह दमकाया-चमकाया जा सके। निर्दोष तैयार किया जा सके।
कहने की जरूरत नहीं कि इस स्तर तक शुरू की जा रही इन प्रक्रियाओं की शुरूआत निबन्ध से होती है। निबंध किसी भी विषय पर बोला, बताया और लिखाया जाता है। निबन्ध किसी भी विषय अथवा प्रकरण पर हो सकता है। सामान्य तौर पर निबन्ध के प्राथमिक विषय होते हैं गाय, मेरे मित्र, मेरी मां, मेरी बहन, मेरे पिता, मेरे भाई। कहने की जरूरत नहीं यह सब निपट निजी रिश्ते होते हैं, ताकि छात्र में महसूस किये जा चुके निजी अनुभवों को शब्दों में पिरोया जा सके, जिसमें उसकी भावनाओं को सार्वजनिकीकरण हो सके।
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इसके बाद कई ऐसे विषय होते हैं जो निजी अनुभवों से अलग समूहों के व्यवहार पर केंद्रित होते हैं। मसलन बाजार, मेला, मेरा विद्यालय, खेल और लखनऊ व दिल्ली आदि-इत्यादि। इनमें में उन लोगों की गतिविधियों का प्रदर्शन होता है, जिन्हें उन्हें सामूहिक तौर पर देखा और समझा होता है। इतना ही नहीं, वह उन समूहों की प्रत्येक इकाई और उसके पूरे माहौल पर समवेत विश्लेषणात्मक आलेख तैयार करने की कोशिश करता है। यह विषय सामान्य तौर पर कक्षा आठ के आसपास ही बोले, कहे और व्यक्त कीजिए जाते हैं।
कक्षा 6 के बच्चे ने प्रेमप्रत्र लिखा, तो स्कूल के शिक्षकों ने उसे फुटबॉल समझ कर कूटा
उसके बाद नम्बर होता है बच्चे में भावनात्मक विकास से जुड़े विषय का। मसलन, स्कूल में पहला दिन, परीक्षा का माहौल, चिडि़याघर की सैर। लेकिन उसके बाद और भी गहन विषयों पर निबन्ध लिखवाया जाता है। मसलन, होली, दीपावली, ईद, ईस्टर, झगड़ा, दंगा वगैरह। लेकिन यह सारे विषय तो इंटर हाईस्कूल तक ही चलते हैं।
लेकिन यूपी के पूर्वांचल के एक जिले अम्बेदकरनगर के एक सरकारी विद्यालय में कक्षा छह में पढ़ने वाला बच्चा तो सीधे प्रेम पर निबन्ध लिख बैठा। अरे ज्यादा से ज्यादा दस-ग्यारह साल का ही होगा न यह बच्चा। ऐसे में अगर इस उम्र में किसी बच्चे ने कोई पत्र लिखा, भले ही वह प्रेम-पत्र ही क्यों न हो, तो क्या गलत लिखा गुरू जी। और फिर आपने अपने सारे स्कूल के शिक्षक-साथियों के साथ मिल कर उसकी सारे बच्चों के सामने जमकर पिटाई कर दी।
गुरू जी, आपसे एक गुजारिश है। आप ने तो बीटीसी की डिग्री हासिल की है न, जहां बच्चों के साथ उनके व्यवहार को समझने की कोशिश की जाती है? फिर आप उसे सिर्फ सेक्स से ही क्यों तौल रहे हैं? क्यों न उसकी इस हरकत को उसकी क्रियेटिविटी के तौर पर देख रहे हैं?
यह आलेख कम से कम दो कडि़यों पर समेटने की कोशिश की जा रही है। सवाल है कि कक्षा छह के बच्चे ने अगर प्रेम पर कोई पत्र लिखा, तो क्या अपराध किया। आप सब पाठकों से अनुरोध है कि इस बात पर अपने अनुभव अथवा कोई प्रतिक्रिया देना चाहें तो आप या तो उसे कमेंट-बॉक्स पर दर्ज कर दें। अथवा यदि वह आलेख विशेष और विस्तृत हो तो सीधे हमें ईमेल कर दें। हम उसे श्रंखलाबद्ध आलेख कड़ी में नये तौर पर जोड़ लेंगे।
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प्रेमपत्र पर शिक्षक ने बच्चे को कूट डाला