चैन-सुकून खोजने की कश्‍मीरी मौसिकी पर हमला

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

बेटियों के अरमानों की कत्लगाह बन रहे हैं कठमुल्लों के फतवे : लड़कियों के प्रागाश रॉक-बैंड पर लगे मजहबी प्रतिबंध से भगदड़ : खब्‍बा खातून, राज बेगम, ज़ून बेग़म और हसीना अख़्तर व नसीम बानो बेमिसाल : दशकों नहीं, सदियों तक घाटी के सांस्कृतिक फलक पर राज किया गायिकाओं ने :

दहशत के साये में रोज-ब-रोज कश्मीर और जम्मू को दहशतगर्द भले ही अपनी अलगावी और आतंकी करतूतों से दहला रहे हों, लेकिन अमन, मोहब्बत और परस्पर इंसानी भावनाओं का इजहार करने वाली लड़कियां जब अपनी खुद की मौजूदगी की आवाज उठाती हैं तो कहर बरपा हो जाता है। श्रीनगर में यही हुआ। पूरे प्रदेश में सर्वश्रेष्ठ गीत-संगीत की टोली के तौर पर सम्मानित तीन स्कूली लड़कियों ने जब अपने हुनर का प्रदर्शन करने का फैसला किया तो पूरा देश हर्ष और उल्ला्स से झूम हो गया, लेकिन यह खुशी बस कुछ क्षणों तक ही रही। संगीत के सबसे बड़े खलनायक के तौर पर उभरे कश्मीर के मुफ्ती बशीरुद्दीन अहमद ने इन लड़कियों के इस बैंड का विरोध किया और बैंड को शरीयत विरोधी करार दे दिया। इस फतवा को बशीरूद्दीन के अलावा कुछ संगठनों ने भी समर्थन देकर आग और भड़़का दी। देश स्तूब्धन रह गया। हाईस्कूली पढाई में जुटी इन महत्वाकांक्षी लड़कियां के हौसलों को यहां के बेहिसाब सख्त। समाज ने इतनी बुरी कुचल डाला है कि अब उनमें एक तो बैंड-टीम से अलग हो ही चुकी है, साथ ही वह अपने परिवारीजनों के साथ प्रदेश से भाग कर शायद कर्नाटक की ओर निकल गयी है। हालांकि मुख्य्मंत्री उमर अब्दुल्ला ने इन हालातों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया, लेकिन यह लड़कियां और उनके घरवाले बुरी तरह सहमे हुए हैं। बॉलीवुड और कई विदेशी संगीतकारों और कलाकारों की ओर से बढ़े हौसलाआफजाई के कदम भी लड़कियां के डर दूर नहीं कर पाये हैं। इस रॉक-बैंड की बाकी दोनों सदस्यों ने बैंड-बजाने का फैसला फिलहाल मुल्तकवी कर दिया है।

कहने की जरूरत नहीं कि कश्मीर और आसपास के इलाकों में संगीत, गीत और गायन बाकायदा परम्परागत ही नहीं, इस समाज में जागृति का अनिवार्य जीता-जागता जीवन है। करीब 21 सौ साल पहले कुषाण के शासनकाल में पहली बौद्ध-संगीति का आयोजन इस पूरे इलाके की बौद्धिक समृद्धि का परिचायक बन चुका है। पास के ही बामियान यानी आज के अफगानिस्तान में दुनिया में सबसे ऊंची गगनचुम्बी। बौद्ध-प्रतिमाएं बनायी गयी थीं, जो करीब एक दशक पहले तालिबानी आतंक के चलते ध्वस्त हो गयी। धर्म, प्रेम, लोक, अभिव्यक्ति, प्रकृति आदि का गुणगान करना इस इलाके की खासियत है। शैव-भक्त। ललद्य देवी के गीत कश्मीर और आसपास के इलाकों में घर-घर में गाये जाते हैं। बिना जाति या सम्प्रदायिक विद्वेष के, पूरे सम्मान और समर्पण के साथ। इतना ही नहीं, स्टेज पर औरतों की मौजूदगी शुरू से ही कश्मीर की शानदार रवायत का हिस्सा रही है। कश्मीर में कवयित्रियों और गायिकाओं की सूची लंबी है। अतीत से लेकर अब तक घाटी में स्थानीय गायिकाएं काफी लोकप्रिय रही हैं और कश्मीर ने हमेशा ही इन पर फख्र किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद की बेगम शमीम आजाद घाटी की सबसे लोकप्रिय फनकारा हैं। गायिका खब्बां खातून, राज बेगम, राज बेग़म, ज़ून बेग़म और हसीना अख़्तर और नसीम बानो ने तो कई दशकों तक घाटी के सांस्कृतिक फलक पर राज किया है। दूरदर्शन का स्थानीय केंद्र भी लगातार टैलेंट शो आयोजित करता रहा है और ये कार्यक्रम लोगों में खूब पसंद किए जाते हैं। इस कार्यक्रम की बदौलत ही सूबे की कई प्रतिभाओं और आवाजों ने नई पहचान हासिल की है। इसलिए प्रगाश की आमद और उसकी शोहरत घाटी के लिए कोई अनूठी घटना या अनहोनी नहीं थी। यह हालत तब भी है कि कश्मीर पिछले करीब ढाई दशकों से आतंक और बदहाल से जूझ रहा है और रोज-ब-रोज हो रहे धमाकों और हत्याओं से यहां का जनमानस त्रस्त हो चुका है।

इसी बीच और इसी माहौल में यहीं के कुछ युवकों ने ब्लंड-रॉक्सस नाम से एक बैंड की स्थाणपना की। जाहिर है कि यह प्रयास उच्च मध्यम वर्ग से उमड़ा था और देखते ही देखते यह बैंड लोकप्रिय होने लगा। यह इस त्रस्त कश्मीरी के घावों पर मलहम जैसा रहा और उसे और मजबूत करने के लिए मुस्लिम परिवारों की तीन स्कूली लड़कियां भी कश्मीरी घाटी की सांस्कृतिक फलक पर सामने आ गयीं। यह तीनों लड़कियां कक्षा-10 की छात्रा हैं। इन लड़कियों के इस नये बैंड का नाम है प्रागाश, यानी अंधेरों के खिलाफ एक फैसलाकुन रौशनी। बैंड को मशहूरत मिली रोहित राठौर के गीत से, जिसके बोल थे कि आशिक तेरा भीड़ में खोया रहता है जानेजाना, पूछो तो कि इतना कहां रहता है। दरअसल, इस गीत में भाव था कश्मी।र घाटी में खो चुकी शांति को खोजने की कोशिश। यह घटना है करीब छह महीने पहले की। लोगों ने इसे भी हाथोंहाथ लिया और इस बैंड ने सार्वजनिक रूप से दर्जनों कार्यक्रम पेश किए। शुरुआत में स्कूलों और फिर छोटी-छोटी सभाओं में। पिछले दिसंबर में तो यह बैंड उस वक्तह उछल कर सुर्खियों में छा गया, जब बैटल ऑफ़ द बैंड नामक सालाना प्रतियोगिता में सफलता का झंडा उठाते हुए श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंडोर स्टेडियम में एक टैलेंट शो में इस बैंड की नोमा नज़ीर, फरहा दीबा और अनिका ख़ालिद बाकायदा हीरो बन कर निकलीं।

बस, पिछले बरसों से किसी नये मुद्दे की तलाश में जुटे कट्टरवादियों को इन लड़कियों की यह सफलता हजम नहीं हो पायी और इसे लड़़कियों की अस्मशत और हिजाब से जोड़कर बैंड और उसके गीतों पर फतवा कर दिया तो हंगामा खड़ा हो गया। मुफ्ती के समर्थकों ने बैंड और उसकी कार्यकर्ता लड़कियों से निपटने के लिए जेहाद छेड़ दिया। मामला गरम देखकर इस बैंड के प्रमोटर अदनान को घाटी से बाहर भागने पर मजबूर हो गया। लेकिन वहीं दूसरी ओर ईरान की महिला बैंड ‘गजल’ ने उनसे अपना पैशन नहीं छोड़ने की अपील की है।

कुछ भी हो, अब लड़कियों को धमकियां मिल रहीं हैं। फ़ेसबुक और ट्विटर पर गैंगरेप और गालियां जैसी दी जा रही हैं। अलगावी नेता सैयद अली शाह गिलानी और घाटी में सक्रिय महिला नेता आसिया अंद्राबी के मुताबिक यह सब इस्लामिक संस्कृति से दूर करने की एक साज़िश है। लेकिन अब यह लड़ाई केवल इन लड़कियों तक की नहीं है। नजमा हेपतुल्ला, प्रोफ़ेसर हमीदा नईमा और उमर अब्दुल्लाह, बलबीर पुंज, दिग्विजय सिंह समेत एक बड़ा तबका ऐसे फतवे पर खारिज कर रहा है। विरोधियों के मुताबिक धार्मिक कट्टरपंथी लोग अपनी मर्ज़ी से समाज को चलाना चाहते हैं। महिला अलगाववादी संगठन दुख्तरान-ए-मिल्लत की बैंड में शामिल लड़कियों के सामाजिक बहिष्कार की धमकी के बाद एक अन्य महिला अलगाववादी संगठन मुस्लिम ख्वातीन मरकज लड़कियों के समर्थन में है। संगठन की चेयरमैन जमरूदा हबीब ने कहा कि पूरे मामले में राई को पहाड़ बनाया गया है।

पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री मुजफ्फर हुसैन बेग ने प्रगाश बैंड को लेकर लामबंद हुए कई कट्टरपंथी उलेमाओं को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि मैं ऐसे कई मौलवियों को जानता हूं जो अपने घरों में बंद कमरों में बैठकर ब्लू फिल्में देखते हैं। बेग का कहना है कि मजहबी नेता तो सियासी दलों के इशारों पर चलते हैं। अगर ईरान और पाकिस्तान में लड़कियां नाच-गा सकती हैं तो फिर यहां कश्मीर में क्यों नहीं। यहां कुछ मुल्ला अपने गैर जरूरी फतवों के जरिये कश्मीर को नरक बनाने पर तुले हुए हैं। कहने की जरूरत नहीं बेग की बात में अगर दम नहीं होता, तो न तो घाटी में बैंड बनता और न ही ऐसे फतवों पर इतना जबर्दस्त हंगामा। यह दीगर बात है कि जीत फिलहाल दूर दिखायी पड़ रही है।

 

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