ऐश करने लखनऊ लोहिया अस्पताल पहुंचा अमरमणि त्रिपाठी

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: हाईकोर्ट से हत्या्रा करार शख्स राजधानी में पिकनिक मनाते मिला : बात खुली तो आनन-फानन दफा किया गया अस्पताल से : चार दिन तक अपने खानदान को लोकसभा चुनाव की रणनीति करता रहा : अब सारे डॉक्टर बदल रहे हैं मामले पर अपने बयान : शिवपाल सिंह यादव गोरखुपर जेल में गये अमरमणि से मिलने : ईमानदार दारोगा का खूनी औलाद निकला अमरमणि : गर्भपात से इनकार पर मारी गई थी मधुमिता : शेर-शायरी का चारा फेंका था अमरमणि ने मधुमिता पर :

गर्भवती मधुमिता को मौत की नींद सुलाने वाले अमरमणि त्रिपाठी अपना खानदानी राजपाट हासिल करने के लिए चार दिनों तक लखनऊ के लोहिया मेडिकल इंस्टीच्यूट में भर्ती रहे। बात खुली तो आनन-फानन उन्हें गोरखपुर दफा किया गया। अब यहां के सरकारी डाक्टर मुंह चुरा रहे हैं। एक डॉक्टर कहता है कि हड्डी में दिक्कत थी, जबकि दूसरा डॉक्टर कह रहा है कि त्रिपाठी को डिप्रेशन था। लोहिया अस्पताल के अधीक्षक कहते हैं कि त्रिपाठी को भर्ती नहीं किया गया था। दरअसल, त्रिपाठी-ख्वापहिश है कि महराजगंज से सपा उनके खानदान को ही लोकसभा लड़ाये। लोहिया अस्पताल आने का मकसद इलाज नहीं, बल्कि राजनीतिक गोटियां चलाना ही था। 15 दिन पहले शिवपाल सिंह यादव इसी सिलसिले में गोरखपुर जेल जाकर अमरमणि त्रिपाठी से मुलाकात कर चुके हैं। हाईकोर्ट भी त्रिपाठी को मधुमिता हत्या में अपराधी मान चुका है।

कई-कई महीनों तक जेल से लापता रहे हैं अमरमणि

सच कहा जाए तो यूपी के राजनीतिक हालात अब बेहद शर्मनाक नहीं, बेशर्म हैं। प्रदेश के जेल से लेकर अस्पतालों तक में ऐसे जघन्य, अमानवीय, नृशंस कैदियों की मौज है। इस पूरे कांड के दौरान बहुचर्चित मधुमिता हत्याकांड में सजा काट रहे बसपा विधायक अमरमणि त्रिपाठी ने बार-बार नियमों की धज्जियां उड़ायीं हैं। कभी बीमारी तो कभी बस यूं ही कुछ न कुछ का बहाना बनाकर 2-2 माह से जेल से बाहर रहे हैं अमरमणि। हमेशा की तरह जब मामले ने तूल पकड़ा तो गहरी नींद में सो चुकी सरकार जाग गई और मामले में जांच के आदेश दिये। लेकिन अगली जांच रिपोर्ट आने से पहले ही अमरमणि फिर जेल से गैरकानूनी रिहाई में बाहर निकल गये।

इसके पहले भी वाराणसी जेल प्रशासन को कोई सूचना दिये अमरमणि यहां आराम फरमाने के लिये बीमारी का बहाना बनाकर अस्पभताल पहुंच गये। मामला हल्ला स्तर पर उतरा, तो सरकार जाग गई और तब के एडीजी लॉ एंड आर्डर बृजलाल ने जांच के आदेश दिये। मालूम चला कि अमरमणि त्रिपाठी उन दिनों वाराणसी के बीएचयू अस्पताल में बीमारी के बहाने आराम फरमा रहे हैं। हैरत की बात थी कि जेल प्रशासन को अमरमणि त्रिपाठी की इस करतूत की भनक तक नहीं थी। बाद में खुलासा जब हुआ तो जेल प्रशासन ने मेडिकल कालेज प्रशासन को खत लिखा कि अमरमणि को फौरन जेल भेजा जाए, लेकिन एक महीने तक दो बार खत भेजने के बावजूद अमरमणि नहीं लौटे। इतना ही नहीं, जब दबाव बढ़ा तो मेडिकल कॉलेज ने अमरमणि को पीजीआई लखनऊ रेफर कर दिया। लेकिन कोई बीमारी न मिलने पर पीजीआई ने उन्हें भर्ती करने से मना कर दिया। कहने की जरूरत नहीं कि अमरमणि के दो महीने तक जेल से बाहर रहने के मामले से नेताओं, पुलिस और डॉक्टरों की मिलीभगत का गठजोड़ साफ-साफ दिखाई प़ड़ता है।

ईमानदार दारोगा का खूनी औलाद निकला अमरमणि

अमरमणि का जनम गोरखपुर के गोपालपुर गांव के कृष्णनारायण मणि त्रिपाठी के घर हुआ था। कृष्णमणि दारोगा थे और उनकी ख्वाहिश थी कि उनके बच्चे पढ़ लिखकर नेक इंसान बनें। मगर अमरमणि ने अपने लिए कोई और ही रास्ता चुन रखा था और इसकी शुरूआत गोरखपुर युनिवर्सिटी से हुई। यह वह दौर था जब वीरेन्द्र शाही जिन्हें बाद में श्रीप्रकाश शुक्ला ने कत्ल कर दिया था और गोरखपुर यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन का सदर इन्हीं दोनों में से कोई एक का गुर्गा होता था। इन्हींल लोगों ने अमरमणि त्रिपाठी को सियासत और जुर्म के तालमेल का पहला सबक पढ़ाया। यह सबक अमरमणि ने इतनी अच्छी तरह पढ़ा कि वह सियासत की दुनिया में सीएम मेकर तक कहलाने लगे थे। लेकिन जुर्म की काली रात लम्बी चाहे जितनी हो एक दिन ढल ही जाती है।

शेर-शायरी का चारा फेंका था अमरमणि ने मधुमिता पर

9 मई 2003 को लखनऊ की पेपर मिल कालोनी में शूटर संतोष राय और प्रकाश पाण्डेय एक बाइक से मधुमिता के पेपर मिल कालोनी में घर के बाहर पहुंचे थे। घर पर मधुमिता और नौकर देशराज थे। दोनों मधुमिता के घर के अंदर दाखिल हुए। जब नौकर देशराज चाय बनाने के लिए किचन में गया तभी फायरिंग की आवाज आई। देशराज मधुमिता के कमरे की तरफ भागा लेकिन वहां न तो संतोष था और न ही प्रकाश पाण्डेय और बिस्तर पर थी खून से लथपथ मधुमिता की लाश। ये हिस्सा उस कहानी का है जिसने सीबीआई ने बतौर चार्जशीट अदालत में पेश किया है। जाहिर है सीबीआई की इस चार्जशीट से एक बात तो साफ हो गई कि मधुमिता को गोली संतोष राय और प्रकाश पाण्डेय ने मारी लेकिन सवाल था आखिर क्यों?

अमरमणि पर हाथ डाल चुकी सीबीआई ने जब इस पूर्व मंत्री और उसके गुर्गों का लाइ डिटेक्टर टेस्ट कराया तो सामने आई अवैध रिश्तों की कहानी। सत्ता के मद में चूर अमरमणि को शेरों शायरी का शौक था। यहीं उसकी मुलाकात एक जलसे में मधुमिता से हुई। सपनों की उड़ान लिए लखीमपुर खीरी जैसे छोटे से कस्बे से लखनऊ आई मधुमिता को अमरमणि त्रिपाठी ने प्यार के जाल में फांस लिया। दोनों मिलने लगे। नतीजा मधुमिता गर्भवती हो गई। अमर मणि ने दबाव बनाकर मधुमिता का दो बार एबॉर्शन कराया लेकिन तीसरी बार वो अड़ गई और यही उसकी मौत का कारण बन गया। अमर मणि के खिलाफ सबसे बड़ा सबूत बने वो तोहफे जो उसने मधुमिता को दिए थे। इसके अलावा ट्रेन के टिकटों और हवाई यात्राओं के ब्यौरे से ये साफ हो गया कि अमरमणि ने मधुमिता का इस्तेमाल मौज मस्ती के लिए किया। सीबीआई को ये समझते देर नहीं लगी कि इस कत्ल के पीछे छुपी है अवैध रिश्तों की कहानी।

बहन ने किया खुलासा शातिर अमरमणि की करतूतों का

कत्ल के बाद जब मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने अमरमणि का नाम लिया तो अमरमणि ने उसे डराया धमकाया। इस शातिर दिमाग नेता ने खुद को बचाने की खातिर लखनऊ से करीब 300 किलोमीटर नौतवना में उसी दिन एक प्रेस कांफ्रेस की जिस दिन मधुमिता का कत्ल हुआ। सीबीआई जांच में खुलासा हुआ कि मधुमिता को मारने की पहली कोशिश आठ मई यानी कि एक दिन पहले भी हुई थी लेकिन वो उस दिन घर पर नहीं मिली। लिहाजा घटना अंजाम दी गई अगले दिन यानी की नौ मई को। मधुमिता के नौकर देशराज ने भी बाद में ये गवाही दी कि हत्यारे एक दिन पहले भी घर पर आए थे।

इन दिनों जेल में अपनी करनी की सजा भुगत रहे अमरमणि त्रिपाठी ने कानून को हमेशा से ही सत्ता के हाथ का खिलौना समझा। लेकिन उसकी यही सोच उसकी सियासी तकदीर पर भारी पड़ी। अमरमणि ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की पूर्वांचल के बाहुबली हरिशंकर तिवारी की सरपरस्ती में रहकर लेकिन ये दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चली। दोनों अलग हो गए। अस्सी के दशक में अमरमणि महराजगंज जिले की लक्ष्मीपुर सीट से पहली बार विधायक बना। फिर क्या था? कभी कांग्रेस-बीजेपी तो कभी बीएसपी-एसपी का दामन पकड़ पकड़ कर अमरमणि ने सत्ता का खूब मजा भोगा।

अमरमणि की बढ़ती सियासी ताकत का अंदाजा लोगों को तब लगा जब कांग्रेस तोड़ वो कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री बने। यहीं से अमरमणि की पहचान सरकार बनाने और सरकार गिनाने वाले नेताओं के तौर पर होने लगी। लेकिन जरायम की दुनिया मे बने रिश्तों ने अमर मणि का साथ नहीं छोड़ा। 2001 में मंत्री रहते हुए उनका नाम एक अपहरण कांड में आया। मंत्री पद छोड़कर अमरमणि को जेल जाना पड़ा। लेकिन अमरमणि ने मायावती से साथ सत्ता में फिर वापसी की। इस बार मधुमिता की हत्या ने उनके सियासी कैरियर पर ताला ही लगा दिया। अमरमणि अब जेल में है। लेकिन अभी भी उसे ना तो कानून का खौफ है ना ही सलाखों का।

इतना ही नहीं अमरमणि इलाज के बहाने जेल से निकल कर 14 महीनों तक गायब रहा। सजायाफ्ता अमरमणि खुले में घूमता रहा और इसकी भनक किसी को ना लगी। मामला पकड़ में आया तो बवाल मच गया। आनन फानन में उसे जेल भेजा गया। अमरमणि नजीर है सत्ता में शामिल उन चेहरों की जिनके लिए कानून का कोई मायने नहीं। करीब तीन दर्जन मामलों के आरोपी अमरमणि का नाम कुख्यात माफिया डान श्री प्रकाश शुक्ला से करीबी रिश्तों के चलते भी चर्चाओं में रहा है।

अमरमणि के गुनाह हाईकोर्ट में भी साबित

तेजी से आगे बढ़ने और जल्द से जल्द शोहरत की बुलंदियां छूने के शौक में दूसरे दर्जे की कवियत्री मधुमिता शुक्ला तो मौत की नींद सो गई लेकिन मरने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री और मुलायम सिंह यादव के करीबी अमरमणि त्रिपाठी, उनकी बीवी मधुमणि  उनके दो करीबी रिश्तेदार समेत चार लोगों को जिंदगी भर के लिए जेल पहुंचा गई। नौ मई 2003 को मधुमिता शुक्ला  का जब कत्ल हुआ तो उसके पेट में अमरमणि त्रिपाठी का बच्चा पल रहा था। इसकी तस्दीक डीएनए टेस्ट से हुई,  सीबीआई ने पूरे मामले की तहकीकात करने के बाद देहरादून की स्पेशल सीबीआई कोर्ट में यह मुकदमा चलाया। सुबूत इतने पक्केद थे कि सीबीआई कोर्ट ने अमरमणि और उसकी बीवी समेत चार लोगों को 24 अप्रैल 2007 को उम्रकैद की सजा सुना दी। हाईकोर्ट ने भी उनके मुकदमें में फैसला करते हुए उनकी उम्रकैद की सजा बरकरार रखी। उनकी वकील शुक्ला भंडारी ने कहा है कि वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगी लेकिन इस मामले में अमरमणि के खिलाफ जितने पुख्ता सुबूत है उसके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट से भी अमरमणि को किसी किस्म की राहत मिलने की उम्मीद नहीं है।

अमरमणि के घर में ही बनी मधुमिता की हत्या  की साजिश

मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने एक बातचीत में बताया कि कैसे मधुमिता और मधुमणि करीब आए। दरअसल, मधुमिता के कवि सम्मेलनों में अमरमणि की लड़कियां अन्नू और तन्नू और अमरमणि की मां सावित्री मणि त्रिपाठी आती रहती थीं। उनके जरिये ही अमरमणि से मधुमिता का परिचय हुआ। अमरमणि की पत्नी मधुमणि और सास सावित्री मणि में अस्तित्व की लड़ाई चल रही थी। जब सावित्री को लगा कि उनका पलड़ा कुछ कमजोर है तो उन्होंने मधुमिता को खड़ा कर मोहरे की तरह इस्तेमाल किया। और यहीं से साजिश शुरू हुई। आप खुद सोचिए जिसके अपराध साबित करने के लिए सीबीआई, सीआईडी तक के पसीने छूट गए उस जैसा आदमी अगर 20 साल की किसी लड़की के पीछे पड़ जाए तो क्या वो उसके चंगुल में नहीं फंसेगी। यही हुआ मधुमिता के साथ। जैसा कि हमेशा वो करता रहा वैसा ही उसने मधुमिता के साथ किया।

निधि ने बताया था कि तत्कालीन सरकार का सारा सपोर्ट अमरमणि को था। अगर ऐसा न होता तो उसकी एफआईआर लिखी गई होती। 11 मई को घर में डकैती डाली गई वो न डाली जाती। हमारी हिम्मत और हौसले को दबाने की कोशिश हो रही थी। सिस्टम हमारे खिलाफ खड़ा हुआ था। हां, ये सच है कि किसी ने उसका साथ दिया, तो वो मीडिया ने दिया था। निधि ने आरोप लगाया कि हैरानी होती है कि जिम्मेदार पदों पर जो लोग बैठे हैं जिन्हें सरकार लाखों देती है उन्हें बहुत ही कम पैसों में बिकते देखा। मीडिया के लोगों ने इस केस में ईमानदारी से काम किया।

मधुमणि ने साजिश की और अमरमणि ने भरी हामी

अमरमणि त्रिपाठी और मधुमिता शुक्ला के नाजायज रिश्तों की खबर मधुमणि को थी। जब उसे यह मालूम पड़ा कि वह गर्भवती है और अमरमणि पर शादी के लिए दबाव डाल रही तो उसने अपने भतीजे रोहित चतुर्वेदी की मदद से मधुमिता की हत्याह की साजिश रची। अमरमणि ने साजिश पर खामोश मुहर लगाई। प्रकाश पाण्डेय और संतोष राय ने नौ मई 2003 को पेपर मिल कालोनी मे मधुमिता के मकान में उसे कत्ल कर दिया। मधुमिता का कत्ल होते ही उसकी बहन निधि ने अमरमणि त्रिपाठी पर इस कत्ल का इल्जाम लगाया और सियासी हलकों में हंगामा शुरू हो गया। उस वक्त समाजवादी पार्टी ने इस कत्ल पर खासा हंगामा मचाया था। अमरमणि और मद्दुमिता के करीबी रिश्तों की बात सामने आने पर उस वक्त की मुख्य मंत्री मायावती ने सत्रह मई 2003 को इस मामले की जांच सीबीआई को सौपने का हुक्म दिया। और अमरमणि को मंत्रिमंडल से निकाल बाहर किया।

साजिश दर साजिशों में जुटा रहा था अमरमणि

उधर अमरमणि ने पहले तो मधुमिता से करीबी रिश्ते होने से इंकार किया और कहा कि उसके तो कई लोगों से अंतरंुग रिश्ते थे। मगर जब मधुमिता के गर्भवती की बात सामने आई तो यज्ञ नारायण दीक्षित नाम के दारोगा और एक पंडित की मदद से यह ड्रामा रचा गया कि मधुमिता ने आईआईटी कानपुर के छात्र अनुज मिश्रा से 2002 में शादी कर ली थी और यह बच्चा उसी का है। लेकिन जब मधुमिता के पेट में पल रहे बच्चे का डीएनए टेस्ट हुआ तो अमरमणि का सारा झूट पकड़ा गया और साबित हुआ कि यह बच्चा अमरमणि त्रिपाठी का ही था। हैदराबाद फोरेंसिक लैब से यह रिपोर्ट सितम्बर में आई और उसके बाद से ही अमरमणि के इर्द-गिर्द कानून का शिकंजा कसने लगा।

मधुमणि ने कुबूल ही डाली अमरमणि की असलियत

इसके बाद अमरमणि की बीवी मधुमणि पुलिस के रडार पर आई और उन्होंने बताया कि सौतिया डर की वजह से उन्होंने मधुमिता को कत्ल कराया है। फिर धीरे-धीरे इस केस की परते खुलने लगी और सीबीआई ने तीन दिसम्बर 2003 को अमरमणि, मधुमणि, रोहित चतुर्वेदी, संतोष राय और प्रकाश पाण्डेय के खिलाफ चार्जशीट दायर कर दी थी। जिसमें दारोगा यज्ञ नारायण दीक्षित को सुबूत मिटाने का मुल्जिम पाया था। इस दौरान अमरमणि ने बचाव की एक और तरकीब करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जमानत की अर्जी दी मगर उनके गुनाह उनके आड़े आ गए और उनके खिलाफ दर्ज 33 मुदकमों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वह अर्जी खारिज कर दी। 2004 में मद्दुमिता की बहन निधि की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला नैनीताल हाईकोर्ट भेज दिया। मुकदमे के दौरान दारोगा दीक्षित की मौत हो गई। 24 अप्रैल 2007 को सीबीआई कोर्ट देहरादून ने अमरमणि, मधुमणि, रोहित और संतोष को उम्रकैद की सजा के साथ पचास-पचास हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया और प्रकाश पांडेय को संदेह का लाभ देकर बरी कर दिया। इस फैसले के खिलाफ अपराधियों ने नैनीताल हाईकोर्ट में अपील की थी। लेकिन उनकी इस अपील से उन लोगों को कोई राहत नहीं मिली बल्कि कोर्ट से छूट गए मुल्जिम प्रकाश पांडेय भी सजा पा गए। उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने अमरमणि वगैरह की अपील खारिज कर दी और प्रकाश पांडेय को भी उम्रकैद की सजा सुना दी। अब एक बार फिर अमरमणि वगैरह सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील करने वाले हैं। लेकिन हालात और सुबूत देखते हुए उन्हें वहां से भी राहत मिलना मुश्किल है। इस फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए निद्दी शुक्ला और उसकी मां का कहना था कि उन्हें अदालत से इंसाफ मिलने का पूरा भरोसा था। निधि ने कहा कि उन्होंने ‘मेरी बहन का कत्ल’’  शीर्षक से एक किताब लिखी है। चार सौ पेज की इस किताब में उनका दावा है कि कुछ ऐसी बातें भी है जो लोगों के सामने नहीं आई हैं।

अमरमणि के साथ भी ऐसा हुआ और मधुमिता के खून ने उनके सियासी कैरियर को तकरीबन पूरी तरह खत्म कर दिया है। अगर वह सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं पाते है तो अब अमरमणि त्रिपाठी को, उनकी बीवी मधुमणि को, शूटरों संतोष राय, प्रकाश पांडेय और रोहित चतुर्वेदी को अब पूरी जिंदगी जेल की सलाखों के पीछे ही गुजारनी पड़ेगी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *