: नाकारा और बीमार पति ने फेंक दिया कामकाजी मीना के चेहरे पर तेज तेजाब : घरवालों को बचाने खुद जेल गयीं महिलाओ को दुत्कार देते हैं ससुरालवाले : जेल से रिहा मर्द खुश होता है, जबकि महिला चाहती है कि उसे हमेशा जेल में रखा जाए : यह यक्ष्-प्रश्न होता है महिला के सामने कि जेल से छूटने के बाद आखिर वह कहां जाए : किसी अभिशाप से कम नहीं होती है हमारे समाज में सामान्य औरत की जिन्दगी : मुसलमान घर में तलाक, तो हिन्दू परिवार तेजाब अथवा केरोसिन-पेट्रोल डालकर जिन्दगी तबाह :
लखनऊ: जेल का नाम ही किसी की रूह कंपा डालने में पर्याप्त है, लेकिन जरा उन महिलाओं के बारे में सोचिये, जो बरस-दर-बरस जेल में पड़ी सड़ रही हैं। जी हां, जेल में बंद ज्यादातर महिलाओं की कहानी किसी भी शख्स की आंखों से बेहिसाब आंसू निकाल सकता है। यहां जेल की ऊंची दीवारों के भीतर पसरी पड़ी हैं दर्दनाक और डरावनी दास्तानें। बस अपना दिल-जिगर सम्भालिये और सुनने बैठ जाइये कि कैसे किस वहशी से निपटते समय उससे हाथों से क्या-क्या हो गया, कि अपने घरवालों को बचाने के लिए किस-किस तरह वे खुद जेल चली गयीं, कि किस तरह उन्हें षडयंत्रों का शिकार बनना पड़ा। और सबसे बड़ी सचाई यह भी देखिये कि अब इनमें से ज्यादातर महिलाओं को अपनाने के लिए उनके घरवाले तैयार ही नहीं हैं।
यह अनुभव हैं उस समाजसेवी महिला के, जो जेल में बंद महिलाओं के लिए काम करती हैं। इनका नाम है: मीना, उम्र: 38 वर्ष, कद: साढ़े 5 फीट, बदन: हल्का दोहरा, रंग: साफ गेहुंआ, पहनावा: सलवार-कुर्ता-दुपट्टा, पहचान: दोनों हाथों, सीना-गर्दन और चेहरे पर फेंके गये तेजाब से बुरी तरह जली चमड़ी। जी हां, मीना यह वही शख्स हैं जो असहनीय दर्द पी-बर्दाश्त कर दूसरी महिलाओं की पीड़ा हल्का करने की कोशिश में हैं। महिलाओं के हक को लेकर जुटी आली संस्था के अभिरूचि का अधिकार आंदोलन के साथ मीना सनतकदा-संगठन के साथ जेल में बंद महिलाओं पर काम कर रही हैं। खासकर उन महिलाओं के सामाजिक पहलू पर।
राजधानी के गोसाईंगंज कस्बे के ठठेरी मोहल्ला में पिता जगन्नाथ गुप्ता और मां कंचन की 8 संतानों में सबसे छोटी हैं मीना। कस्बे में ही पिता की सायकिल की बड़ी दूकान थी। 4 जनवरी-74 को जन्मी मीना ने रामपाल इंटर कालेज से हाईस्कूल किया और 15 उम्र में ही उसकी शादी बांदा के अतर्रा कस्बे के सुनार कांदीलाल सोनी के सबसे बेटे राजकुमार से हुई। राजकुमार 8 बहन-भाई थे। कांदीलाल का सुनारी काम मंदा था, ऊपर राजकुमार को टीबी हो गयी। तब तक 2 बेटी और 1 बेटी भी पैदा हो गयी। परिवार को रोटी और पति को दवा मुहाल हो गया तो सन-98 में मीना ने कर्वी में महिला समाख्या में काम शुरू किया। पति और बच्चे साथ ही कर्वी आ गये। जल्दी ही निरंतर के खबर-लहरिया में में उसे रिपोर्टर का काम मिल गया। बहुत जिम्मेदारी का काम था, बहुत समय लगता था। घर भी सम्भालना पड़ता था। लेकिन देर-अबेर देखकर राजकुमार अधीर हो जाता। कहासुनी भी शुरू हो गयी। और आखिरकार मीना की इस कहानी में नायक राजकुमार ने तेज तेजाब डालकर अपनी नायिका के चेहरे को झुलसा दिया। यह भी नहीं सोचा तीनों मासूम बच्चों पर क्या बीतेगी।
यह 30 जून-04 की दोपहर थी। झुसली दोपहर में मीना फर्श पर आंखों पर हाथ ढांपे लेटी थी, कि अचानक उसके हाथ-गर्दन-सीने और हाथों पर जैसे दहकते अंगारे बहने लगे। वह चौंकी तो राजकुमार ने उसका ब्लाउज पकड़ कर दबोचना चाहा, जो तेजाब से गल चुका था। मीना सड़क पर दौड़ी। पास के एक डाक्टर सुरेंद्र का क्लीनिक था, लेकिन सुरेंद्र ने इसे पुलिस का केस बताते हुए इलाज न करने की बात कही। इस पर तड़पती मीना जिला अस्पताल पहुंची। एक दिन पहले यहां के डॉक्टरों का इंटरव्यू मीना ने छापा था, सो वे उसे पहचान गये। प्राथमिक चिकित्सा के बाद उन्हें इलाहाबाद मेडिकल कालेज रेफर कर दिया। तब तक वनांगना, निरंतर आदि संगठन के लोग जुट गये। पता चला कि घटना के बाद राजकुमार ने तेजाब पीकर आत्महत्या कर ली थी। इलाहाबाद में करीब ढाई महीने तक मीना का इलाज हुआ। बाद में लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल कालेज में प्लास्टिक सर्जन एके सिंह ने लम्बे तक उनका सफल इलाज किया। अब दाग कम हैं, लेकिन दंश की तरह चुभते तो हैं ही। मीना बातचीत में इस पूरे दौरान निरंतर संस्था और उनकी माधवी के सहयोग का आभार मानती हैं। उस दौरान अच्छा-खासा खर्चा हो गया था।
लखनऊ में मीना का मानो नया जन्म हुआ। सनतकदा और आली से जुड़ीं। आज करीब दर्जन भर महिलाओं के बीच काम कर रही हैं। इसके अलावा जेल में बंद महिलाओं को संबल दिलाने में जुटी हैं। मसलन, कानूनी सलाह दिलाना और उन्हें जमानत दिलाने की कोशिशें।
प्रस्तुत है मीना से हुई बातचीत:———
शादी के पहले भी तो आपने अपनी जिन्दगी के बारे में सोचा होगा। जरा बताइये
मुझे लगता है कि तब मैं भी वही सब कुछ सोचा करती थी, जो हर लड़की करती है। मसलन, आदर्श पति, सरल ससुराल, दुलारती सास, चुटकियां काटती ननदें—- और और बहुत कुछ। वह सारा कुछ जो हमेशा हमेशा के लिए मेरे पल्लू में बंधकर मुझे खुश करता रहे। मायका में सबसे छोटी-दुलारी थी मैं, जबकि ससुराल में सबसे बड़ी बन गयी। इतना भी होता तो कोई बात नहीं, जिम्मेदारियां बेहिसाब हो गयीं कि—। छोडि़ये, यह सब याद करना भी बहुत कष्टप्रद हो जाता है।
आप तो रिपोर्टर भी रह चुकी हैं ना
हां, निरंतर संस्था की खबर-लहरिया पत्रिका में काम करती थी। कर्वी में रिपोर्टर की हैसियत से। दरअसल, घर की हालत खराब हुई तो मैंने नौकरी करने का फैसला किया था। मन का काम था, पगार भी बढिया ही थी। कुछ भी हो, पूरे इलाके को तो मैंने छान ही डाला था।
आज 15 साल के बाद आज कैसा महसूस करती हैं आप
दुरूस्त। पूरे होश-हवास के साथ। तरोतराज। अब न किसी से कोई शिकायत है और न कोई शिकवा। मैं नये अंदाज में जिन्दगी के साथ कदमताल कर रही हूं। आज को तो मैं ताजा सुबह मानती हूं और बीता हुआ कल को बेहद डरावना दिवास्वप्न।
कभी आपने सोचा कि आखिर राजकुमार ने ऐसा क्यों किया
बीमार दिमाग, और क्या। खाली दिमाग शैतान का घर कहा जाता है ना। वरना जो आपका घर-परिवार चला रहा हो, जो आपके बच्चों की परिवरिश कर रहा हो, जो आपकी बीमारी में देखभाल कर रहा हो, वह ऐसा क्यों करेगा। चूंकि आप कोई काम नहीं कर सकते तो दिन पर दिमाग में नकारात्मक बातें ही पलेंगी। अवसाद बढ़ेगा और फिर कोई न कोई विस्फोट होगा जरूर। बस, मन में फांस-सी लगी लगती रहती है कि आखिर मैं इस हादसे से पहले ही अलग नहीं हो गयी। लेकिन चलो, जो कुछ भी हुआ, ठीक हुआ। हो सकता है कि यह न होता तो जिन्दगी की तल्खी कैसे महसूस करती।
तब की मीना और आज की मीना में क्या फर्क दिखता है आपको
आज की मीना पूरी तरह बदल गयी है। यह मीना बोल सकती है, अब अपनी राय दे सकती है और उसे बोल्डली फेस भी कर सकती है। समझदार है और जानकारियों से लैस है। जिज्ञासु तो शुरू से ही थी। काम करना तो आज की मीना की फितरत है। दरअसल, हादसे ने मुझ में जो बदलाव लाये हैं, कोई भी महिला होती तो मेरी ही तरह बदल जाती।
कभी दूसरी शादी का विचार मन में आया
न्न्न्न्न्न । सपने में भी मैं शादी की बात नहीं कर पाती हूं। आपको बताऊं कि उस घटना के बाद से ही मुझे मर्द शब्द से नफरत हो गयी थी। हां, अब मर्द से तो नहीं, लेकिन पति शब्द से मुझे ऐसा लगता है जैसे कोई तेजाब लेकर आ रहा हो और अभी मेरे चेहरे पर फेंक डालेगा। अरे हो गया सब। खूब भोग लिया इस जिन्दगी को, अब इससे एक रत्ती भर ज्यादा नहीं बर्दाश्त कर पाऊंगी।
पूजा-पाठ वगैरह
अनुष्ठान के तौर पर बिलकुल नहीं। हां, कभी कहीं मंदिर दिख जाए या पूजा चल रही है तो हाथ जोड़कर मन ही मन जय भगवान का जयकारा लगा लेती हूं। इससे ज्यादा नहीं। पहले जरूर खूब पूजा-पाठ होती थी। अरे आपको बताऊं कि शादी के बाद से तो मैं हर व्रत-पूजा करती थी। करवाचौथ भी बिना नागा किया। लेकिन अब लगता है कि सारी पूजा-पाठ के चलते ही मेरी यह हालत हुई।
आप तो जेल में भी सुधार और प्रशिक्षण कराती हैं। जेल में बंद महिलाओं की हालत कैसी महसूस करती हैं आप
रौरव-नर्क भी शायद इतना बुरा नहीं हो सकता है, जितना जेल में बंद महिलाएं भोगती हैं। आप सोच तक नहीं सकती हैं कि जेल में बंद ज्यादातर महिलाओं की हालत क्या होती है। जेल जाने से महिला तो दूर, पुरूषों तक की रूह कांप जाती है। महिला के लिए तो जेल जाने की कल्पनातीत है। लेकिन उससे ज्यादा कष्ट और संताप-प्रद हालत तो जेल आने के बाद होती है। और सबसे ज्यादा घाव तो जब मिलते हैं, जब एक महिला जेल से बाहर निकलती है। बड़ा अंतर होता है स्त्री और पुरूष में। जेल से रिहा करके एक मर्द बेहद खुश होता है, जबकि एक महिला चाहती है कि उसे हमेशा-हमेशा के लिए जेल में ही रखा जाए। जेल से छूटने के बाद आखिर वह कहां जाए, उसे समझ ही नहीं आता।
आपका अनुभव क्या बताता है कि क्या किसी खास जाति में महिलाओं की हालत बुरी है, या सभी जगह ऐसा ही है
यह स्वार्थों और हितों के नाम और अर्थ हैं। इसका धर्म या जाति से कोई मतलब नहीं। कम से कम मैंने तो यही हालत देखी है कि औरत की जिन्दगी किसी अभिशाप से कम नहीं होती है। मुसलमान परिवार में महिला का हित टूटा तो तलाक देकर अलग कर दिया जाएगा। और हिन्दू परिवार में चूंकि तलाक देकर औरत से पिंड छुड़ाने का कोई तरीका नहीं है, इसीलिए उसे तेजाब अथवा केरोसिन-पेट्रोल डालकर निपटाया जाता है।
तो अब जीवन की दशा
अब सिर्फ बच्चों के लिए है यह जिन्दगी। इनकी खुशी में ही मेरी खुशी है। जो चाहें, बन जाएं ये लोग। कभी किसी पर थोपना नहीं चाहती हूं मैं। बच्चे अपने पैरों पर मजबूत हो जाएं, किसी ठीहे पर लग जाएं बस। इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या होगी मेरे लिए। एक बात और, चाहती जरूर हूं कि हमारे या आसपास के परिवारीजनों के बच्चों में ऐसे संस्कार जरूर बो दिये जाएं, जिससे वे महिलाओं के प्रति गंभीर और संवेदनशील बन सकें। हां, कभी मुमकिन हुआ तो एक मकान हासिल करने की ख्वाहिश जरूर है।
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यह रिपोर्ट डेली न्यूज एक्टिविस्ट में प्रकाशित हो चुकी है।