सुब्रत राय: महिलाओं पर अब कौन सा मोर्चा खोलेगा सहारा इंडिया

ज़िंदगी ओ ज़िंदगी

: इस बार सीधे-सीधे तौर पर सर्वोच्च न्यायालय पर कीचड़ फेंका सुब्रत राय ने : सुकरात नहीं, यह सुब्रत राय है। भावनाओं का हत्यारा यानी पैसों का क्रूर संत : निवेशकों को पैसा लुटाने के बजाय अब विज्ञापनों पर फर्जी दावे शुरू : विज्ञापनों के खिलाड़ी ने फिर चलायी विज्ञापन की गोटी, एड पर करोड़ों फूंका : हमेशा की ही तरह सिर्फ सफेद झूठ ही तो बोल रहा है सहारा इंडिया : मुनाफा तो उत्पादन पर होता है, टोपी-गेम वाले कागजी जमीन पर नहीं : सहारा की बंद इंडस्ट्री  की कील व टेक्साटाइल के रूमालों से कैसे खरबों मिलते :

खुद को सहाराश्री की स्वयंभू पदवी सौंप देने वाले सुब्रत राय अपना सरनेम भी सहारा ही लगाते हैं। यानी पूरा कुल नाम सहाराश्री सुब्रत राय सहारा। लेकिन इन पदवियों की फेहरिस्त के बावजूद सुब्रत राय की सिफत और तासीर में तनिक भी बदलाव नहीं आ सका। इसके सिर की टोपी, इसके सिर पर लगाने के अपने अब तक चोखा खेल में खिलाड़ी साबित रहे सुब्रत राय इस बार जमकर रौंदे जा रहे हैं। लेकिन इस बार अपनी खोपड़ी पर लगी सर्वोच्च न्यायालय की इस जोरदार चपत और चोट की पीड़ा दूर करने के लिए सुब्रत राय उसी मलहम का लेप लगाने में जुटे हैं, जिसने हमेशा की तरह उनको सुरक्षा-चक्र मुहैया कराया। वैसे देश की हालत, माहौल और सुब्रत राय के अब तक इतिहास को देखकर लगता नहीं है कि सुब्रत राय पर कोई मारक चोट खायेंगे। विज्ञापन की ताकत से बखूबी जानकार सुब्रत राय को टोपी-गेम यानी इस की टोपी उस के सिर वाले खेल में खूब महारत हासिल है। लेकिन सुब्रत राय के इस गेम में सर्वाधिक तो भावनाओं को कुचला। खासकर विवाह जैसे पुनीत पर लोगों की भावनाएं। दरअसल सुकरात नहीं, यह सुब्रत राय है, केवल पैसों का संत। जहां भावनाएं बेचीं तो सकती हैं, उन्हें पाल पाना मुमकिन नहीं होता है सुब्रत राय जैसों के चलते। जानकार बताते हैं कि ताजा हालातों में जो सुब्रत राय जो खेल शुरू कर चुके या कर रहे हैं, उसका खामियाजा केवल और केवल उन निवेशकों के खिलाफ ही होगा। और जाहिर होगा कि ऐसे मामलों में ज्यादा मामले केवल उन मामलों में होंगे जिन्होंने अपनी बेटियों-बहनों की शादी की तैयारियों के लिए अपनी जिन्द्गी की सारी कमाई सहारा इंडिया में लगा दी थी। और अब सहारा की करतूतों के चलते उनका सहारा बेसहारा लुटने की हालत में पहुंच गया है।

सेबी की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद से ही सहारा इंडिया बौखला गया है। इसके पहले तक कभी ऐसा नहीं हो पाया कि सुब्रत राय इतना बेहाल हुए। बावजूद इसके लिए इस मामले को निपटाने के लिए सुब्रत राय ने हरचंद कोशिशें अंदर-बाहर खूब कीं, लेकिन दालों की हांडी एक बार भी नहीं पक पायी। दरअसल, इस ओनली वन कैप-गेम इन एवरी हेड रखने-हटाने में महारत हासिल कर चुके सुब्रत राय की चूलें इस फैसले ने बुरी तरह हिला दी हैं। हालांकि सुब्रत राय का यह सिरदर्द तब से है जब सेबी के मामले में सहारा इंडिया की याचिका औंधे मुंह गिरी। धमक जोरदार थी। इतनी कि पूरा सहारा इंपायर की चूलें हिल गयीं। भूकंप तब से ही आया हुआ है। आखिरकार यह खरबों खरब रूपयों की अदायगी का मामला है जो सुब्रत राय की इस की टोपी उस के सिर वाले खेल में चल रहा था, बजरिये सहारा इंडिया। शुरूआत से ही। जन्मु से ही। लेकिन इस मामले में यह गेम फ्लाप हो गया। सहारा इंडिया के इतिहास में पहली बार। सुब्रत राय चौखाने चित्त  हो गये। दरअसल, सुब्रत राय खिलाड़ी हैं। चांदी के सिक्कों की खनकती आवाजों के साजिंदा। जहां आवाजों को अपने हिसाब से समेटा, समझाया, गाया और बोला जाता है। किसी पर यह फर्क नहीं पड़ता कि कौन रोया, कितना तडपा और कौन बेसहारा-शर्म-अ-सहारा से डूब मरा। सुब्रत राय को खूब पता है कि कैसे लोगों की भावनाओं को छुआ, टटोला, दबाना, निचोड़ा और आखिरकार कैसे भावनाओं की अंड-कोशिकीय मर्म को मसल देना है। और हमेशा से ही अपने इसी महारत से सुब्रत जीत जाते रहे हैं। आपको बताते चलें कि अगर यह मामला चांदी के सिक्कों की खनखनाखट में नहीं दबा, तो शायद इस बार ऐसी आहें असर जाएंगी। जरूर।

तो अब हम आपको मिलाते हैं ऐसे ही सुब्रत राय से, जिसको करीब 30 बरसों से खूब जानता हूं पहचानता हूं। तो यह है इस खबर की पहली किश्‍त। जारी रहेंगे हम लोग अगली किश्‍तें।

सुब्रत राय और सहारा इंडिया की धांधागर्दी

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